अखिलेश श्रीराम बिल्लौरे
फिल्म शोले के उस दृश्य को दर्शक कैसे भूल सकते हैं जिसमें वीरू यानी धर्मेंद्र से जय यानी अमिताभ यह कहता है कि तू बसंती को लेकर जा मैं इनसे निपटता हूँ और धर्मेंद्र के मना करने पर अमिताभ वही पुराना सिक्का उछालकर कहता है दोस्त मैं जीता अब तुझे जाना ही होगा। जब जय वीरू की बाँहों में दम तोड़ देता है और वह सिक्का वीरू उठाकर देखता है तो कहता है- जय... इतना बड़ा धोखा।
दोस्ती बॉलीवुड के निर्माताओं का प्रिय विषय रहा है। दोस्ती की परिभाषा, मर्यादा, त्याग, आपसी भावना का खुलकर इस्तेमाल किया गया है। दोस्ती शब्द को लेकर ही कई फिल्में बन चुकी हैं। दोस्ती विषय पर अनेक प्रयोग हुए हैं और सफल भी रहे हैं। इस कतार में शामिल बहुचर्चित फिल्म शोले को कोई भूल ही नहीं सकता जिसमें जय-वीरू की जोड़ी ने धूम मचा दी थी। आज भी जय-वीरू को लेकर कई जुमले कसे जाते हैं। ... और तो और टीवी पर विज्ञापन भी इन्हें लेकर बने हैं।
दोस्ती में किस प्रकार की नोकझोंक होनी चाहिए, कैसे दोस्ती निभाई जाती है, कैसे दोस्त अपने दोस्त के लिए त्याग करता है, इस फिल्म में बखूबी दिखाया गया है। दोस्ती के जरिए फिल्म में सुखद हास्य भी है, दर्द भी है और दोस्त के लिए बदला भी है। दर्शकों के दिल को छूता यह प्रसंग आज भी लोगों के जेहन में ताजा है।
अमिताभ बच्चन को लेकर दोस्ती विषय पर अनेक फिल्में बनी हैं- जिनमें शोले के अलावा खून-पसीना, हेराफेरी, दोस्ताना, याराना, सुहाग, नमकहराम, आनंद आदि नाम प्रमुख हैं। इनमें अमिताभ के साथ कभी राजेश खन्ना आए तो विनोद खन्ना, धर्मेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा, अमजद खान, शशि कपूर आदि भी अमिताभ के दोस्त बनाए गए।
दोस्ती का जिक्र छिड़े वह भी फिल्मों को लेकर तो दिलीपकुमार को कैसे भूल सकते हैं। आखिर फिल्म नया दौर का वह राष्ट्रभक्ति गीत हम कैसे भूल सकते हैं जिसमें दोस्ती की सौंधी खुशबू आती है और देशभक्ति का जज्बा भी शामिल है। शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्यक्रमों की तो जैसे जान बन गया है यह गीत- ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का मेरे देश का यारों क्या कहना।
इसके बाद राजकपूर भी बखूबी याद आते हैं फिल्म संगम के जरिए। इसमें उनके दोस्त हैं राजेन्द्र कुमार, जिन पर राजकपूर दोस्ती में बेवफाई का आरोप लगाते हुए गाना गाते हैं- दोस्त दोस्त न रहा, प्यार प्यार न रहा। अंत में जब सचाई का अहसास होता है तो दोनों दोस्त अपनी जान देने को तैयार हो जाते हैं।
वास्तव में फिल्मों से हमें सीख लेना चाहिए। उनकी तमाम बुराइयों को परे रखकर उनमें अच्छाइयाँ ढूँढकर हम यदि जीवन जीने, रिश्ते निभाने, देशभक्ति करने और दोस्ती निभाने की शिक्षा लें तो हम इस देश को बहुत आगे ले जा सकते हैं।
प्रेम त्रिकोण में दोस्ती का समावेश निर्माताओं की खास पसंद रहा है। अनेक फिल्में ऐसी बनी हैं जिनमें दोस्ती की खातिर प्रेमी अपनी प्रेमिका को छोड़ देता है। संगम तो इसका उदाहरण है ही, इसके अलावा रामअवतार, साजन, सागर आदि में प्यार और दोस्ती के रूप दिखाए गए हैं। इन फिल्मों में दो नायकों की दोस्ती के बीच एक प्रेमिका रहती है और दोस्ती की खातिर दोनों अपने प्यार को भुलाना चाहते हैं। अंत में एक या तो मर जाता है या अपना प्यार त्याग देता है।
1981 में अमिताभ और अमजद खान को लेकर दोस्ती विषय पर अनूठी फिल्म आई थी- याराना। इस फिल्म में एक अमीर दोस्त अपने गँवार दोस्त को एक अच्छा कलाकार बनाने के लिए अपना सबकुछ त्याग देता है। यहाँ तक कि यह अपने परिवार से भी दूर हो जाता है। इसमें अपने रूठे दोस्त अमजद खान को मनाने का अमिताभ का अंदाज बहुत निराला है। जब वे भगवान भोलेनाथ से यार को मनाने की प्रार्थना करते हैं। इसमें किशोर दा ने अपनी आवाज दी है। गीत के बोल कुछ इस प्रकार हैं- ओ भोले-2 मेरे यार को मना ले वो प्यार फिर जगा दे।
कुल मिलाकर देखा जाए तो बॉलीवुड का हमेशा से ही यह प्रिय विषय रहा है। किसी न किसी रूप में दोस्ती का जिक्र अनेक फिल्मों में दृष्टिगोचर होता है। यार, दोस्त, फ्रेंड, मित्र आदि शब्दों को लेकर अनेक फिल्मों का निर्माण भी हुआ है। इसके इतर भी नाम भले ही दोस्ती शब्द से न जुड़े हों लेकिन विषय जरूर दोस्ती का रहा है। और इस विषय पर बने अनेक गाने भी खूब मशहूर हुए हैं।