प्रश्न : दद्दूजी, देश के असंख्य हिन्दू धर्मावलंबियों की तरह आपने भी भगवान की आरती के ये बोल- 'ओम जय जगदीश हरे, भक्तजनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करें...' गाए होंगे। मेरा आपसे सीधा और सरल-सा प्रश्न है कि क्या आपको लगता है कि भगवान अपने भक्तों की प्रार्थना सुनकर उनके संकट दूर करते होंगे? यदि हां, तो आज हर इंसान त्रस्त और संकटपूर्ण जीवन जीता हुआ क्यों नजर आता है?
उत्तर : जनाब आपने बड़ा ही उत्तम प्रश्न पूछा है। देखिए, आपने लाइफबॉय साबुन का वह विज्ञापन तो देखा ही होगा जिसमें साधारण साबुन से नहाने वाले व्यक्ति की सफाई स्थिति को एक गोले के भीतर दिखाए गए अनेक कीटाणुओं के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है। तुरंत बाद जब वह व्यक्ति लाइफबॉय साबुन से स्नान करता है तो गोले के अंदर दिखाए गए कीटाणुओं में से अत्यंत अल्प ही शेष रह जाते हैं। ध्यान रहे कि दावा कीटाणु शत-प्रतिशत रूप से समाप्त करने का नहीं होता। अच्छे से अच्छे और महंगे से महंगे साबुन से नहाने पर भी कुछ कीटाणु तो शेष रह ही जाते हैं। समझ लीजिए कि यही नियम उक्त आरती पर भी लागू होता है।
विश्वास के साथ भगवान की आरती करने के बाद हमें पता भी नहीं चलता है कि कितने संकट टल गए। हां, शेष कीटाणुओं की तरह कुछ संकटों को तो हमें झेलना ही होता है। हमारे संकट वे बचे-खुचे संकट ही होते हैं। संकटों से भरी-पूरी जिंदगी की बानगी देखनी हो तो दुनिया के सोमालिया, सीरिया या फिर पाकिस्तान व अफगानिस्तान के सीमांत प्रदेशों के निवासियों की जिंदगी पर नजर डाल लें।
तो आइए, प्रेम से आरती करें 'ओम जय जगदीश हरे...।'