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अनोखे लाल के नए-नए आइडिए

अद्भुत हैं अनोखे लाल

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- देवेन्द्र उपाध्याय
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अद्भुत हैं अपने अनोखे लाल। उनके दिमाग में नित नए-नए आइडिया जन्मते हैं। रास्ते में चलते-चलते मिल गए तो जबर्दस्ती बिठा लिया। कहने लगे कल रात एक विचित्र सपना देखा। मुझसे रहा नहीं गया। सो पूछ बैठा, 'यों ही पहेलियां ही बुझाते रहोगे या कुछ बताओगे भी।' अनोखे बोले, 'चुपचाप सुनना। बीच में टांग अड़ाने की कोशिश नहीं करना।' मैंने कहा, 'अब बता भी दो। बीच में टांग तो क्या जीभ भी नहीं निकालूंगा।'

अनोखे कहने लगे, 'सुनो, लौहपुरुष की कथा सुनो। कल रात सपने में जो देखा वही बयान कर रहा हूँ। यह तो तुम जानते ही हो कि वजीरेआजम की कुर्सी न मिलने का सदमा क्या होता है? सो भाजपा के लौहपुरुष आडवाणी को जब भी वजीरेआजम की कुर्सी की याद आती है, वे रथयात्रा पर निकल पड़ते हैं।

भला हो अण्णा का जिन्होंने बैठे-बिठाए लौहपुरुष को भ्रष्टाचार का मुद्दा दे दिया।' मैं बीच में ही बोल पड़ा, 'असली बात क्या है वह बताओ। तुम तो पूरी कुंडली खोले बैठे हो।' 'कभी-कभी दूसरों की भी सुन लिया करो,' अनोखे ने नाराज होकर कहा। अब अनोखे अपने सपने की गाथा सुनाने लगे, 'हाँ तो सुनो। लौहपुरुष की रथयात्रा कुंभ की नगरी हरिद्वार से शुरू हुई। उस कुंभनगरी से जहाँ महाकुंभ हुए ज्यादा समय नहीं हुआ।

उस महाकुंभ पर नोबेल पुरस्कार की वकालत करते-करते उत्तराखंड के मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी ठीक गणेश प्रतिमा विसर्जन के दिन विसर्जित करने के लिए मजबूर हो गए। जिस कैग की रिपोर्टों को लेकर भाजपा नेताओं को इस समूची व्यवस्था में भ्रष्टाचार के अलावा कुछ और नहीं दिखाई दे रहा है पर महाकुंभ में हुए भ्रष्टाचार के बारे में कैग की रिपोर्ट को ही किनारे कर गए।

पहली डुबकी में ही कैग रिपोर्ट की एक प्रति गंगा में प्रवाहित कर दी। उसके बाद झांकियां सजनी शुरू हो गईं। पहली झांकी में सजे थे लौहपुरुष। उसके पीछे की झांकी में बैठे थे पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण। उसके पीछे झांकियों की लाइन लगी थी।

एक में बैठे थे कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा, उसके पीछे उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. निशंक, एक और झांकी में विराजमान थे दिलीप सिंह जूदेव, तो एक झांकी में रिश्वतकांड में संसद से निकाले गए अभूतपूर्व पार्टी सांसद शोभायमान थे और उसके पीछे-पीछे कर्नाटक की सत्ता को अपने इशारे पर फिरकनी की तरह चलाने वाले रेड्डी बंधु सबसे अलग ही दिखाई दे रहे थे।' 'आगे क्या हुआ,'

मैंने पूछा। अनोखे ने नाराजगी से कहा, 'अब चुप भी करो। थोड़ा बर्दाश्त करना सीखो।' कुछ देर तक झांकियां चलती रहीं। लौहपुरुष की यह रथयात्रा उत्तराखंड से चलकर आखिर कर्नाटक की सीमा में पहुँच गई। तभी जाने कहाँ से एक चूहा आकर मेरी नाक पर चढ़ गया। नींद खुल गई। सपना टूट गया। जो सपने में देखा बयान कर दिया।

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