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‍चितवन में पर्यटकों का रेला, वाल्मीकि में वीरानी

हमें फॉलो करें ‍चितवन में पर्यटकों का रेला, वाल्मीकि में वीरानी
- वाल्मीकिनगर से विनोद बंधु

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विदेशी पर्यटक भी मानते हैं कि वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना बेहतर है। यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का कायल हो जर्मनी का एक जोड़ा दो महीने तक रुका। पर्यटक यहाँ के सूर्यास्त और सूर्योदय का नजारा देखने को लालायित रहते हैं। पहाड़, नदी, झरना के अलावा भी दुर्लभ वन्यजीवों की यहाँ भरमार है फिर भी सैलानी नहीं आते। कारण सुविधाओं का अभाव।

भारत दर्शन पर आए जर्मनी के हांग्स सेवेन्थ निवासी थामस स्कूटी और आरमीन बचौल्ड को कोलकाता में किसी ने बिहार के वाल्मीकिनगर व्याघ्र परियोजना के प्राकृतिक सौंदर्य और बंगाल टाइगर से लेकर अन्य वन्यजीवों की भरमार के बारे में बताया। कौतूहलवश दोनों ने दो दिन के लिए वाल्मीकिनगर का कार्यक्रम बना लिया लेकिन यहाँ आने के बाद वह दो महीने जमे रहे। थॉमस स्कूटी ने 'नईदुनिया' को बताया कि यहाँ आने पर अहसास हुआ कि हम प्रकृति की गोद में हैं।

यहाँ के सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा इतना मनोरम है कि इसकी व्याख्या शब्दों में करना संभव नहीं है। जंगल में जानवरों को विचरते देखना किसी रोमांच से कम नहीं है। जंगल खुशहाल है और पहाड़ी नदियों का क्या कहना ! लगे हाथ जर्मनी के इस जोड़े ने यह भी कहा कि यहाँ रहने और खाने की सुविधा नहीं है। होटल हैं लेकिन साधारण। फिर भी हम दो महीने टिके रहे तो यह प्राकृतिक सौंदर्य का ही आकर्षण है जिसने हमें बाँधे रखा।

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बिहार की वाल्मीकिनगर व्याघ्र परियोजना और नेपाल का चितवन पार्क अगल-बगल है। यह कहना ज्यादा बेहतर है कि दोनों एक ही जंगल के दो हिस्से हैं और दो देशों में ँटे होने के कारण दो नामों से मशहूर हैं। नेपाल के चितवन पार्क की किस्मत बेहतर है। भले ही वह वाल्मीकिनगर के प्राकृतिक सौंदर्य के सामने नहीं टिकता लेकिन वहाँ की सरकार ने उसे इस तरह सँवारा-संभाला है कि वह विदेशी सैलानियों का तीर्थ बन गया है।

हजारों की तादाद में वहाँ पर्यटक आते हैं और मोटी रकम अदा कर जंगल में हाथी और पहाड़ी नदियों में नाव की सवारी करते नहीं अघाते हैं। पर्यटकों का मनोरंजन करने के लिए वहाँ के महावतों ने एलीफैंट बाथ का एक नुस्खा अपना लिया है। हाथी पर बैठाकर विदेशी जोड़ों को नदी में ले जाते हैं। हाथी पर बैठकर स्नान करना उनके लिए एक अलग अनुभूति होती है।

इसके लिए वह हजारों रुपए देते हैं। पर्यटकों की आमद बढ़ने से वहाँ की सरकार भी उत्साहित है। नेपाल के नागरिक उड्डयन मंत्री शरद सिंह भंडारी ने एक पखवारा पूर्व विराटनगर में भारतीय पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उनकी सरकार वर्ष 2011 को पर्यटन वर्ष के बतौर मनाने जा रही है।

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पर्यटन नेपाल की आमदनी का प्रमुख जरिया है। भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र में पर्यटन को विकसित करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञों की एक कमिटी बनाई गई है। भारत के 27 शहरों से नेपाल के सात शहरों के लिए हवाई यात्रा शुरू की जाएगी। प्रत्येक सप्ताह छह हजार भारतीय पर्यटक नेपाल भ्रमण पर आते हैं।

नेपाल सरकार पर्यटकों की सुरक्षा के प्रति सचेत है। माओवादी आंदोलन के दौर में भी यहाँ पर्यटकों के साथ कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। इधर, बिहार में चार वर्षों में हालात बदले हैं। उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने सरकार के चार साल पूरे होने पर जिन बड़ी उपलब्धियों को रेखांकित किया उसमें कानून व्यवस्था में सुधार और सरकार के प्रयासों के कारण पर्यटकों की संख्या और राज्य से अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों में हुई वृद्धि का खासतौर से जिक्र किया।

मोदी ने बताया कि वर्ष 2006 में बिहार आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या 94 हजार 446 थी जो 2008 में बढ़कर 3 लाख 56 हजार 446 हो गई। यानी विदेशी पर्यटकों की संख्या में 377 प्रतिशत का इजाफा हुआ जबकि देशी पर्यटकों की संख्या में 114 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

उन्होंने यह भी दावा किया कि राज्य से हवाई यात्रा में 79 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि बोधगया स्थित अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा से सप्ताह में 25 उड़ानें भूटान, यंगून, कोलंबो और बैंकाक के लिए भरी जा रही हैं। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने कई मोर्चों पर काम किया है।

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अभी राजगीर महोत्सव के उद्घाटन मौके पर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दोहराया कि बिहार में खान-खदानें न भी हों तो क्या हुआ यहाँ नालंदा, पावापुरी, बोधगया, गया, वैशाली तो हैं। मतलब यह कि पर्यटन उद्योग की अपार संभावनाएँ यहाँ है।

लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि वाल्मीकिनगर जिसे प्रकृति ने खुले दिल से सौंदर्य का उपहार वरदान में दे रखा है, उसे पर्यटकों को आकर्षित करने के लायक बनाने के मोर्चे पर सरकार की वह चुस्ती नजर नहीं आ रही है।
880 वर्ग किलोमीटर में फैले वाल्मीकि वन क्षेत्र के 530 किलोमीटर वर्ग क्षेत्र व्याघ्र परियोजना घोषित है।

इसे खासतौर से रॉयल बंगाल टाइगर के लिए जाना जाता है। वैसे इस जंगल में तेंदुआ, गैंडा, जंगली भैंस, हिरण, चितल, सांभर, जंगली कुत्ते, जंगली मुर्गे, 50 फीट के अजगर समेत किंग कोबरा की मौजूदगी इसे विशिष्ट बनाती है जबकि नेपाल के चितवन में वन्यजीवों की इतनी अधिक प्रजातियाँ और संख्या नहीं हैं।

बगहा निवासी महावत हसरत कहता है कि चितवन से अच्छा वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना है लेकिन चितवन में एक घंटा घूमने के लिए विदेशी पर्यटक एक हजार रुपए देते हैं जबकि वाल्मीकि में विशाल गंदक नदी में सैर के लिए पर्यटक नहीं हैं। चितवन में एक हाथी रखने वाले की कमाई प्रतिदिन पाँच से दस हजार तक है।

नदी में नाव से सैर कराने वाले नाविक भी अच्छी कमाई कर लेते हैं। वाल्मीकि निवासी शिक्षक चंदन कुमार का कहना है कि यह बिहार का स्वर्ग है, जरूरत है इसे तराशने की। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने वाल्मीकि बराज के बगल में पर्यटक होटल का निर्माण आरंभ कराया था लेकिन उसकी चार दीवारी के अलावा बाकी निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है।

अभी गंडक बराज के डोरमेट्री में एक अस्थायी होटल है, जिसका संचालन राज्य पर्यटन निगम कर रहा है। सुविधाएं नगण्य रहने के बावजूद प्रतिवर्ष यहाँ तीन सौ समूह पर्यटकों के आते हैं। वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के डीएफओ एस. चंद्रशेखर ने बताया कि परियोजना क्षेत्र में पर्यटन के लिए दोन, गोवर्धना, सोमेश्वर पहाड़ी, भिखनाठो़ढ़ी मनोरम स्थल हैं।

यहाँ की मिट्टी लाल है और यहाँ से हिमालय की चोटी को देखने का अपना आनंद है लेकिन सड़क और सुविधाओं के अभाव के कारण पर्यटक यहाँ नहीं आते हैं। उन्होंने कहा कि अगर पर्यटक यहाँ आएँगे तो उन्हें नेपाल के चितवन की तरह जंगल में घूमने की अनुमति दी जाएगी। गेस्ट हाउस भी खोले जाएँगे। बहरहाल, केंद्र और राज्य सरकार के साझा प्रयास की बाट जोह रहे प्रकृति के इस उपहार को सँवरने का इंतजार है।

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