डॉ. दीपक मंशारमानी
व्यक्तित्व की समानता ही दोस्ती को जन्म देती है और इसमें व्यक्ति पृष्ठभूमि, धर्म, शिक्षा आदि के कोई मायने नहीं होते हैं। वर्तमान में लोगों के पास समय नहीं है। इस कारण दोस्ती में घनिष्ठता में कमी हो रही है और गंभीरता भी नहीं है।
दोस्ती तभी परवान चढ़ेगी, जब दो व्यक्ति एक-दूसरे को अच्छी तरह से जान जाएँ, परंतु समय के अभाव में हम संबंधों को पकने ही नहीं देते और यही कारण है कि अब पहले की तरह पक्की दोस्ती के किस्से ज्यादा सुनने को नहीं मिलते। क्लबों में दोस्ती या टोबेको दोस्ती (तंबाकू या सिगरेट पीने के दौरान) को दोस्ती कहना ठीक नहीं होगा। छोटे बच्चों में जरूर भावनाएँ होती हैं दोस्ती के प्रति, परंतु उन्हें दोस्तों के साथ अपनी भावनाएँ बाँटने के लिए समय तो दीजिए।
दोस्ती सतही हो गई है, जिसमें एक दोस्त दूसरे को अपनी सफलता की खुशी बाँटने में शामिल कर लेता है, परंतु असफलता छिपाता है, जबकि दोस्ती में सुख-दुःख दोनों में साथ देने का वादा होता है। युवा अपने दोस्त वही बनाते हैं, जिनसे उनकी आदतें मिलती हों, जैसे शरारत करने वाले आपस में दोस्त बन जाते हैं।
विपरीत लिंग की दोस्ती में व्यक्ति अपनी भावनाएँ ज्यादा अच्छी तरह से बाँट लेता है, जिसमें सुख और दुःख दोनों होते हैं, परंतु इसमें आकर्षण दूसरा होता है। इस कारण इसे दोस्ती का नाम नहीं दिया जा सकता।