Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

दोस्त का दोस्त अपना भी दोस्त

मित्रता दिवस पर विशेष

हमें फॉलो करें दोस्त का दोस्त अपना भी दोस्त
दिलीप चिंचालक
WDWD
मेरे घर से थोड़ी ही दूर वोकुर्ना स्ट्रीट के एक बंगले में वह रहता था। यों तो वह बरामदे में खुर्राटे लेता पड़ा रहता, पर ज्यों ही मैं वहाँ से निकलता, उस पर शैतान सवार हो जाता। जब तक मैं गली के उस छोर तक नहीं निकल जाता, उसका भौंकना जारी रहता। उस बंगले में मुझे कभी कोई नजर नहीं आया। खिड़कियाँ जरूर खुली रहती थीं। शायद परदों की आड़ से वे लोग मेरी फजीहत का मजा लेते थे।
webdunia
WDWD

सड़क की दूसरी ओर से फुटपाथ पर से गरदन झुकाए, सहमा हुआ-सा अब तक मैं कोई पंद्रह-बीस बार गुजर चुका था। असल में यह मेरा ही भुलक्कड़पन था जो बार-बार मुझे वोकुर्ना स्ट्रीट से गुजरने पर मजबूर करता। कॉलेज से लौटते समय मैं हमेशा ब्रेड, अंडे, चाय या चीनी लाना भूल जाता। फिर शाम हो जाने के बाद यही एक डेलीकटेसन (शाम को देर तक और सप्ताहांत भी खुली रहने वाली, यूनानी/इतावली लोगों द्वारा रिहायशी इलाके में चलाई जाने वाली दुकान) पास में थी जिसका रास्ता इस गली से होकर था।

दुकान से लौटते वक्त और भी डर लगता कि अबकी बार वह कुत्ता दूसरे छोर के फाटक से निकल आएगा। उसे फुसलाने के लिए मैं कुछ बिस्किट भी खरीद लेता। यही मेरा आखिरी बचाव था। परंतु इस समय वह हमेशा गायब रहता। गला फाड़कर भौंकने के बाद शायद पानी पीने के लिए घर के पिछवाड़े जाता होगा और फिर वहीं ढेर हो जाता होगा।

कई दिनों बाद मेरे ध्यान में आया कि इसी गली में एक और कुत्ता भी रहता है- वोकुर्ना और हिल स्ट्रीट के कोने पर एक कॉटेजनुमा घर में वह अपनी बूढ़ी मालकिन के साथ रहता था। वह भौंकता नहीं था। चुपचाप बैठा हुआ इक्के-दुक्के राहगीरों को देखता-भर रहता था।

मैं वहाँ से गुजरते समय उसे हाथ दिखाता, सीटी बजाता और बुलाता पर वह बरामदे में पड़ी कुर्सी पर बैठा देखता रहता। वह काफी दिनों से मुझे देखता रहा होगा। उसे पता था कि यहाँ से एक बार गुजरने के दस मिनट बाद मैं दुबारा वहीं से निकलता हूँ। क्योंकि मेरे दुकान की ओर जाने के बाद वह बंद दरवाजे के पास बैठा मेरा इंतजार करता और मेरी आहट सुनते ही फिर बरामदे में कुर्सी पर जा बैठता और अपनी शरारत भरी आँखों से मुझे देखता रहता।

webdunia
WDWD
एक दिन दुकान से लौटते समय शैतान के लिए खरीदे हुए बिस्किट कॉटेज के अहाते में बने गैस-मीटर के बक्से के ऊपर रखकर मैं आगे बढ़ गया। पिल्ले की ओर देखा ही नहीं। काफी दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा।

उस दिन दोपहर को मैं कॉलेज से घर लौट रहा था। गर्मियाँ शुरू हो गई थीं। मौसम बाहर घूमने का ही था। हिल स्ट्रीट में घुसते ही मैंने देखा कि सामने सँकरे फुटपाथ पर से एक बूढ़ी महिला चली आ रही है। करीब आते ही मैंने उन्हें नमस्कार किया, उत्तर में मुझे नमस्कार करते हुए वे चौंक पड़ी, 'अरे तुम तो निकोलस के दोस्त हो!' फिर चश्मा ठीक करते हुए उन्होंने पूछा, 'तुम्ही उसके लिए बिस्किट रख के जाते हो ना?'

बात अब मेरी समझ में आई - तो उस पामेरियन पिल्ले का नाम निकोलस है! बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने बताया कि वह रोज शाम को तुम्हारी प्रतीक्षा करता है। घर में दूध और केक खाने के लिए भी नखरे करेगा पर गैस-मीटर पर रखे बिस्किट जरूर खाएगा। अब उनका आग्रह था कि जब मैं वहाँ से निकलूँ तो उनके घर जरूर आऊँ।

दूसरे दिन शाम को मैं मिसेज स्मिथ के घर जा पहुँचा। मेरे स्वागत के लिए वे दरवाजे पर ही खड़ी थीं। निकोलस का मेरा परिचय तो था ही। अब उसने मुझे सूँघकर और मैंने उसे थपथपाकर अपनी दोस्ती पक्की की। मिसेज स्मिथ वहाँ अकेली ही रहती थीं। उनकी बस एक बेटी ही थी जो अब कनाडा में जा बसी थी।

अब रोज शाम को मिसेज स्मिथ के घर जाना मेरा नियम बन गया। वे और निकोलस दोनों ही मेरा इंतजार करते। मेरे वहाँ पहुँचते ही निकोलस उछल-कूद करके खूब उत्पात मचाता। तब पहले उसे साथ लेकर मील-दो-मील की सैर करने जाता। हमारे लौटने पर मिसेज स्मिथ चाय बनातीं और किसी-किसी दोपहर विशेष रूप से मेरे लिए बनाया हुआ केक भी खिलातीं।

मिसेज स्मिथ का ज्यादातर समय घर में ही बीतता। दिनभर निकोलस से बातें करने के अलावा दूसरा मनबहलाव भी उनके पास नहीं था। शायद इसीलिए निकोलस भी उदास रहता और खाने-पीने में उसका मन नहीं लगता।

इन लोगों से मिलने के बाद मैं भी अधिक खुश रहने लगा था। मेरे लिए ब्रेड मिसेज स्मिथ ही खरीद कर रखतीं। अब मुझे वोकुर्ना स्ट्रीट के कुत्ते का सामना नहीं करना पड़ता, यहाँ तक कि मैं उसे भूलने लगा था। उसका भौंकना सुने भी काफी दिन हो गए थे। निकोलस के साथ घूमने जाते समय एक-दो बार मैंने उसे देखा - जॉली के पीछे से हमें देखते हुए। अब मुझे उसकी परवाह नहीं थी। हाँ, निकोलस जरूर कभी-कभी जॉली तक दौड़ जाता, दोनों नाक भिड़ाते और निकोलस फिर मुझे आ मिलता।

वह सप्ताह का आखिरी दिन था। खराब मौसम के कारण मिसेज स्मिथ बाहर नहीं निकल पाई थीं और कल बाजार बंद था। बाहर मामूली-सी बारिश थी, सो जेब में हाथ घुसाए मैं ही नुक्कड़ की दुकान तक चला गया। वापसी में भारी पैकेट उठाए मैं अपने विचारों में खोया चला आ रहा था कि अचानक मैंने देखा - सामने वोकुर्ना स्ट्रीट का शैतान फुटपाथ पर खड़ा मुझे देख रहा है!

मेरी हालत खराब थी। मैं इतना ज्यादा डर गया कि वहीं खड़ा का खड़ा रह गया। हौले-हौले वह कुत्ता मेरे पास आया और मुझे सूँघने लगा। जब सूँघ चुका तो मुझसे आँखें मिलाते हुए उसने अपनी दुम थोड़ी-सी हिला दी। मुझे कुछ धीरज मिला और हिम्मत से मैंने उसके सिर पर हाथ फेरा। उसने हाथ को थोड़ा-सा चाटा, फिर हल्के-से दाँतों में पकड़ा और जैसे ही मैं चलने लगा वह जाकर बंगले के दरवाजे में खड़ा हो गया।

धीरे-धीरे कदम बढ़ाता हुआ मैं मिसेज स्मिथ के घर पहुँच गया। जब मैंने यह रोमांचकारी घटना उन्हें सुनाई तो वे जोरों से हँस पड़ीं। फिर बोलीं कि जैसे मैं उसके रंग-रूप से डरता रहा, वैसे ही वह मेरी दाढ़ी और चाल-ढाल से मुझ पर शक करता रहा होगा परंतु अब वह जानता है कि मैं उसी के एक जातभाई निकोलस का दोस्त हूँ।

दूसरे दिन से मिसेज स्मिथ के लिए सौदा भी मैं ही लाने लगा- उसी वोकुर्ना स्ट्रीट के पार वाली दुकान से... और लौटते समय अब दो बिस्किट उस बंगले के खुले दरवाजे के अंदर भी रखने लगा।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi