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दद्दू का दरबार : भारतमाता की जय

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एमके सांघी

प्रश्न : दद्दूजी बड़ा ही विकट प्रश्न है कि कुछ मुस्लिम नेता 'भारतमाता की जय' नारा लगाने के लिए तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि 'भारतमाता की जय' का नारा लगाया जाना हर देशभक्त नागरिक का कर्तव्य होगा। वे जय  हिन्द बोलने के लिए तैयार हैं, पर भारतमाता की जय बोलने के लिए कतई नहीं, चाहे  उनके गले पर छुरी रख दी जाए। आप क्या कहेंगे इस संवेदनशील मुद्दे पर? 
 
उत्तर : देखिए पहला तो संविधान की दुहाई देने वाले क्या इस बात का वादा करेंगे कि वे कभी गाली जैसी असभ्य भाषा का इस्तेमाल नहीं करेंगे, आतंकी गतिविधियों में लिप्त या उसका समर्थन नहीं करेंगे, देश तोड़ने की बातें करने वालों की भर्त्सना करेंगे, झूठ का साथ नहीं देंगे, भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देंगे, भड़काऊ भाषण नहीं देंगे, क्योंकि ये बातें भी तो  संविधान में नहीं लिखी हैं कि की जाएं। दूसरा मुस्लिम समाज क्या इस बात पर मुहर लगाएगा कि ऐसी बातें करने वाले लोग क्या उनके अधिकृत प्रतिनिधि है या नहीं। तीसरा यदि यह मान भी लिया जाए कि हर देशवासी के लिए यह जरूरी नहीं कि वह अपने देश को 'मां' के रूप में देखे और उसका जयकारा लगाए और उन्हें संविधान के तहत ऐसे नारे से छूट की आजादी दी जानी चाहिए तो क्या मुस्लिम समाज के स्वयंभू प्रतिनिधि बने ये  नेता क्या यह घोषित करेंगे कि मुस्लिम समाज तथा उनका धर्म संविधान की भावना के अनुसार अन्य सभी धर्मों का उनकी मान्यताओं सहित आदर करता है। भविष्य में कभी यदि देश में मुस्लिमों के हाथों में सत्ता आई तो वे 'भारतमाता की जय' बोलने वालों को जय बोलने की वही आजादी देंगे, जैसी आज उन्हें अपेक्षित है। क्या उनकी सता होने पर  भी वे शरीयत कानून के ऊपर संविधान को तरजीह देंगे। क्या आज वे ये वादा करते हैं कि हिन्दुओं को पूरी आजादी देंगे, धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य नहीं करेंगे (जैसा कि उनके पूर्व शासनकाल में हुआ था), हिन्दुओं के लिए आज के संविधान के अनुसार उनकी अपनी अपराध तथा नागरिक संहिता होगी। यदि वे ये सभी वादे करते हैं तथा भविष्य में कोई  इन वादों से मुकर नहीं जाए, इस हेतु अपनी धर्म पुस्तकों में बदलाव के तौर पर इन वादों का नए सिद्धांतों के रूप में जगह देते हैं तो देश को माता न मानने के उनके आग्रह पर विचार किया जाना चाहिए। 

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