जिन्हें दोस्त और करीबी समझ कर हम साथ रखते हैं। उनमें किसी ने पद, किसी ने पैसे, तो किसी ने नौकरी बनाए- बचाए रखने के लिए, सच पर पर्दा डालने में अदृश्य हाथों की मदद करते हैं, ऐसे दोस्त घातक होते हैं। क्या कहते हैं विद्वान् मित्रों को ले कर-
जे न मित्र दुःख होहिं दुखारी, तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।
निज दुःख गिरी सम रज करिजाना, मित्रक दुःख रज मेरू समाना।
-गोस्वामी तुलसी दास ‘रामचरित मानस,किष्किंधा कांड’
जो मनुष्य मित्र के दुःख से दुखी नहीं होते उन्हें देखने मात्र से भी भरी पाप लगता है. अपने गिरी के समान बड़े दुःख को धूल के समान और मित्र के धूल के समान दुःख को बड़े भारी पहाड़ के समान समझने वाला ही मित्र है...
मित्रों में आर्थिक, सामाजिक, और देशीय ऊंच, नीच नहीं रहता है. यदि ‘होस्ट’मेहमान के स्तर को देख उसकी मेहमानदारी करें तो वह मित्र नहीं रह सकता... मित्रों में तो बराबरी रहती है।
-गुरुदत्त ‘असमंजस’
सच्चा मित्र वह है जो दर्पण की तरह तुम्हारे दोषों को तुम्हें दर्शाए, जो अवगुणों को गुण बताए वो तो खुशामदी है।
-फूलर
सच्चे मित्र के सामने दुःख आधा और हर्ष दुगुना प्रतीत होता है।
-जॉनसन
मित्र के लिए जीवनदान उतना कठिन नहीं है जितना कठिन कि ऐसा मित्र खोजना जिसके लिए जीवन दान दिया जा सके।
-होमर
मित्र के तीन लक्षण हैं-अहित से हटाना, हित में लगाना, मुसीबत में साथ न छोड़ना,धन के अभाव में विश्व में जो लोग मित्रों का कार्य करते हैं उन्हें ही मित्र समझता हूं...अच्छी स्थिति वाले व्यक्ति की वृद्धि में कौन साथ नहीं देता।
-बुद्धचरित
जिसके घर में नित्य मित्र आते हैं उसके मन में सुखों का अनुपम साधन है,स्वयं भरपूरा होने पर भी विद्वानों को सखा बना लेना चाहिए, सागर पूर्ण होने पर भी चंद्रोदय की अपेक्षा रखता है,मुसीबत के समय जो सखा है वही सच्चा सखा है, उन्नति के समय तो दुष्ट भी सखा बन जाते हैं, दुष्ट चरित्र से न मैत्री करो, न जान पहचान, गर्म कोयला जलता है, ठंडा हाथ काले करता है।
-पंचतंत्र
सच्चे मित्र हीरों की तरह कीमती और दुर्लभ मिलते हैं, झूठे मित्र तो पतझड़ की पत्तियों की तरह सर्वत्र मिलते हैं।
-अरस्तू
सम्पन्नता तो मित्र बनती है, किन्तु मित्रों की परख तो विपदा में ही होती है।
-शेक्सपियर
जहां अन्तःकरण की ऐक्यता नहीं होती वहां की मैत्री अस्फोटक पदार्थों के मिश्रण से अधिक भयंकर होती है जो एकत्र होते ही धड़ाम से फट जाते हैं।
-स्वामी रामतीर्थ ‘धर्मतत्व’
कभी उस व्यक्ति से मित्रता मत करो जिसने तीन मित्र बना कर त्याग दिए हों।
-सवेटर
मित्रता को धीरे धीरे उच्चता के शिखर पर चढ़ने दो। यदि जल्दबाजी करोगे तो यह शीघ्र ही क्लांत हो उठेगी।
-फूलर
हां इनके बावजूद इस कलयुग में कृष्ण-सुदामा की मित्रता न ले कर चलें।
बार बार देखते चलें कि जिन्हें आप अपना मित्र समझ रहें हैं, दूसरों का हक मार कर आगे बढ़ा रहे हैं, जिन्हें घर और दिल में खास जगह दे रहे हैं वो इस लायक हैं भी या नहीं।
-आदित्य पाण्डेय
फिर भी आप किसी दोस्त से धोखा खाते हैं तो गलती उसकी नहीं तुम्हारी है। आखिर तुम्हीं ने तो उस पर विश्वास किया था न....