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यह है बब्बर शेरों का नया ठिकाना...

अरविन्द शुक्ला

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, रविवार, 6 अक्टूबर 2013 (12:35 IST)
बब्बर शेर भारत में प्राकृतिक रूप से पश्चिमी गुजरात के गिर राष्ट्रीय पार्क व वन्यजीव विहार में पाया जाता है। कम संख्या के आधार पर आईयूसीएन ने इसे लुप्तप्राय श्रेणी में सूचीबद्ध किया है। एशियाई बब्बर शेर की विलुप्तता के समीप प्रजाति पेंथरा लियो पर्सिका, जिसे भारतीय बब्बर शेर भी कहते हैं, के संरक्षण व संवर्धन के लिए इटावा शहर से 5 किलोमीटर दूर इटावा-ग्वालियर मार्ग पर फिशर वन के अंतर्गत 350 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बब्बर शेर प्रजनन केंद्र व सफारी का निर्माण किया जा रहा है।
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बब्बर शेर प्रजनन केंद्र में तैयार होने वाले बब्बर शेरों को बब्बर शेर सफारी में रखा जाएगा। इसका उद्देश्य एशियाई बब्बर शेरों के बंदी प्रजनन हेतु अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप सुविधाएं देकर देश में बंदी बब्बर शेरों की संख्या में वृद्धि करना है।

अंतरराष्ट्रीय मानकों से बनाई जा रही यह लायन सफारी देश की इकलौती सफारी होगी। दिल्ली व आगरा से कानपुर, इलाहाबाद, लखनऊ, ग्वालियर जाने वाले देशी व विदेशी पर्यटकों को बब्बर शेर प्राकृतिक वास स्थल में करीब से देखने को मिलेंगे।

अगले पन्ने पर... खुले में घुमेंगे बब्बर शेर, पिंजरे में होंगे दर्शक...


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8 साल पूर्व समाजवादी पार्टी की सरकार ने यहां लायन सफारी की स्थापना का स्वप्न देखा था किंतु अब खुले में घूमते हुए बब्बर शेर देखने का स्वप्न शीघ्र पूरा होगा। इसके बनने से आम जनता को बब्बर शेरों के जीवन को प्राकृतिक तौर पर नजदीक से देखने की सुविधा मिलेगी।

लायन सफारी में एशियाई शेरों के प्रजनन हेतु लायन ब्रीडिंग सेंटर विकसित होगा। सफारी से उच्चस्तरीय इको जागरूकता का संदेश साफ दिखाई देता है।

दूसरे चिड़ियाघरों में जानवर/ पक्षी पिंजडे़ में रहते हैं और देखने वाले खुले में घूमते हैं, लेकिन इटावा लायन सफारी की खास बात यह होगी कि यहां बब्बर शेर खुले में होंगे और देखने वाले पिंजड़े में। सफारी बनने से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा व रोजगार सृजन होगा।

यहां 50 हे. वनक्षेत्र में बब्बर शेर प्रजनन/ सफारी का विकास होगा। 300 हे. में बब्बर शेर सफारी का बफर जोन बनाकर प्राकृतवास का विकास किया जाएगा। 600 एकड़ में विभिन्न प्रजातियों के पौधों का रोपण होगा।

ग्रीन बेल्ट के रूप में 11 लाख पेड़ विभिन्न स्थानों में लगाकर हरित पटि्‌टयां विकसित की जा रही हैं। इस वर्ष के लिए 5 करोड़ से अधिक पौधे रोपित करने का लक्ष्य रखा गया।

लायन सफारी परियोजना में 45 करोड़ रुपए से अधिक व्यय होंगे। इसमें से 30 करोड़ 50 लाख रुपए शेरों के रखरखाव के कार्यों जैसे एनिमल हाउस का निर्माण, कंजर्वेशन ब्रीडिंग सेंटर का निर्माण, वेटरनरी हॉस्पिटल आदि का निर्माण किया जा रहा है। सफारी में शीघ्र ही बब्बर शेर दिखाई देने लगेंगे।

पर्यटक सुविधाओं पर 9 करोड़ से अधिक व्यय होंगे जिसके अंतर्गत इंटरप्रिटेशन सेंटर कम लाइब्रेरी, आंतरिक सड़कें, गार्डन, पार्किंग, वॉच टॉवर, शौचालय आदि को विकसित किया जा रहा है। सफारी क्षेत्र में 50 हेक्टेयर लायन सफारी कोर, 300 हेक्टेयर बफर जोन, 50 हेक्टेयर चैनलिंक फेंसिंग व 350 हेक्टेयर में हैबिटैट विकसित होगा।

अगले पन्ने पर...क्या है फिशर वन का इतिहास...


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17वीं शताब्दी में चंबल-यमुना का दोआब अत्यंत उच्च कृषि उत्पादकता वाला क्षेत्र था। 18वीं शताब्दी में हुए युद्वों के कारण चंबल-यमुना दोआब सहित गंगा-जमुना दोआब में बहुत बड़े पैमाने पर निर्वनीकरण हुआ।

वर्ष 1785 में ब्रिटेन में बनी एक पेंटिंग में इटावा को वनस्पतिहीन बिखरी आबादी वाला क्षेत्र चित्रित किया गया था। वर्ष 1879 में डिट्रिच ब्रांडिस ने आगरा व इटावा जनपदों की परती भूमि को वनभूमि में परिवर्तित कर चारा व ईंधन हेतु आरक्षित करने की संस्तुति की।

इसके कुछ वर्षों पश्चात इटावा के जिलाधिकारी जेएच फिशर ने सरकार व बीहड़ भूमि के स्वामी स्थानीय जमींदारों के मध्य संयुक्त वन प्रबंध का प्रस्ताव किया। 1146.07 हेक्टेयर के इस बीहड़ क्षेत्र को जमींदारों ने तत्कालीन जिलाधिकारी जेएच फिशर को सौंप दिया था जिससे इस क्षेत्र को और अधिक क्षरण व अवनत होने से बचाया जा सके।

फिशर वनक्षेत्र में 1884 में वृ़क्षारोपण किया गया था। यह वृक्षारोपण राज्य का सर्वाधिक पुराना वृक्षारोपण है। क्षेत्र में बबूल, शीशम व नीम के बीज बोए गए तथा क्षेत्र में चराई बंद की गई।

वर्ष 1912 में कानपुर की एलन कूपर कंपनी ने संपूर्ण क्षेत्र 50 वर्षों के लिए लीज पर ले लिया। कंपनी ने वर्ष 1914 में लीज वन विभाग को सौंप दी। बाद में वन विभाग ने मृदा क्षरण रोकने के लिए चेक डैम का निर्माण एवं उपयुक्त प्रजातियों का रोपण व बीज बुआन की गतिविधियां प्रारंभ कीं।

समय बीतने के बाद चौड़ी पत्तियों के वन स्थापित हुए। अत्यधिक जैविक दबाव के कारण इन वृक्षों का क्षरण हुआ तथा यह क्षेत्र गंभीर रूप से नष्ट हुआ। 1985 के बाद विलायती बबूल के बीजों के छिड़काव के बाद यह क्षेत्र मुख्यतः विलायती बबूल के वन में परिवर्तित हो गया था।

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