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अन्ना बनेंगे द्वितीय-महात्मा

- राजेंद्र शर्मा

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खुद को ज्यादा पढ़ा-लिखा लगाने वालों की यही प्रॉब्लम है। जरा सा हुंकारा भरने में इनकी जान निकलती है और 'ना' हर वक्त इनकी जुबान पर धरा रहता है। और तो और अब अन्ना को महात्मा-द्वितीय मानने पर भी इन्हें आपत्ति है। क्यों भाई क्यों? जब अगस्त क्रांति-द्वितीय हो सकती है। जब आजादी की दूसरी लड़ाई हो सकती है। जब मुन्नाभाई से लेकर डॉन और धूम तक द्वितीय के बाद तृतीय तक हो सकती हैं तो महात्मा-द्वितीय ही क्यों नहीं? है कोई जवाब!

आखिरकार, महात्मा-प्रथम में ही ऐसा क्या था जो अन्ना में नहीं है? एक जैसा दुबला-पतला बदन। वह भी खादी पहनते थे, अन्ना भी खादी पहनते हैं। सच पूछिए तो अन्ना तो ओरिजनल वाले से कुछ फालतू ही खादी पहनते हैं। कुर्ता तो कुर्ता, सिर पर टोपी भी। और टोपी भी ऐसी-वैसी नहीं, खास गांधी टोपी। यह बात दूसरी है कि गांधी का तो बस ब्रांड ही था, वरना गांधी खुद टोपी पहनने के चक्कर में ही नहीं पड़ते थे।

खैर! अगर महात्मा-प्रथम ने अपना नाम देकर टोपी का खूब प्रचार किया था तो द्वितीय ने भी उसी टोपी को खूब बाजार दिलवाया है और वह भी मंदी के इस जमाने में। कम से कम टोपी का तो लिहाज करना चाहिए।

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रही पब्लिक को अपने पीछे लगाने की बात तो अपने अन्ना, ओरिजनल वाले से इक्कीस ही बैठेंगे, उन्नीस नहीं। पब्लिक तो पब्लिक, मीडियावाले भी अन्ना की तरफ ऐसे खिंचते हैं, जैसे गुड़ की तरफ चींटा। महात्मा-प्रथम में इतना करिश्मा था, इसमें हमें तो शक है। सुना है कि प्रथमवाले से भी अंगरेजी सरकार डरती थी। फिर भी अंगरेजी सरकार अपने टैम के महात्मा से इतनी तो क्या डरती होगी, जितनी आज की सरकार आज के टैम के महात्मा से डरती है। देखा नहीं कैसे जेल भेजकर, सरकार खुद जेल में बंद हो गई। अन्ना ने उसे अपनी जेल से जमानत पर छोड़ा भी तो अपनी शर्तें मनवाने के बाद।

अनशन के मामले में भी अपने अन्ना प्रथम से ड्योढ़े नहीं तो सवाई तो जरूर ही पड़ेंगे। इतने सारे अनशन करने के बावजूद भाई लोग हुज्जत पर अड़े हुए हैं कि अन्ना महात्मा-द्वितीय नहीं हो सकते हैं। दलीलें भी एक से एक अजीबोगरीब। महात्मा-प्रथम आमरण अनशन नहीं, उपवास करते थे।

महात्मा-प्रथम पहले अपने अंदर की बुराई को मारने की मांग करते थे और भी न जाने क्या-क्या! लेकिन, सच्ची बात यह है कि ये सब बहानेबाजी है-महात्मा-द्वितीय को मान्यता देने से बचने की। अन्ना प्रथम से अलग भी हैं, इसीलिए तो वह महात्मा-द्वितीय होने के लिए तैयार हैं। वरना महात्मा-प्रथम नहीं हो जाते।

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