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निवाला बन रहे हैं जंगल के राजा

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- रविशंकर रवि

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SUNDAY MAGAZINE
अब तक यह माना जाता था कि अरूणाचल प्रदेश के संरक्षित अभयारण्य में बाघ बेहद सुरक्षित हैं लेकिन पिछले दिनों बाघ की खाल के साथ पकड़ा गया एक तस्कर नए राज खोल गया। यहाँ के जनजातीय लोग सामूहिक आखेट की अपनी परंपरा के कारण बाघों को ही खा रहे हैं।

पूर्वोत्तर में प्राकृतिक संसाधनों के मामले में अरुणाचल प्रदेश सबसे समृद्ध माना जाता है। यहाँ के कुल भूभाग का अस्सी फीसदी क्षेत्र जंगल और पहाड़ियों से ढँका हुआ है इसलिए अरुणाचल प्रदेश में तरह-तरह के वन्यजीवों तथा वनस्पतियों की भरमार है। अरुणाचल प्रदेश के जंगलों को बड़े वन्यजीवों के लिए बेहद सुरक्षित माना जाता है।

वहाँ बाघों की अच्छी तादाद भी है। यही कारण है कि चांगलांग जिले के 'नामदफा टाइगर्स रिजर्व पार्क' और 'पक्के टाइगर्स पार्क' को राष्ट्रीय पार्क का दर्जा दिया गया है लेकिन अब अरुणाचल में भी बाघ सुरक्षित नहीं हैं। सामूहिक आखेट की आदिवासी परंपरा ने बाघों पर संकट बरपा दिया है। सामूहिक आखेट के दौरान लोग वन्यजीवों का शिकार करते हैं और शिकार में मारे गए वन्यजीवों का भोज करते हैं।

'नामदफा टाइगर्स रिजर्व पार्क' में बाघों के अलावा चीता, तेंदुआ, हाथी, लाल पांडा आदि की अच्छी खासी संख्या है। इसके अतिरिक्त पक्षियों की भी कई प्रजातियाँ वहाँ वास करती हैं। 'पक्के पार्क' में तो काले बाघ भी पाए जाते हैं। जंगल के सिकुड़ने और घने जंगलों तक मानवीय अतिक्रमण के बाद अंदरूनी इलाकों में रहने वाले बाघ भी सुरक्षित नहीं रहे।

पहले सिर्फ सामूहिक रूप से जानवरों का शिकार करने और खाने की परंपरा थी लेकिन अब जानवरों के अंगों के व्यावसायिक इस्तेमाल की लगातार बढ़ती प्रवृत्ति ने भी वन्यजीवों का जीना हराम कर दिया है। कुछ समय पूर्व तक यह बात जंगलों तक ही सीमित थी। लोगों को जंगली जानवरों के अंगों की तस्करी की जानकारी नहीं थी लेकिन यह सच है कि अरुणाचल प्रदेश से बड़े पैमाने पर वन्यजीवों के खाल और अन्य अंगों की तस्करी जारी है।

वेस्ट सियांग जिले के नुमुक गाँव की घटना प्रकाश में आने के बाद बाघ प्रेमियों और वन्यजीव संरक्षण में लगी संस्थाओं की चिंता बढ़ी है। घटना सात जनवरी की है। इस दिन कुछ लोगों की शिकायत पर एक व्यक्ति को बाघ की खाल के साथ गिरफ्तार किया गया। वह व्यक्ति तस्कर है और असम से नुमुक गाँव तक बाघ की खाल लाने पहुँचा था। इसके लिए उसने ग्रामीणों को डेढ़ लाख रुपए का भुगतान भी किया।

यह माना जा रहा है कि यह कोई पहली और अंतिम घटना नहीं है। इसके पहले भी असम से तस्कर उस इलाके में वन्यजीवों के अंग खरीदने के लिए आते रहे हैं। नुमुक एक सुदूर गाँव है। गाँव के लोगों ने एक बाघ को घेरकर मार डाला और उसका माँस खा गए। उस बाघ का वजन करीब सौ किलो था। यह गाँव पक्के रिजर्व फॉरेस्ट के करीब स्थित है। कुछ दिनों बाद लोगों ने बाघ की खाल बेच दी।

मामला प्रकाश में आने के बाद मुख्यमंत्री दोरजी खांडू ने पूरे मामले की रिर्पोट माँगी है जबकि वन विभाग ने मामले की जाँच के आदेश दिए है। वेस्ट सियांग जिले के पुलिस अधीक्षक हागे लालचंग का कहना है कि ग्रामीणों से मिली जानकारी के आधार पर रिर्पोट तैयार की जा रही हैं। ग्रामीणों के माध्यम से तस्करों तक पहुँचने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन गाँव वाले पूरी तरह चुप है। वे डर गए है और कुछ भी नहीं बताना चाहते हैं।

पुलिस ने उस गाँव में बाहरी व्यक्ति के प्रवेश पर रोक लगा दी है। वन्यजीव संरक्षण से जुड़ी संस्थाओं को इस बात की चिंता है कि इतने बीहड़ और दूरदराज के गाँव में बाघ की खाल की तस्करी का गंभीर मामला है हालांकि सबसे बड़ी दिक्कत स्थानीय जनजातीय समाज की परंपराओं से हो रही है। अरूणाचल में एक सौ से अधिक जनजातीय और उपजनजातीय समाज है। उनकी संस्कृति में सामूहिक रूप से आखेट करने की परंपरा रही है।

वे मिलकर जंगल के अंदर जाते हैं और पशुओं का शिकार करते हैं। उन्हें रोकने की ताकत पुलिस और वनविभाग के पास नहीं होती है। इसके साथ राज्य सरकार भी प्रतिबंध लगाने का साहस नहीं जुटा पाती है। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी आजीविका का सबसे बड़ा साधन जंगल ही है। वे जानवरों का शिकार नहीं करेंगे तो खाएँगे क्या?

कई बार तो ग्रामीणों के विरोध के सामने वनविभाग के कर्मचारियों को भी हाथ कर देने पड़े हैं। अरूणाचल प्रदेश के मुख्य वन संरक्षक जे. एल. सिंह का कहना है कि वन्यजीवों को बचाने के लिए वन एवं वन्यजीव कानूनों को सख्ती से लागू किया तो जाए लेकिन जब कोई अपराध परंपरा के साथ जुड़ जाता है तो उसे रोकना मुश्किल हो जाता है।

हर जनजातीय समूह में आखेट की परंपरा है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि जिस इलाके में एक किलो नमक अमुल्य उपहार माना जाता हो, उस इलाके के लोगों को यह कैसे समझाया जा सकता है कि वनविभाग की किताब में बाघ लुप्तप्राय जानवरों की श्रेणी में आता है इसलिए जमीनी स्तर पर वनविभाग के कानून को लागू करना मुश्किल है।

वैसे भ‍ी अरूणाचल में न्यायधीश नहीं होते हैं। जिला उपायुक्त ही प्रशासन के साथ न्यायधीश का दायित्व निभाते हैं। ऐसे में वन अपराध संबंधी मामले लंबित रह जाते हैं। कुछ लोगों का सुझाव है कि वन्यजीवों की हिफाजत के लिए ग्रामीणों के बीच जागरूकता फैलाना ही एकमात्र उपाय है लेकिन दुर्गम स्थान पर बसे ग्रामीणों तक पहुँचना भी तो मुश्किल है।

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