जिंदगी की रपटीली राहों पर सफर आसान बनाने वाला हमराही है दोस्त। दगाबाजी, फरेब और स्वार्थ के बीहड़ में पूरे भरोसे के साथ टिमटिमाने वाला दीया है दोस्त। हमारे अंतरंग संसार को आह्लादित रखने वाली धुन है दोस्त। दोस्त है तो जिंदगी है। दुनिया में और कुछ न मिले और एक अच्छा दोस्त मिल जाए तो जीवन सफल है, लेकिन दुनिया की हर चीज मिल जाए और दोस्त न मिले तो सब कुछ व्यर्थ है।दोस्ती...इंसानी रिश्तों की रंगीनियों से भीगा एक खूबसूरत एहसास। परिवार और प्रियतम से अलग रिश्तों की एक नई धुरी। रक्त संबंधों से परे एक ऐसा नाता, जिसका रेशा-रेशा विश्वास की आँच पर पककर मजबूत हुआ है। मानवीय संबंधों के संग्रह का सबसे चमकता सितारा है दोस्ती... यानी मित्रता। सच! कितना गुदगुदाने वाला एहसास है यह।पता ही नहीं चलता जिंदगी की पगडंडी पर कब कोई अजनबी हौले से हमारा हमराही बन जाता है! हमारे बहुत करीब आ जाता है। हमारे सुख-दुःख से जुड़ जाता है। बहुत अपना-अपना सा लगने लगता है... हमारी आदत बन जाता है। दोस्ती हो जाने की बेखयाली का यह खुमार इतना बेसुध करने वाला होता है कि दोस्त के दूर चले जाने पर ही इस बाहर से महीन और नाजुक से दिखने वाले रिश्ते की मजबूती और गहराई का अंदाजा हो पाता है। बहुत खूबसूरत और निराली दुनिया है दोस्ती की। यारों की इस महफिल में प्रवेश कर पाना हर किसी के बस की बात नहीं। बहुत खुशनसीब होते हैं वे लोग, जिन्हें सच्चे अर्थों में दोस्ती के जज्बे को जी पाने का मौका मिल पाता है। जो एक बार दोस्ती के रंग में डूब जाता है, उसे फिर पुण्य कमाकर स्वर्ग में जाने या समाधि लगाकर ईश्वर को पाने के झंझट में पड़ने की जरूरत ही नहीं पड़ती। सच्ची दोस्ती में इतनी ताकत होती है कि वह इंसान को दुनियावी जंजालों से ऊपर उठाकर अलौकिक एहसासों से एकाकार करवा देती है।
मैं यह यकीन के साथ कह सकता हूँ कि स्वर्ग और नर्क की दो ज्ञात व्यवस्थाओं के अलावा एक तीसरी व्यवस्था भी मुकम्मिल की गई है- और वह है दोस्तों का स्वर्ग। चाँद में भी दाग होने की तर्ज पर स्वर्ग में भी कमियाँ हो सकती हैं, लेकिन दोस्तों के स्वर्ग में कमी की कोई गुंजाइश ही नहीं। वहाँ दिखावा और आडंबर जो नहीं होता! इसीलिए हर वह शख्स, जिसने ताउम्र सच्ची दोस्ती निभाई है, उसे दोस्तों के स्वर्ग में जगह मिलेगी।
जिंदगी में दोस्त और दोस्ती का इतना महत्व क्यों है? ...इसलिए कि यदि हमने इस धरती पर जन्म लिया है तो और कुछ नहीं तो माँ और पिता के रिश्ते तो हमें विरासत में मिलेंगे ही। इसके अलावा भाई, बहन, चाचा, दादा, मामा जैसे तमाम रिश्ते ऐसे होते हैं, जिन पर न तो इंसान की मर्जी चलती है और न अधिकार। दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है, जो इंसान को विरासत में नहीं मिलता। वह उसे हासिल करना पड़ता है या मिल जाता है, लेकिन उस तरह नहीं, जैसे और तमाम रिश्ते...।
दोस्ती के अलावा प्रेम एक ऐसा रिश्ता है, जो विरासत में नहीं मिलता।लेकिन वहाँ भी स्वार्थ होता है। आदि और अंत की कामना होती है, बंधन होता है, जकड़न होती है, लेकिन दोस्ती तो एक बहुत बेलौस-सा अंतर्संबंध है। बहुत अजीब-सा रिश्ता है यह! इसकी शुरुआत तो होती है, लेकिन अंत कहीं नहीं। बहुत बिखरा-बिखरा-सा, लेकिन फिर भी बहुत मजबूती से गुँथा हुआ। बहुत आसान-सा, लेकिन फिर भी बहुत जटिलताओं से भरा रिश्ता है यह।
रिश्तों के ताने-बाने पर खड़ी इस दुनिया की व्यवस्था में विरासत में मिले तमाम रिश्तों से जुड़ जाने के बाद भी इंसान को एक अंजाना-सा खालीपन महसूस होता है। विरासत में मिले तमाम रिश्तों को निभाने के लिए हमें किसी-न-किसी मुखौटे को ओढ़ना होता है। दुनिया के सामने खुद को पेश करने के लिए कोई-न-कोई आवरण, किसी छवि का मुलम्मा अपने ऊपर चढ़ाना होता है।
अनजाने में चढ़ा चुके इन मुखौटों और आवरणों के पीछे इंसान और भी अधिक तन्हा हो जाता है। अपनी तन्हाई के साथ रिश्तों के बियाबाँ जंगल में भटकते इंसान के दिल से सदा निकलती है 'कोई होता जिसको अपना हम अपना कह लेते यारों, पास नहीं तो दूर ही होता, लेकिन कोई मेरा अपना।' और वह 'अपना', जिसकी हमें तलाश होती है, वह होता है दोस्त।
दोस्त, जिसके सामने हम सिर्फ हम होते हैं। दुनियावी मुखौटोंकी कोई दीवार उसके और हमारे बीच नहीं होती। उसे हमारे बारे में सब पता होता है, अच्छा-बुरा, सही-गलत सब कुछ...। माता-पिता, रिश्तेदार, भाई-बहन सभी से बात करते वक्त हमें कुछ औपचारिकताओं का ध्यान रखना होता है, लेकिन दोस्त के साथ इसकी कोई जरूरत ही नहीं।
वहाँ आप सिर्फ आप हैं। आपका मित्र आपने सुख-दुःख का सच्चा हमसफर है। वह आपकी अंतरंग दुनिया का एकमात्र पहरुआ है। उसे पता है कि आप किस बात से और कब खुश हैं और कब दुःखी? मोहब्बत की नाकामयाबी के सदमे से उबरना हो या शादी तय हो जाने काउल्लास साझा करना हो, ऐसे में किसी की सबसे पहले याद आती है तो वह है दोस्त।
आप किसी बड़ी उलझन में हों और आपका दोस्त बस इतना कह दे कि 'यार तू चिंता मत कर। सब हो जाएगा, मैं हूँ न।' तो आपकी सारी चिंता एकदम काफूर हो जाती है। आप दोस्ती के मजबूत वटवृक्ष पर अपनी तमाम चिंताओं को टाँगकर मित्रता की छाया में निश्चिंत रह सकते हैं। दोस्ती निभाने के लिए इंसान अपने खुद के सुखों और परेशानियों को भूलकर भी जुटा रहता है। दोस्त के सुख के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है, क्योंकि दोस्ती एक जज्बा है, एक जुनून है और कई बार पागलपन भी।
आज जब संयुक्त परिवार खत्म हो रहे हैं और संबंधों की बुनियाद दरक रही है, तब तो दोस्त और दोस्ती का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है। 'अपने', जिन्हें मदद करनी चाहिए थी, वो तो मुँह चुराकर दूर हो जाते हैं, लेकिन दोस्त सीना तानकर सामने आ जाते हैं और हमारे सारे गम खुद हँसते-हँसते झेल लेते हैं। वे दोस्त ही होते हैं, जो हमें कर्मपथ पर आगे बढ़ने का हौसला देते हैं।
दरअसल दोस्त ही बहुत हद तक आपके जीवन की दिशा तय करते हैं। आपकी महत्वाकांक्षाओं का पोषण करके उन्हें लक्ष्य तक पहुँचा देने की महत्वपूर्ण भूमिका दोस्त की ही होती है। दोस्त के साथ मिलकर कर्मपथ की चुनौतियों का सामना करते वक्त आपकी शक्ति दुगुनी नहीं, हजार गुनी हो जाती है। दोस्तों की महफिल में लेना और देना जैसी कोई व्यवस्था नहीं होती। वहाँ तो बस देना ही देना होता है, अपने दोस्त के लिए, अपने यार के लिए, जब जहाँ जितना हो सके कर दो और भूल जाओ।
कोई आपका दोस्त है तो बस फिर वो आपका दोस्त है। झगड़ा हो जाए तो भी वो आपका दोस्त है। यही तो इस संबंध की विशेषता है। आपके भावना संसार का साजिंदा है दोस्त। दोस्ती के सुर और विश्वास की लय पाकर जिंदगी की सरगम बहुत सुरीली हो जाती है। दोस्ती में कुछ भी बेकार नहीं जाता। रात-रात भर बातें करना, शहर की गलियों में आवारा घूमना, कॉफी हाउस या चाय की गुमटियों में घंटों बिता देना, होली पर हुड़दंग मचाना, संजीदा लम्हों में एक-दूसरे को भरोसा दिलाना, बड़े लक्ष्य के लिए एक-दूसरे को प्रेरित करना, ये सब तथा और भी बहुत कुछ दोस्ती की अमूल्य धरोहर है। इसमें से कुछ भी फालतू नहीं जाता।
जिंदगी की रपटीली राहों पर सफर आसान बनाने वाला हमराही है दोस्त। दगाबाजी, फरेब और स्वार्थ के बीहड़ में पूरे भरोसे के साथ टिमटिमाने वाला दीया है दोस्त। हमारे अंतरंग संसार को आह्लादित रखने वाली धुन है दोस्त। दोस्त है तो जिंदगी है।
दुनिया में और कुछ नमिले और एक अच्छा दोस्त मिल जाए तो जीवन सफल है, लेकिन दुनिया की हर चीज मिल जाए और दोस्त न मिले तो सब कुछ व्यर्थ है। इस हकीकत को हर वो इंसान पूरी शिद्दत से महसूस कर सकता है, जिसके पास दोस्त नहीं है। जिंदगी के हर एहसास को उसके पूरे वजूद के साथ जी लेने के लिए जरूरी है एक दोस्त। बात बिल्कुल सही है यारों कि 'जिंदगी का नाम दोस्ती, दोस्ती का नाम जिंदगी।'