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दद्दू का दरबार : जूते के फीते...

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एमके सांघी

दद्दूजी, ओडिशा के कैबिनेट मंत्री जोगेन्द्र बेहेरा को उस वक्त आलोचनाओं का सामना करना पड़ा जब आज क्योंझर में स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान उनके निजी सुरक्षा अधिकारी (पीएसओ) को उनके जूते का फीता बांधते देखा गया। आप क्या कहेंगे इस बारे में? 

देखिए बेचारे मंत्री महोदय की इसमें कोई गलती नहीं है। अधिकांश नेता लोग 180 डिग्री यानी पैरों तक झुकना उसी समय से बन्द कर देते हैं, जब वे टिकट पाकर चुनावी ओलम्पिक लड़ने के लिए क्वालीफाई करते है। तब वे केबल मतदाताओं से वोट की अपील करते समय नमस्कार की मुद्रा में 10-20 डिग्री झुकते हैं। चुनाव जीतने के बाद वे कभी कभार हाथ जोड़ते हुए देखे जा सकते हैं किंतु इस प्रक्रिया में केवल उनकी गरदन 10 डिग्री झुकती है, कमर बिलकुल नहीं। मंत्री पद ग्रहण करने बाद नेताओं की कमर या गरदन को झुके हुए देखना लगभग दुर्लभ होता है। और बिना झुके जूते के तस्में कैसे बांधे जा सकते है। फिर पद ग्रहण की शपथ में भी कोई ऐसी पंक्ति नहीं होती कि मंत्री बनने बाद उन्हें झुकना भी पड़ेगा। कुछ मंत्री झुकना चाहें तो भी बेचारे अपनी भारी भरकम काया के कारण ऐसा नहीं कर सकते जो उन्हें झुकने के लिए अयोग्य करार दे देती है। वैसे मंत्री स्तर के नेताओं को झुकने की आवश्यकता इसलिए भी नहीं होती क्योंकि उनके लिए 180 डिग्री झुकना तो दूर बल्कि 360 डिग्री की गुलाटी खाने के लिए भी समर्थकों की फौज हरदम तैयार रहती है। सुरक्षा अधिकारी ने भी जूते के तस्में इसलिए बांधे क्योंकि अवश्य ही वह मंत्री का समर्थक और कृपाभिलाषी भी रहा होगा। अब यह जनता पर निर्भर है कि वह ऐसे प्रत्याशी को वोट दें, जो न केवल 180 डिग्री तक झुक सकें बल्कि अपने चुनावी घोषणा पत्र में मंत्री बनने के बाद भी झुकने का वादा करें। झुकने की शर्त को शपथ में भी शामिल कर दिया जाए तो अच्छा होगा।   
 
 

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