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Friendship Day: दोस्ती के बीच दरारें

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अनिरुद्ध जोशी

आखिर दोस्ती के क्या मायने हैं और दोस्त किसे कहते हैं, इस पर पोथी-पानड़े भरे पड़े हैं लेकिन पढ़ने की फुरसत नहीं है। पढ़ भी लो तो समझने की मशक्कत नहीं कर सकते हैं। भागमभाग भरे जीवन में दोस्ती लगभग खत्म ही हो चली है। हाँ, दोस्तों की दोस्ती कहीं बची है तो दुनियाभर के वह गाँव हैं जहाँ शहरी सभ्यता ने अभी दखल नहीं दिया है। यार-गोईं अभी भी एक-दूसरे के लिए जान देने के लिए तैयार है।
 
दूसरी ओर शहरी सभ्यता में हिंदू का दोस्त हिंदू, मुसलमान का पक्का दोस्त कोई मुसलमान, गुजराती का पक्का दोस्त गुजराती और स्वार्थी का दोस्त एक नया स्वार्थी। क्या यही दोस्ती है?
 
समान जाति, प्रांत, देश, धर्म या व्यापार के व्यक्ति से दोस्ती करने या रखने में हम स्वयं को कंफरडेबल महसूस करते हैं। ऐसा क्यूँ? क्योंकि हमें दूसरे पर विश्वास नहीं है, खुद पर भी विश्वास नहीं है। देश, धर्म और जाति में कट्टरपन की हद के पार तक बँटे मानव समाज में अविश्वास की भावना स्वाभाविक ही हो चली है लेकिन क्या यह उचित है?
 
स्कूल का दोस्त : हमें हमारे स्कूल के दोस्तों की अकसर याद आती है, क्योंकि वे सभी निच्छल और निष्‍कपट होते थे या हैं। बगैर सोचे-समझे की गई दोस्ती में दोस्तों के साथ रहने और खेलने का मजा होता था। उनमें अंतरंगता होती थी। एक-दूसरे का खयाल रखते थे। समाज, जाति या धर्म का कोई भान नहीं था। स्कूल के कई दोस्त आज भी आपके दोस्त हो सकते हैं। ढूँढें अपने स्कूल के दोस्तों को और उनसे फिर से दोस्ती कायम करें।
 
कॉलेज का दोस्त : व्यक्ति जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है उसमें देश, धर्म, समाज और संसार की चालाकियाँ समाने लगती हैं। इसीलिए कॉलेज तक आते-आते व्यक्ति तथाकथित रूप से समझदार हो जाता है। अब वह दोस्ती सोच-समझकर करता है। इसमें स्वार्थ भी हो सकता है और मजबूरी भी। ऐसा भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति आपको स्वभाव से अच्छा लगे और वह स्वाभाविक ही आपका दोस्त बन जाए लेकिन फिर भी आप उसके प्रति आशंकित रहेंगे। तब भी दोस्तों के प्रति विनम्र रहें और उनसे अच्छे से ही मिलें।
 
दोस्त का दोस्त : हमारी दोस्ती भी अकसर दोस्तों के माध्यम से ही होती। इसीलिए कई दफे यह होता है कि दोस्त का दोस्त हमारा पक्का दोस्त बन जाता है और पहले वाला दोस्त पीछे छूट जाता है। नहीं छूटता है तो वह दोस्त सोचता रहता है कि आजकल यह मुझे छोड़कर मेरे दोस्त के साथ अधिक रहता है। उसे लगता है कि मैं इनका दोस्त नहीं बल्कि इनकी दोस्ती कराने वाला एक माध्यम भर हूँ। लेकिन ध्यान रहे यदि आप उसकी उपेक्षा करते हैं तो आप कभी भी किसी के भी समक्ष अच्छे दोस्त साबित नहीं हो सकते क्योंकि कल यदि आपको कोई और दोस्त मिल जाएगा तो फिर आप दोस्त के दोस्त को भी छोड़ देंगे।
 
प्रेमिका और प्रेमी : प्रेमी-प्रेमिका में दोस्ती की अपेक्षा तथाकथित प्रेम होता है। एक ऐसा प्रेम जो कभी भी किसी भी बात पर धराशायी हो सकता है, क्योंकि दोनों एक दूसरे से इतनी अपेक्षाएँ जोड़ लेते हैं कि फिर जब उन अपेक्षाओं में से एक भी पूरी नहीं होती तो प्यार में दरारें पड़ना शुरू हो जाती हैं। दोस्ती स्वतंत्रता की पक्षधर है। यदि प्यार में दोस्ती का तड़का नहीं है तो प्यार पूरी तरह से बे-स्वाद ही रहेगा।
 
पति और पत्नी : दुनिया के कितने पति-पत्नी होंगे जो एक-दूसरे को दोस्त समझते होंगे, सुख-दुःख का साथी समझते होंगे। इसका आँकड़ा जुटाना मुश्किल है। पत्नियाँ तो सिर्फ घर और बच्चों को संभालने वाली होती हैं। कभी-कभार उसे घुमा-फिरा लाओ, साड़ी वगैरह दिला दो, बस हो गया फर्ज पूरा। पति कभी मुश्किल में होता है तो कई दफे तो पत्नियों को पता ही नहीं चलता और चलता भी है तो उसका साथ देने के बजाय उसे प्रवचन देने लगती हैं। या फिर थोड़ी-सी सलाह दे दो, अच्छा भोजना करा दो बस हो गया पूरा फर्ज। अंतरंगता और दोस्ती के क्या मायने होते हैं यह तो बहुत कम ही पति-पत्नी समझ पाते होंगे।
 
प्रकृति से दोस्ती : मानव जाति अपने चरित्र और स्वभाव से इतनी चालाक हो चली है कि अब जी नहीं करता है कि किसी को दोस्त बनाएँ। चोट खाया व्यक्ति ऐसा सोच सकता है। तब ऐसे में उसे प्रकृति को अपना दोस्त बनाना चाहिए। ऑफिस, स्कूल या और कहीं भी आते-जाते बीच में जो भी वृक्ष दिखता हो सबसे पहले तो उसे ही आप अपना मित्र बना लें। उसके हरे-भरे रहने और लंबी उम्र की कामना करें। फिर आपके आसपास कोई जानवर होगा, उसे दोस्त बना लें। आप प्रकृति के किसी भी तत्व को अपना दोस्त बना सकते हैं।
 
ऊपर आसमान है, नीचे धरती है दोनों के बीच बादल, पक्षी और हवा, कुछ भी हो सकता है और सभी आपके दोस्त बनने के लिए तैयार हैं। कभी जंगल की सैर करें, ऐसा करने से आपके जीवन में खुशियाँ बढ़ जाएँगी।
 
दुश्मन दोस्त : 'मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे।' ज्यादातर दुश्मनी दोस्तों से ही होती है, जो कि दोस्ती के विरुद्ध है। दरअसल दोस्त यदि सचमुच ही दोस्त है तो फिर दुश्मनी का सवाल ही नहीं उठता। ‍दुश्मनी के कई कारण हो सकते हैं। चलताऊ कारणों में प्रतिस्पर्धा के कारण उपजी ईर्ष्या, दो दोस्तों के बीच एक लड़की और अहंकारपूर्ण बातें।
 
दोस्ती में लड़ाई का मजा : यदि दो या चार दोस्त आपस में कभी सामान्य बातों या सामान्य तौर पर लड़ते-झगड़ते नहीं हैं तो दोस्ती में कभी प्रगाढ़ता नहीं आ पाएगी। नोकझोंक या सामान्य लड़ाई-झगड़े से दो दोस्त आपस में और अधिक जुड़ जाते हैं। इसलिए लड़ाई-झगड़ा करें लेकिन ऐसे शब्दों और वाक्यों का प्रयोग न करें जिससे आपके दोस्त का दिल दुखता हो या उसका इगो हर्ट होता हो।
 
अंतत: दोस्ती का दर्जा सभी रिश्तों से ऊपर माना गया है, तब दोस्ती का महत्व समझा जाना चाहिए। दोस्ती को ताजा बनाए रखने के लिए कुछ दूरियाँ बढ़ाकर पुन: नजदीकियाँ बढ़ाएँ। वर्ष में एक दफे जरूर लम्बे टूर पर घूमने जाएँ। रोज एक-दूसरे का हालचाल जरूर पूछें। जन्मदिन पर दोस्तों को छोटा-सा गिफ्ट देना न भूलें। आप अपने दोस्त की परवाह करेंगे तो दोस्त आपकी परवाह जरूर करेंगा...
 

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