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प्रियंका पांडेय ‘‘पानी परात को हाथ छुओ नहीं,नैनन के जल सो पग धोए...’’ -
नरोत्तम दासमहाभारत काल के महामानव कृष्ण और उनके बाल सखा सुदामा की मित्रता पर लिखी गई नरोत्तम दास की इन दो पंक्तियों को पढ़कर आज भी मित्रता का सरल व सजीव अनुभव भाव-विभोर कर देता है। दरअसल ये शब्द सिर्फ किसी पद्य का भाग नहीं हैं, बल्कि हमारे-आपके जैसे कई लोगों के मन में छिपे वे भाव हैं, जो उसके प्रिय सखा के साथ बिताए यादगार पलों की अनुभूति कराने के लिए पर्याप्त हैं। चलिए, एक नजर डालते हैं, ऐसी ही कुछ शख्सियतों पर, जिनकी दोस्ती के खट्टे-मीठे अनुभवों को जानने की इच्छा अपने आप ही होती हो ...भगत सिंह-राजगुरु-सुखदेव - 23 मार्च, 1931। देश के नाम अपनी जिंदगी को हँसते-हँसते कुर्बान कर देने वाले भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत की यह तारीख हमें आज भी अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देती है। गरम दल विचारधारा वाले इन जाँबाजों को एक ही दिन फाँसी की सजा सुनाई गई। हाथ में हाथ डाले ये तीनों मस्तमौला चल पड़े, उस संसार की ओर, जहाँ पराधीनता जैसा कोई शब्द ही नहीं है। ऐसा माना जाता है कि इन तीनों को फाँसी के तख्ते पर पहले चढ़ने की इतनी जल्दी थी, कि यह एक-दूसरे से पहले मौत को गले लगाने के लिए प्रतियोगियों जैसे मचल उठे थे। चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में इन तीनों ने अपने सपनों के भारत को सच करने के लिए बेजोड़ प्रयास किए और हाथ थामे मौत को गले लगा लिया।
नेहरू-एडविना - 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन के साथ भारत की आजादी में शरीक होने आई उनकी 44 वर्षीय पत्नी एडविना माउंटबेटन और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के संबंध हमेशा से लोगों के लिए एक उत्सुकता का विषय रहे, पर इनके इस रिश्ते के पीछे छिपी दोस्ती व आपसी समझ इन्हें हमेशा एक यादगार दोस्त के रूप में प्रस्तुत करती है। 1947 के समय में मेशोब्रा के एक दौरे के दौरान इन दोनों की मित्रता प्रगाढ़ हुई थी। पंद्रह महीने के लिए भारत आईं एडविना के लिए नेहरू से मित्रता सिर्फ दो व्यक्तियों तक सीमित न होकर, दो राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व करती है। शायद यही वजह है कि एडविना की मृत्यु पर भारतीय नौसेना ने पंडित नेहरू की ओर से शोक समारोह में भाग लिया था।
वाजपेयी-आडवाणी - एक ही विचारधारा को एक दल का स्वरूप देने वाले राजनीति के दो अहम व्यक्तित्व अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की मित्रता भले ही समय के साथ-साथ कई उतार-चढ़ावों से गुजरी हो, पर इनके प्रगाढ़ संबंधों को नकारा नहीं जा सकता है। 1980 में अपनी समाजवादी विचारधारा को राजनीतिक स्वरूप प्रदान करते हुए इन दोनों ने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना करके बुनियादी रूप से एक जैसे विचारों का समर्थन किया। 2003 में एक साक्षात्कार के दौरान आडवाणी ने अपनी और वाजपेयी की मित्रता के विषय में बताया था कि उनकी पसंद इतनी मिलती-जुलती है कि किताबों से लेकर सिनेमा तक में उनकी पसंद के बीच समानता पाई जा सकती है। शायद यही वजह है कि भले ही वाजपेयी आडवाणी से कितने भी वरिष्ठ क्यों न हों, पर उनकी आपसी समझ इन दोनों को अच्छा मित्र साबित करती है।
लालू - नितीश - मित्रता संबंधों का ऐसा ताना-बाना है, जिसमें एक गाँठ भी पूरे जाल को तोड़कर रख देती है। कुछ ऐसा ही ताना-बाना रहा रेलमंत्री लालू यादव और नितीश कुमार की मित्रता का। दो पूर्णतः अलग व्यक्तित्वों पर एक जैसी प्रगतिवादी विचारधारा से अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत इन दोनों ने एक ही पटल से की थी। एक व्यक्तित्व है ठेठ, कठोर व उग्र वाणी, घमंडी गँवारू और अत्यंत आकर्षक व दूसरा व्यक्तित्व है, शांत, विनम्र, समझ-बूझ से भरा। आगे चलकर इन दोनों ने अपने व्यक्तित्व के साथ-साथ राहें भी अलग कर लीं। एक जहाँ अपने उग्रवादी और आकर्षक व्यक्तित्व के चलते देश-विदेश में अपना अलग स्थान बना चुका है, वहीं दूसरे ने अपनी प्रकृति के अनुकूल भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिलाकर अपना दायरा सीमित कर लिया। भले ही इन दोनों के सितारे अलग-अलग आसमान में चमक रहे हों, पर इनकी बुनियाद तो एक ही है...।
अमिताभ - अमर सिंह - बॉलीवुड शहंशाह और समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह की मित्रता तो आज शायद हर समारोह में इन दोनों की मौजूदगी में ही नजर आ जाती है। गाँधी परिवार से अमिताभ के अलगाव ने धीरे-धीरे उन्हें उनके पुराने मित्र अमर सिंह के करीब पहुँचा दिया। राजनीति के अपने छोटे से, परंतु कड़वे अनुभव के बाद जब अमिताभ अपनी कंपनी एबीसीएल के झटके से उबर रहे थे, तब उनके इस मित्र ने अपनी मित्रता को तहेदिल से निभाया और उनकी भरपूर मदद की। शायद यही वजह है कि बच्चन परिवार की हर गतिविधि में अमर सिंह की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है।
क्लिंटन - ब्लेयर - अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की मित्रता मात्र दो व्यक्तियों की मित्रता ही नहीं, बल्कि दो देशों के प्रतिनिधियों की भी मित्रता भी थी। क्लिंटन आज भी ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में बिताए अपने दो वर्षों को स्वर्णिम मानते हैं, जहाँ उनकी मित्रता टोनी से हुई। राजनीतिक पटल पर हमेशा आपसी समझ द्वारा एक-दूसरे को सहयोग प्रदान करने वाली इन दोनों शख्यितों की पत्नियाँ हिलेरी क्लिंटन और चैरी ब्लेयर भी एक दूसरे की अच्छी दोस्त हैं।
शंकर - जयकिशन - अगर फिल्म जगत की ओर नजर डालें तो ऐसी बहुत-सी जोड़ियाँ हैं, जो अपनी प्रगाढ़ मित्रता के खट्टे-मीठे अनुभवों से गुजरते हुए भी मित्रता का सुंदर उदाहरण हैं। इनमें से ही एक जोड़ी है, संगीतकार शंकर-जयकिशन की, जिन्होंने अपनी इस जोड़ी के करियर की शुरूआत 1949 में राज कपूर की फिल्म बरसात में संगीत देकर की। शायद ही इनके जमाने का कोई ऐसा बड़ा गायक हो, जिसके साथ इन्होंने काम न किया हो। भले ही आगे चलकर इन दोनों ने अपनी राहें अलग कर ली हों, पर संगीत की दुनिया में जब भी इनका नाम लिया जाता है, तो एक साथ ही लिया जाता है। ऐसी ही कुछ जोड़ियाँ हैं - लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, नदीम-श्रवण आदि की, जिनमें या तो दोस्तों की राहें जुदा हो गईं या फिर किसी एक की मृत्यु के बाद सिर्फ याद ही बाकी रह गई।
...तोड़ेंगे दम मगर, तेरा साथ न छोड़ेंगे
शोले फिल्म के जय-वीरू से कम नहीं हैं क्रिकेट की दुनिया के दो चमकते सितारे सचिन तेंडुलकर और विनोद कांबली, जो विद्यालय से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मंच पर एक-दूसरे का साथ निभाते आज भी बहुत अच्छे दोस्तों में गिने जाते हैं। वहीं हॉलीवुड की दुनिया में अभिनेत्री जेनिफर एनिस्टन और कर्टनी कॉक्स की मित्रता भी एक सराहनीय उदाहरण है। माना जाता है कि अपने पति ब्रैड पिट्ट से अलगाव के बाद जेनिफर कर्टनी अपनी दोस्ती का फर्ज निभाते हुए, उन्हें सँभलने में सहायता प्रदान की। वहीं आईटी जगत की दो प्रमुख हस्तियों - बिल गेट्स (माइक्रोसॉफ्ट के मालिक) और स्टीव जॉब्स (ऐप्पल कै मालिक) की फलती-फूलती मित्रता भी इन प्रतिद्वंदियों को एक-दूसरे के काफी करीब मानती है।
मित्रता का संसार बस यहीं तक सीमित नहीं है। ऐसे कितने ही मित्रता के उदाहरण हैं, जिन्हें शब्दों में बाँधना संभव ही नहीं है...।