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काश लादेन भारत आ जाता!

अगर भारत में होता लादेन, तो क्या होता?

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- शरद उपाध्याय
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इधर एक दिन सुबह उठा तो पता चला कि लादेन भाई नहीं रहे। एक दिन में इतनी जल्दी सब खत्म। भई इतनी जल्दी तो हिंदी फिल्म में खलनायक भी नहीं मरता। पाकिस्तान, जो आतंकवादियों की शरणस्थली है, में एक सर्वश्रेष्ठ आतंकवादी के साथ गैर मेहमाना सलूक देखकर कुछ ठीक नहीं लगा।

अब बार-बार दिमाग में यही बात घूम रही है कि यदि लादेन भारत आ जाता तो शायद आराम से जीवन बसर कर सकता था। हमारे यहां अपार संभावनाएं हैं। सर्वाधिक संभावनाएं तो मुझे राजनीति में लगती हैं, अगर वह राजनीति में आता तो एक छोटा-मोटा दल खड़ा कर सकता था। फिर उसकी लोकप्रियता देखकर उसके दल को कुछ सीटें मिलना भी तय था। फिर हमारे यहां तो अवसरवादी राजनीति का युग है।

अल्पमत की सरकारों के युग में समर्थन की जरूरत हमेशा रहती है। फिर तो सत्ता की संभावना वाली सरकार उससे सदैव समर्थन मांगती रहती और समर्थन के बदले उसे एक महान देशभक्त घोषित कर सकती थी।

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हो सकता है लादेन को राजनीतिक माहौल पसंद नहीं आता तो वह फिल्मों में भी जा सकता था। एक्शन फिल्म में वह सलमान को कोसों दूर छोड़ देता। कई पत्नियों का पति बनकर उसने यह साबित कर दिया है कि वह रोमांस सीन में भी कमजोर नहीं पड़ता। फिल्में सुपरहिट होतीं।

अब फिल्म के लिए उसे दाढ़ी कटवाने में परेशानी आती। तो कोई बात नहीं। अगर वह दाढ़ी रखने में रुचि रखता होता तो कई धार्मिक संगठन उसके स्वागत के लिए तैयार रहते। एक शानदार आश्रम बनवाता, दर्जनों गाड़ियां और हजारों करोड़ों की प्रॉपर्टी इकट्ठी कर लेता। लाखों चेले उसके इर्द-गिर्द इकट्ठे रहते। नाना प्रकार के नेता व अभिनेता उसके चरणों में पड़े रहते।

वह बड़ा वाला 'भाई' बनकर आराम से जीवनयापन कर सकता था। चोरी, वसूली, फिरौती के धंधे में यहां बहुत स्कोप है। अगर यह हमारी जनता को अच्छा नहीं लगता तो कोई बात नहीं, उसे यहां गिरफ्तार करके जेल में डाल देते। उस पर मुकदमा चलाते। अब आप तो जानते ही हैं कि हमारे यहां मुकदमे कितने लंबे चलते हैं।

हमारे कसाब भाई भी कितने आराम से जीवनयापन कर रहे हैं। वह जेल में रहते और आराम से पूरी दुनिया में आतंक का गैंग चलाते। मोबाइल सुविधा इतनी आसानी से उपलब्ध कराते कि वह आराम से भारतीय जेल में बैठकर पूरी दुनिया में ऑपरेशन संचालित कर सकता था। भारत में भी गैंग चलाकर पार्ट टाइम कर सकता था। पर अफसोस यह न हो पाया। अब हम भी क्या करें? दिल की बात दिल में ही रह गई।

बस यही सोच-सोचकर आहें भरकर रह जाते हैं कि काश वह भारत आ जाता तो आज हमारे बीच में हंस-खेल रहा होता।

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