जय नेतागण राजनीति के,
तुमको करूं प्रणाम।
तुम्हीं विधाता अन्यायी के,
करो चापलूसों का काम।
चौपाई
जय राजनीति के नेतागण,
तुम मोहे हो सब के मन।
सब चमचों की करो भलाई
वे चाहे जितनी करे ढिठाई।
उनको आंच न आने पाए,
तुम्हरी कुर्सी भले ही जाए।
अत्याचार में तुम आगे हो,
अवगुणकारी के तुम धागे हो।
घपला-झगड़ा तुम करवाते,
सही जगह पर उधम मचाते।
राजनीति के तुम बड़े पुजारी,
अपने दोषी की करो रखवाली।
जुल्म कराने में माहिर हो,
चोर-उचक्कों में शामिल हो।
धन्य-धन्य भारत के वीर
भोली जनता पर मारो तीर।
क्या कुर्सी का खेल निराला,
हरदम ओढ़े रहो दुशाला।
लालच की तुमको भूख लगी है,
बेईमानी की पीर जगी है।
कब तक ऐसे चलेगा काम,
एक दिन होगा सत्यानाश।
हाथ जोड़ तब नहीं बचोगे,
सब देखेंगे जल्द पिसोगे।
दोहा
भगवन् ऐसी बयार चला दो
अत्याचार हो जाए कम।
राजनीति के बेईमानों का
फिर भारत में हो न जन्म।