कैसे प्रारंभ हुई 1857 की जंगे आजादी दास्तान?
चर्बी लगे कारतूस के विरोध से धधकी आजादी की ज्वाला
10 मई 1857 का दिन इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों से अंकित है, क्योंकि भारत को आजादी दिलाने की पटकथा इसी दिन मेरठ से लिखी गई। मेरठ से 85 सैनिकों ने चर्बी लगे कारतूस का प्रयोग न करने का विरोध करते हुए जो बिगुल फूंका, वह पूरे देश में क्रांति का एक आंदोलन बनकर फैल गया। मेरठ छावनी की इस क्रांति ज्वाला से ब्रिटिश हुकूमतों की जड़े हिल गई।
बहादुरशाह जफर, नाना साहब, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे सहित कई बड़े नाम इस क्रांति की अग्नि में कूदे और अंग्रेजों को चुनौती दी। इसे प्रथम स्वाधीनता संग्राम का नाम भी दिया गया है।
बैरकपुर छावनी में मंगल पांडेय के विद्रोह के बाद से भारतीय सिपाहियों में गोरे अंग्रेजों के खिलाफ नफरत बढ़ गई थी। देश को आजाद कराने के लिए सिपाहियों के साथ क्रांतिकारी रोटी-कमल का संदेश गांव-गांव और पूरे देश में घूमने लगा था। अंदर ही अंदर देश को आजाद कराने की चिंगारी सुलग रही थी।
मेरठ में अंग्रेज अफसरों की एक छोटी सी चूक अफसरों ने आजादी के सुनहरे सपनों को दिशा दे दी, फिर क्या था, मेरठ की माटी से क्रांति की चिंगारी ज्वाला में बदल उठी।
10 मई 1857 को मेरठ में सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा। अंग्रेज अफसर मेरठ को सबसे सुरक्षित छावनी मानते थे, इसलिए उन्हें बिलकुल आभास नहीं था कि भारतीय सैनिक मेरठ से विद्रोह कर देंगे।
इतिहास गवाह है कि 10 मई 1857 की सुबह अंग्रेज अफसरों के यहां कोई भारतीय काम करने नहीं गया। दोपहर तक सूचना फैल गई कि हिन्दुस्तानी विद्रोह करने वाले है। शाम होते होते विद्रोह के स्वर गति पकड़ते चले गये और तेज गोरे अंग्रेजों पर हमला बोल दिया गया।
सेंटर फॉर आर्म्ड फोर्सेज हिस्टोरिकल रिसर्च के फेलो डॉ. अमित पाठक के मुताबिक रविवार 10 मई 1857 का दिन था, अंग्रेजी हकुमत छुट्टी के मूड में थी। कोई गोरा बाजार में खरीदारी कर रहा था तो कोई चर्च में जाकर प्रभु की प्रार्थना में लीन था। भारतीय सैनिकों ने मौके का फायदा उठाते हुए रविवार शाम लगभग 5.30 बजे सदर बाजार से क्रांति की ज्वाला धधका दी।
पैदल सेना के परेड ग्राउंड में अंग्रेजों को निशाना बनाते हुए फायरिंग शुरू हो गई। सैनिक विद्रोह की शुरूआत के साथ सदर, लालकुर्ती, रजबन व आदि क्षेत्र में 50 से अधिक अंग्रेजों की मौत के साथ हुई। भारतीय पुलिस की तरफ से मेरठ सदर कोतवाल धन सिंह भी मौके पर पहुंचे।
मेरठ से शुरू हुई क्रांति पंजाब, राजस्थान, बिहार, असमम, तमिलनाडु व केरल में फैलती गई। लगभग 6.15 बजे के आसपास दोनों जेलें तोड़ दी गईं। भारतीय सिपाही विद्रोह कर चुके थे। अगले दो घंटे में पूरा छावनी इलाका जल उठा। शाम 7.30 के आसपास ये सभी मेरठ रिठानी गांव के निकट एकत्रित होकर दिल्ली रवाना हो गए। सोमवार की सुबह ये नावों के बने पुल को पारकर यमुना किनारे लाल किला की प्राचीर तक पहुंच गए। ब्रिटिश फौज को कुछ समझ में नही आ रहा था, वह रात के हमलों से बचते से दिल्ली पहुंची, लेकिन तब तक क्रांति की चिंगारी धधक चुकी थी।
आइये अब हम मेरठ छावनी में घटित घटनाक्रम का सिलसिलेवार जानते है।
23 अप्रैल: मेरठ छावनी में भारतीय पलटन की तीसरी अश्वरोही सेना के कमांडर ने निर्देश दिया कि सभी सिपाही अगली सुबह परेड ग्राउंड में पहुंचे। नई तरह की गोली (चर्बी वाली) चलाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। सिपाहियों को भनक लग चुकी थी कि यह कारतूस गाय की चर्बी से बने हुए है, इसलिए हिन्दू-मुस्लिम सैनिकों ने गंगाजल और कुरान हाथ में लेकर शपथ ली कि वे नई कारतूसों को मुंह से नही खोलेंगे।
24 अप्रैल: परेड ग्राउंड में पहुंचे 90 में से 85 सिपाहियों ने नई कार्टेज यानी गाय की चर्बी लगे कारतूसों के इस्तेमाल का विरोध कर दिया। इसके बाद इन सभी सैनिकों के लिए 25, 26 और 27 अप्रैल को जांच बिठा दी गई और तय हुआ कि विद्रोही सिपाहियों का कोर्ट मार्शल होगा।
30 अप्रैल-7 मई: इस बीच मेरठ के कई हिस्सों में छोटी-मोटी आग लगने की घटनाएं हुईं। कई सरकारी दफ्तरों के छप्पर जलाए गए। अंग्रेज इस भारतीय क्रांति को समझ नही पायें और छप्पर जलने की वजह गर्मी मानते रहे।
6-8 मई: चर्बी लगे कारतूस का विरोध करने वाले 85 सैनिकों के खिलाफ कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया चली। जिसमें 80 सिपाहियों को 10 वर्ष जबकि 5 सैनिकों को पांच वर्ष की सजा सुनाई गई।
9 मई: परेड ग्राउंड में सभी 85 भारतीय सिपाहियों को एकत्रित करते हुए अंग्रेजों ने उनसे असलहा छीने गए, फिर वर्दी उतार दी गई और सभी को जंजीरों में बांधकर जेल की सलाखों में डाल दिया गया।
इस घटना के बाद नगर वधुओं का खून खौल गया, उन्होंने बाजार में आते शेष भारतीय सिपाहियों को ललकारते हुए चूड़ी पहने को दे दी, जिससे सैनिकों में आक्रोश पनपा और उनका अंग्रेजों के खिलाफ खून खौल उठा था।
10 मई- क्रांतिकारियों ने मेरठ विक्टोरिया पार्क स्थित जेल को तोड़कर यहां बंद 85 सैनिकों को मुक्त कराया और दिल्ली कूच कर गए। 11 मई की सुबह क्रांतिकारी दिल्ली लालकिला पर पहुंचे और बहादुरशाह जफर से मिले। बस यही से क्रांति की पटकथा मेरठ के साथ पूरे उत्तर भारत में फैल गई। मेरठ के बाद झांसी, काल्पी, बिठूर, लखनऊ तक क्रांति की ज्वाला धधक उठी।