प्रश्न : दद्दूजी, अभी-अभी मुझे ज्ञात हुआ कि लाल रक्त कणों का जीवनकाल लगभग 120 दिनों का होता है किंतु सफेद रक्त कणों का जीवन महज 1 से 4 दिनों का। कृपया बताएं यह भेदभाव और नाइंसाफी क्यों?
उत्तर : देखिए, सफेद रक्त कणों का काम हानिकारक बैक्टीरिया से लड़कर शरीर को संक्रमण से मुक्त रखना है। ऊपर वाले की माया बड़ी निराली है। उसने सफेद रक्त कणों का जीवनकाल मात्र 4 दिनों का बड़ी ही समझदारी से रखा है। अब जब सफेद रक्त कणों को ज्ञात है कि उनकी जिंदगी मात्र 4 दिनों की है तो वे बिना डरे बिना अपनी जान की परवाह किए दुश्मन बैक्टीरिया का काम तमाम करने के लिए 'मरो या मारो' की तर्ज पर टूट पड़ते हैं। उनकी यही निडरता उन्हें अक्सर युद्ध में दुश्मन पर विजय दिलाती है। फिर आरबीसी की तुलना में डब्ल्यूबीसी का निर्माण भी तेजी से होता है यानी एक मरता है तो तुरंत दूसरा पैदा हो जाता है।
इस वैज्ञानिक तथ्य से हमें भी सीख लेने की जरूरत है। सेना में भर्ती होने के समय ही सैनिक तथा सैनिक के परिवारजनों को यह समझ लेना चाहिए कि उसने जिंदगी की जो राह चुनी है, वह 4 दिनों की भी साबित हो सकती है इसलिए कुछ सैनिकों के शहीद हो जाने पर मीडिया, अखबार तथा सोशल मीडिया पर भावनात्मक आंदोलन छेड़कर पूरे देश को सिर पर उठा लेना तथा सेना व सरकार को क्या करना चाहिए, इसकी सलाह देना शायद गलत कदम है।
सेना के मामले सेना के विवेक तथा उनकी कार्यप्रणाली पर छोड़ देना चाहिए। जो लोग सेना में नहीं हैं उनका काम लाल रक्त कणों की तरह देश का निर्माण है। उन्हें देखना चाहिए कि क्या वे अपना काम भली-भांति निभा रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि हम दुश्मन बता दें कि वे एक सैनिक मारेंगे तो हर घर से सैनिक निकलेगा।