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रणथम्भौर राष्ट्रीय वन्य जीव उद्यान

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रणथम्भौर राष्ट्रीय वन्य जीव उद्यान ऊँची पहाड़ी पर पहले आबादी से भरपूर मजबूत रणथम्भौर किला था जिसे हथियाने के लिए एक शासक ने तलहटी में एक साल तक घेरा डाले रखा था।

कई युद्ध झेल चुका और कितने ही राजा और नवाबों के उत्कर्ष और पतन का साक्षी रहा रणथम्भौर किला समुद्र की सतह से 401 मीटर ऊँची पहाड़ी पर बना है। किला चारों तरफ अरावली और विंध्याचल पर्वमालाओं से घिरा है। इसकी तलहटी में 392 वर्गमीटर क्षेत्र में घना जंगल है जो राष्ट्रीय वन्य जीव उद्यान कहलाता है। यहाँ बाघ के अलावा तेंदुआ, हिरण, चीतल, नीलगाय, जंगली सूअर और कई तरह के पक्षी बड़ी संख्या में हैं।

किले और उद्यान तक पहुँचने के लिए सिंहद्वार तक एक ही सड़क है। इस किले का निर्माण सन्‌ 994 में किया गया था। किले के चारों तरफ ठोस बुर्ज और बुर्जियाँ हैं, जिनके अब अवशेष ही बचे हैं। किले के अंदर महल, छतरियाँ, फौजी छावनी, हिन्दू-जैन मंदिर, मस्जिद और फकीर की दरगाह के भी अवशेष देखे जा सकते हैं। यहाँ का गणेश मंदिर आज भी भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपक्ष सुदी चतुर्थी को मेला लगता है। लोग पैदल किले की परिक्रमा भी करते हैं। किले के एक तरफ अब भी कुछ परिवार रहते हैं जिनसे स्थान खाली कराने के सरकारी स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं।

सन्‌ 1192 में पृथ्वीराज चौहान के पोते गोविंदा ने इस पर राज किया था। बाद में उसके बेटे बागभट्ट ने किले में बसे शहर को खूबसूरत बनाया। सन्‌ 1282 में चौहान वंशीय राजा हमीर यहाँ सत्तारूढ़ थे। सन्‌ 1290 में जलालुद्दीन खिलजी ने तीन बार आक्रमण कर इसे जीतने का प्रयास किया। बाद में एक वर्ष तक घेरा डालकर 1301 में इसे जीता। हमीर की मौत के बाद चौहानों का राज खत्म हो गया। मुस्लिम विजेताओं ने किले की मजबूत दीवार को नष्टभ्रष्ट कर दिया।

मालवा के शासकों ने 16वीं शताब्दी में अपना राज जमाया। राणा सांगा ने यहाँ रहकर अपनी फौज को मजबूत किया। राणा सांगा को हराने के लिए मुगलों ने यहाँ कई बार आक्रमण किया जिनमें कई बार राणा सांगा घायल हुए। उनकी पराजय के बाद यह किला मुगलों के अधीन हो गया।

मुगल शासक शाह आलम ने 1754 में जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम को यह किला पुरस्कार स्वरूप दिया। तब से यह महाराजा के शिकार के लिए सुरक्षित रखा गया। महाराजा ने ही यहाँ पदम तालाब, राजा बाँध और मिलक तालाब बनवाए। पदम तालाब के पास और किले की तलहटी में जोगी महल बना हुआ है, जो अब वन विभाग का रेस्ट हाउस है। यहाँ आम पर्यटक को प्रवेश नहीं मिलता। महारानी एलीजाबेथ द्वितीय और एडेनबर्ग के ड्यूक के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी भी उद्यान में बाघ देखने आ चुके हैं।

रणथम्भौर किला जयपुर से करीब 200 कि.मी. दूर है। राष्ट्रीय वन्य जीव उद्यान में घुमाने के लिए 30 खुली जिप्सी और 15 केंटर अनुबंधित हैं। 30 जून के बाद तीन माह के लिए बरसात के दौरान यह इलाका बंद रहता है। जंगल में करीब 35 कि.मी. का रास्ता इन वाहनों द्वारा तीन घंटे में तय किया जाता है।

पिछले पन्द्रह वर्षों से इस क्षेत्र में वाहन चला रहे भानुप्रतापसिंह ने बताया कि पर्यटकों की संख्या निरंतर बढ़ रही है, लेकिन बाघ कभी कभार ही दिखता है। विभाग की बाघ गणना में यहाँ बीस बाघ होना बताया गया है लेकिन हिरण, चीतल, सांभर, नीलगाय ज्यादा दिखाई देते हैं। उन्होंने बताया कि पहले यहाँ बाघ दिखाने के लिए चार मार्ग थे, अब सात कर दिए गए हैं। खुले वाहनों में बिना किसी हथियार के पर्यटकों को जंगल में ले जाने के बावजूद दुर्घटना की आशंका से इनकार करते हुए एक अन्य वाहन चालक ने बताया कि यदि जंगल में गाड़ी में कोई खराबी हो जाए तो इसकी सूचना देने के लिए चालक को पैदल ही चौकी तक जाना होता है अथवा रास्ते से गुजर रहा कोई अन्य वाहन इसकी आगे सूचना देता है। जंगल में वन विभाग की करीब पन्द्रह चौकियाँ हैं। वनकर्मी भी खाली हाथ में डंडा लिए गश्त करते हैं।

जंगल में थोक, खेजड़ा, तेन्दू, बाँस, बेर, पीपल, बड़, गूलर, जामुन, कदम आदि के पेड़ बहुतयात में हैं। पानी की माकूल व्यवस्था नहीं होने से पेड़ सूखे पड़े हैं और कई पेड़ काट डाले गए हैं। यह क्षेत्र कारे जोन और बफर जोन में बँटा है। एक क्षेत्र में वन विभाग की इजाजत से पेड़ काटने और पशु चराने की अनुमति है, जबकि दूसरे में यह पूरी तरह निषिद्ध है।

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