मीनू जैन
कृति प्रदत्त रिश्तों का बंधन जन्म के साथ ही जुड़ा होता है। इन पारिवारिक रिश्तों के साथ-साथ एक बहुत महत्वपूर्ण रिश्ता होता है- दोस्ती का रिश्ता, जो हम अपने विवेक से बनाते हैं। मित्र बनाना या मित्रता करना मानवीय स्वभाव है। छोटे बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्गों तक सभी के मित्र होते हैं।
कहा जा सकता है कि बिना मित्रों के सामाजिक जीवन नीरस होता है। कुछ लोग मित्र बनाने में माहिर होते हैं तो कुछ लोगों को दोस्ती करने में बहुत समय लगता है। मित्र पाने की राह है खुद किसी का मित्र बन जाना।
* मित्रता करने के लिए स्वयं पहल करने से झिझकें नहीं।
* मुस्कुराहट के साथ पहला कदम बढ़ाएँ। अपना परिचय देते हुए सामने वाले का परिचय प्राप्त करें।
* वार्तालाप के दौरान अपनी हैसियत या पैसे का रौब जताने का प्रयास न करें और न ही दूसरे की स्थिति को कमजोर बताने की कोशिश करें।
* कुछ अपनी कहें तो कुछ सामने वाले की भी सुनें।
* एक-दूसरे की रुचियों के बारे में जानने का प्रयास करें। समान अभिरुचियों वालों में दोस्ती होने की संभावना अधिक रहती है। मगर एक-दूसरे से विपरीत शौक रखने वालों में मित्रता न हो, ऐसा भी नहीं।
मित्रता का रिश्ता बेहद खूबसूरत होता है, यदि उसमें छल, कपट का समावेश न हो। विद्वानों ने कहा है- 'मित्रता करने में धैर्य से काम लें। किंतु जब मित्रता कर ही लो तो उसे अचल और दृढ़ होकर निभाओ।
मित्र बनाते वक्त
* किसी की ऊपरी चमक-दमक देखकर उससे आकर्षित होकर मित्र न बनाएँ।
* जो सभ्य और शालीन हो।
* जो पढ़ाई, खेलकूद या सामाजिक गतिविधियों में रुचि रखे।
* जिसकी संगति अच्छी हो।
पारिवारिक रिश्तों के विपरीत बिना किसी अधिकार के परस्पर सहयोग और विश्वास ही सच्ची मित्रता की बुनियाद होती है। सच्चे मित्र हमारे जीवन में एक अहम भूमिका निभाते हैं। वे हमारे जीवन के हर उतार-चढ़ाव के राजदार होते हैं। बचपन की मित्रता बड़ी निश्छल और गहरीहोती है और यह समय के साथ-साथ और गहरी होती जाती है, यदि इसमें स्वार्थ का समावेश न हो तो।
पढ़ाई के दौरान होस्टल में रहने के समय बने मित्र भी आजीवन दोस्ती निभाते हैं। उस दौरान एक साथ की गई शरारतें और वॉर्डन की डाँट के दौरान एक-दूसरे की गलती को अपने ऊपर लेकर सजा के लिए तैयार रहना जैसी घटनाएँ हों या अपने घर से आई मिठाई को दोस्त की पसंद होने के कारण उसे खिला देना, जैसा वाकया दोस्ती को मजबूती प्रदान करता है। सच्चा दोस्त एक सही पथप्रदर्शक और सलाहकार की भूमिका निभाता है।
मित्र एक ऐसा साथी होना चाहिए जिसे हम अपना राजदार बना सकें। हमारी हर छोटी-बड़ी, अच्छी बुरी बातों को उसके साथ बाँट सकें। मित्र ऐसा हो जो जीवन के हर पड़ाव पर हमें संबल प्रदान कर सके। चाहे करियर के चुनाव में मदद लेनी हो तो माँ के साथ-साथ मित्र ही याद आता है। जरूरत पर काम आने वाला ही सच्चा मित्र कहलाता है।
यह बात पूरी तरह सही है, क्योंकि मित्रता की सार्थकता को संकट के समय ही तौला जाता है। विपरीत परिस्थितियों में जब रिश्तेदार मुँह फेर लेते हैं तो दोस्त आगे बढ़कर सारी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर मित्रता को सही अर्थ प्रदान करता है।
मित्रता कर आजीवन उसे निभाने के अनेक उदाहरण मिलते हैं। 'कृष्ण-सुदामा' की दोस्ती की आज भी मिसाल दी जाती है। एक सच्चे दोस्त में अपने मित्र की सही बात को सही और गलत को गलत कहने का माद्दा होना जरूरी है। मित्र की खूबियों की तारीफ करें तो उसकी खामियों को अकेले में बताने से परहेज न करें। मित्रों के बीच स्वार्थ और पैसों का लेनदेन, अहं जैसी बातें नहीं आना चाहिए, क्योंकि ये मित्रता की डोर को कच्ची कर देती है।
दोस्ती की आड़ में कई मौकापरस्त लोग विश्वासघात कर इस खूबसूरत रिश्ते को बदनाम करतेहैं। सच्चे मित्र हीरे की तरह कीमती और दुर्लभ होते हैं। झूठे दोस्त पतझड़ की पत्तियों की तरह हर कहीं मिल जाते हैं। आज सहशिक्षा और महिलाओं के घर की चारदीवारी से निकल बाहर काम करने के कारण लड़कियों और महिलाओं की दोस्ती सिर्फ लड़कियों से ही नहींअपितु लड़कों और पुरुषों के साथ भी होने लगी है।
किसी लड़के के लिए एक लड़की भी अच्छी मित्र साबित हो सकती है तो किसी कामकाजी महिला की मित्रता किसी पुरुष सहयोगी के साथ होना लाजिमी है। आज के आधुनिक संदर्भ में ऐसी मित्रता एक नया सोच, एक नया दृष्टिकोण देती है।
आवश्यकता है तो इतनी कि इसमित्रता के बीच दोस्ती की मर्यादा और गरिमा का ध्यान रखा जाए। मित्रता एक-दूसरे की भावनाओं को समझने का पैमाना होता है न कि एक-दूसरे पर अपनी सोच और इच्छाओं को लादने का पर्याय। सच्ची मित्रता जीवन में एक वरदान होती है।