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फोर्थ आई किरपा सेंटर

- महेन्द्र सांघी

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देश में आजकल लोग बड़े दुखी हैं। सरकार ने देश में अमीर और गरीबों में फर्क करने के लिए गरीबी की रेखा बना रखी है, मगर दुखी लोगों के लिए कोई रेखा नहीं है। जिसके अंदर होने पर उन्हें घटी दरों पर खुशियां मिल सके। निर्मल बाबा का समागम दुखी लोगों का बड़ा सहारा था मगर आजकल वे खुद किरपा (कृपा) के अभिलाषी बने हुए हैं। अपने देश में एक अलिखित कायदा है कि जिस मोहल्ले में एक चाय या पान की दुकान अच्छी चलने लग जाती है उसके बगल में तुरंत दो-तीन नई खुल जाती हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने 'फोर्थ आई किरपा सेंटर' के नाम से (थर्ड आई तो सीनियर बाबा के पास है) अपना समागम शुरू कर दुखियों की सेवा करने का निर्णय किया है।

मेरे पहले भक्त इन्दौर शहर के ही थे। मैंने उनका नाम व परिचय पूछा। वे बोले- बाबा मेरा नाम दुखहरण प्रसाद है, मगर मैं खुद बड़ा दुखी हूं। आपकी किरपा मिल जाए तो मेरा उद्धार हो जाए। मैंने उनसे कहा कि- मेरी फोर्थ आई को यह पैंसिलें क्यों दिखाई दे रही हैं। शरमाते हुए वे बोले- बचपन में उन्होंने अपने सहपाठियों की अनेकों पैंसिलें पार की थी। मैंने कहा कि- बस वहीं से आपकी किरपा की नोंक टूटी हुई है। गरीबों की किसी गैर सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल में जाकर बच्चों को पैंसिलें बांट दो किरपा आना शुरू हो जाएगी।

दूसरी भक्त एक महिला थी जिनका नाम सरस्वती था। पूछने पर उन्होंने बताया कि- बाबा मुझे भूलने की बहुत आदत है। जिसके कारण उन्हें अपने बच्चों तक के सामने शर्मिन्दा होना पड़ जाता है। मैंने उनसे पूछा कि- पहाड़े कहां तक के याद हैं, जवाब मिला कि बस दस तक, साथ ही पन्द्रह और बीस का भी याद है। मैंने कहा कि- उन्नीस का पहाड़ा कंठस्थ कर लो किरपा शुरू हो जाएगी।

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अगले भक्त एक शासकीय अधिकारी थे। बोले बाबा ईश्वर का दिया सबकुछ है, मगर रात को नींद नहीं आती है। किसी ने बताया है कि घर का वास्तु ठीक नहीं है। मैंने कहा- वर्ष में ईश्वर (की कृपा) से कितने उपहार मिलते हैं। उन्होंने बेझिझक कहा कोई गिनती नहीं। मैंने कहा कि- यह उपहार और अवैध कमाई से खरीदी गई वस्तुएं ही घर का वास्तु बिगाड़ती हैं। इन्हें घर के बाहर करो फिर देखो कैसी मस्त नींद आती है।

एक और भक्त एक किशोर युवक था जिसने कहा कि उसका कोई सच्चा दोस्त नहीं था। मैंने कहा कि- क्या फेसबुक पर अकाउंट है, अप्रत्याशित जवाब मिला नहीं। मैंने समझाया- अकाउंट खोल लो, सैकड़ों दोस्त बन जाएंगे...उनमें से मनपसंद सच्चे दोस्त को ढूंढ लेना।

अगली भक्त एक उम्रदराज महिला थी। बोली बाबा मेरा इकलौता पुत्र बारहवीं कक्षा में तीसरी बार फेल हो गया। उसे आवारागर्दी के अलावा कुछ सूझता ही नहीं है। मैंने पूछा- उसे आखिरी बार चांटा कब मारा था? जवाब मिला कि- जिन्दगी में कभी नहीं मारा। मैंने कहा कि- मंदिर में जाकर रोज प्रार्थना किया करो कि बड़ा होकर कहीं वह तुम्हारे मुंह पर चांटा नहीं मार दें।

काफी देर से एक ओर बैठे एक सज्जन बोले कि- बाबा जब मैं दिन-रात अखबारों और टीवी चैनलों पर राजनेताओं के भ्रष्टाचार व घोटालों की खबरें सुनता हूं, तो मन बड़ा अशांत हो जाता है और सारा गुस्सा पत्नी व बच्चों पर निकलता है।

मैंने प्रश्न दागा कि- क्या वोट डालने जाते हो? वे बोले- नहीं! क्योंकि मुझे कोई भी उम्मीदवार योग्य नहीं लगता है। मैंने उन्हें ज्ञान दिया कि- जो भी उम्मीदवार कम बुरा हो उसे वोट अवश्य डाला करो। जब तुम्हें पता होगा कि यह नेता लोग जैसे भी हैं तुम्हारे अपने वोट से चुने गए हैं तो सारी कोफ्त और गुस्सा जाता रहेगा।

लोगों का तांता रूकने का नाम ही नहीं ले रहा था। एक सूटेड-बूटेड युवक बोला- बाबा मैंने कई कारें बदल कर देख ली, मगर मेरे हाथ में आते ही अनाप-शनाप मेंटेनेंस निकालने लगती है। मैंने पूछा- सड़क पर चलते हुए पैदल यात्रियों के चलने के लिए जगह छोडते हो। उसने कहा- बिलकुल भी नहीं। मैंने कहा- अब से छोड़ा करो, बरकत शुरू हो जाएगी।

शाम ढलने को थी। मैंने अपने चेले को दिन के अंतिम भक्त को सामने लाने का इशारा किया, जो एक लूटे-पिटे से उद्योगपति थे। बोले- बाबा फैक्ट्री में लगातार घाटा हो रहा है और सरकार है कि डीजल, पेट्रोल, एक्साइज, कच्चे माल सभी के दाम बढ़ाए जा रही है। उस पर सरकारी अधिकारी घाटे की बात मानने को तैयार नहीं और अपना हिस्सा बदस्तूर चाहते हैं। जी चाहता है कि किसान की तरह आत्महत्या कर लूं।

मुझे उस उच्च शिक्षित व्यक्ति पर बड़ी दया आई। मैंने उसके आंसू पोंछते हुए समझाया- देखो! कोचिंग क्लासों की तरह पहले ही दिन मेरे समागम में इतनी भीड़ है जिसे मैं संभाल नहीं पा रहा हूं। तुम अपनी यह फैक्ट्री-वैक्ट्री बंद करो और बदले में मेरी तरह 'फिक्थ आई किरपा सेंटर' डाल लो। पढ़े-लिखे हो। आज के समागम में अपनी फोर्थ आई यानी कॉमन सेंस से मैंने किस तरह जवाब दिए हैं, वह तुमने देख ही लिए हैं।

मगर एक बात याद रखना। भक्त श्रद्धा से जो भी भेंट दें, वह ले लेना और बदले में एक मनोचिकित्सक की तरह उनकी समस्याओं का उचित समाधान देने की ईमानदार कोशिश करना। हो सकता है कि तुम्हारा नाम कम हो और तुम टैक्स भी कम भर पाओ, पर तुम्हें नींद बहुत अच्छी आएगी। उनका चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा। इससे पहले कि वह मुझे धन्यवाद दे पाता, मेरे मोबाइल के अलार्म ने मेरा सपना तोड़ कर मेरा समागम असल जिंदगी से करा दिया।

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