- दिल्ली से भाषा सिंह
चीता जिसकी फुर्ती और तेजी की लोग मिसालें देते हैं, वह भारत से विलुप्त हो चुका है। पिछले एक हजार साल में भारत की सरजमी से विलुप्त होने वाला वह एकमात्र स्तनपायी जानवर है। सबसे तेज दोड़ने वाला यह चौपाया एक समय भारत के जंगलों में खूब पाया जाता था। जानवरों का शिकार करने वाला यह खूबसूरत जानवर इंसानी शिकार का इस कदर शिकार हुआ कि देश से इसका नामोनिशान मिट गया। अब एक बार फिर इसे अफ्रीका से भारत लाने और यहाँ उसका प्रजनन कराने की तैयारी हो रही है। मिशन सफल होने पर भारत में हम टाइगर रिजर्व की ही तरह चीता रिजर्व या चीता सफारी पार्क देख सकेंगे जबकि चीते के बारे में अभी जानकारी सिर्फ तस्वीरों और डॉक्यूमेंट्री के जरिए मिलती है। चीतों को भारत लाने और उनका प्रजनन कराने की कोशिश पिछले कई सालों से चल रही है लेकिन हर बार राजनीतिक कारणों से इसकी राह में रोड़ा आता रहा। कुछ साल पहले ईरान से समझौता हुआ था कि वहाँ से चीता भारत लाया जाएगा और भारत से शेर ईरान जाएगा लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए राजी नहीं हुए। वह 'भारतीय गौरव' को ईरान जैसे देश को देने के लिए तैयार नहीं थे। इस बार दक्षिण अफ्रीका से चीता लाने की बात चल रही है। भारत सरकार एक गैर सरकारी संस्था वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) के प्रस्ताव पर यह योजना बना रही है।
चीता बसाओ परियोजना पर पर्यावरणविदों ने सवाल उठाते हुए कहा कि करोड़ों खर्च करने के बाद जो पर्यावरण एवं वन मंत्रालय शेरों को नहीं बचा पाया, वह किस मुँह से चीतों को लाने औऱ बसाने की बात कर रहा है। वर्ष 1900 में भारत में 1 लाख बाघ थे जो आज 1300 रह गए है।
यह महत्वाकांक्षी परियोजना दो चरणों में है। पहले चरण में, दक्षिण अफ्रीका से चीता लाया जाएगा। फिर इन्हें विशेष रूप से बनाए गए बाड़ों में रखा जाएगा, वहाँ इनका प्रजनन कराया जाएगा। इसके बाद दूसरे चरण में अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा और ये भारतीय जलवायु से तालमेल बैठाने में कामयाब रहे तो इन्हें जंगलों में छोड़ा जाएगा। हालांकि खुद जयराम रमेश का भी मानना है कि दूसरे चरण में काफी समय लगेगा। चीतों के हिसाब के जंगल या मैदान भारत में कहाँ और कितने हैं, इसकी अभी खोजबीन करनी है। एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि चीते और शेर एकसाथ नहीं रह सकते, इसलिए उनकी रिहाइश के लिए अलग व्यवस्था भी एक टेढ़ी खीर है। साथ ही 'चीता बसाओ परियोजना' पर पर्यावरणविदों ने सवाल उठाते हुए कहा कि करोड़ों खर्च करने के बाद जो पर्यावरण एवं वन मंत्रालय शेरों को नहीं बचा पाया, वह किस मुँह से चीतों को लाने औऱ बसाने की बात कर रहा है। वर्ष 1900 में भारत में एक लाख बाघ थे जो आज सिमटकर 1300 रह गए हैं।
यह कल्पना अपने आप में बहुत रोमांचकारी है कि भारत में चीता फिर से दौड़ सकता है। मूल रूप से चीता संस्कृत का शब्द है और इसका उल्लेख भारतीय साहित्य में विस्तार से मिलता है। विशेषकर अकबरनामा तथा जाहँगीरनामा में चीते का बहुत खूबसूरत चित्रण है। बीसवीं सदी की शुरुआत तक भारत में कई हजार चीते थे लेकिन आज एक भी नहीं है। पूरे एशिया में 60 से ज्यादा चीते नहीं बचे हैं। भारत में आखिरी तीन एशियाई चीतों को 1947 में सरगूजा के महाराज ने मार डाला था। इन्हीं महाराज के नाम 1360 बाघों को मारने का काला रिकॉर्ड भी है। नए सिरे से चीतों को बसाने के लिए भी मध्य प्रदेश का ही चयन किया जा रहा है क्योंकि वहाँ की जलवायु चीतों के लिए काफी उपयुक्त मानी जाती है। इस सारे प्रयोग को जमीनी हकीकत में बदलने के लिए बीकानेर के पास गजनेर का चुनाव किया गया है। गजनेर में ही 9-10 सितंबर को भारत में चीते को लाने के विषय पर एक विश्वस्तरीय बैठक होने जा रही है। इस बैठक में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंसर्वेशन ऑफ नेचर के विशेषज्ञ आएँगे और वे आगे की रूपरेखा तय करेंगे।
पूरे एशिया में 60 से ज्यादा चीते नहीं बचे हैं। भारत में आखिरी तीन एशियाई चीतों को 1947 में सरगूजा के महाराज ने मार डाला था। इन्हीं महाराज के नाम 1360 बाघों को मारने का काला रिकॉर्ड भी है।
इसी में यह तय होगा कि शुरुआत में किस तरह से चीतों का प्रजनन भारत में किया जाए और खुले में उन्हें छोड़ने से जुड़े खतरों से कैसे निपटा जाए। इन विशेषज्ञों से यह राय ली जाएगी कि चूँकि दक्षिण अफ्रीका का चीता एशियाई चीते से बहुत अलग है इसलिए उसे भारत में बसाना कितना व्यवहारिक होगा। दक्षिण अफ्रीका से भारत में चीते को लाने का प्रस्ताव पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को मुख्य रूप से प्रख्यात वन्य जीव विशेषज्ञ एम.के. रंजीत सिंह और दिव्य भानू सिंह ने तैयार करके मंत्रालय को सौंपा था। इन दोनों का मानना है कि दक्षिण अफ्रीका का चीता भारत में बसाया जा सकता है और इन दोनों ने दक्षिण अफ्रीका से शुरुआती स्तर की बात भी कर ली है। अब इस प्रस्ताव पर ही मंत्रालय ने पहल लेते हुए विश्वस्तरीय विशेषज्ञों की राय माँगी है। बहरहाल इतना को तय है कि चीता भारत आएगा, उनका प्रजनन कराया जाएगा और वे विशेष बाड़े में रहेंगे। अगर उन्हें खुले जंगलों में छोड़ना न संभव हुआ तो सीमित परिधि में चीता सफारी शुरू की जा सकती है। हालांकि वन्य जीवन और जीवों में दिलचस्पी रखने वालों का इंतजार शुरू हो गया है कि कब वे चीतों को भारत में दौड़ता देख पाएँगे।