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धूल और धुएं का प्रदूषण

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एमके सांघी

प्रश्न : दद्दू, दिल्ली में प्रदूषण इस कदर फैल चुका है कि केजरीवाल सरकार को सम और विषम नंबर के  वाहन एक एक दिन छोड़कर चलाने की योजना बनानी पड़ी है। मेरा आपसे यह प्रश्न है कि जिस तरह धूल  उड़ने के थोड़ी देर बाद स्वत: ही धरा पर बैठ जाती है उसी तरह धुआं भी क्यों नहीं बैठ जाता है ताकि ये  समस्या बाकी ही नहीं रहे। 

उत्तर : देखिए बैठता तो धुआं भी है किंतु जमीन पर नहीं बल्कि इंसानी फेफड़ों में जाकर। धूल के कणों  की हवा से पटती नहीं और वह उसे जबरन धरती पर बैठा देती है। कण धुएं में भी होते हैं किंतु वे हवा  से दोस्ती कर उसमें आसानी से घुल-मिल जाते हैं। हवा उन्हें अपने साथ इंसानी फेफड़ों की सैर पर ले  जाती है। सैर पर ले जाए वहां तक कोई बात नहीं किंतु सैर से लौटते समय हवा धुएं के कार्बन कणों को  फेफड़ों में उसी तरह छोड़ आती है जिस तरह पिकनिक और तीर्थ व ऐतिहासिक स्थलों की सैर के बाद हम  इंसान प्लास्टिक बॉटल, डिस्पोजेबल वा अन्य कचरा वहीं छोड़कर आ जाते हैं। इंसान यदि अपने आपको  बदले तो शायद देश की आबोहवा भी बदल जाए।   

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