नटवर पुरस्कारों की घोषणा से पहले नटवरलाल जी ने प्रेस क्लब में पुरस्कारों की पृष्ठभूमि स्पष्ट करना जरूरी समझा, बोले- मित्रों, नोबेल से मिली मुझे नटवर पुरस्कारों की प्रेरणा। वही अल्फ्रेड नोबेल जिन्होंने डाइनामाइट के अविष्कार से बेहिसाब प्रसिद्धि और पैसा कमाया था। मौत से पहले जिनके मन में अमर होने की इच्छा जाग उठी थी और जो दुनिया के सबसे बेमिसाल और वजनदार नोबेल पुरस्कार की स्थापना कर अमर भी हो गए थे।
दोस्तों, आप जानते हैं कि ठगी के क्षेत्र में मैं भी एक अंतरराष्ट्रीय हस्ती हूँ। ठगी के दर्जनों बेजोड़ हथकंडों का मैंने आविष्कार किया है। इस कला से अथाह पैसा भी कमाया है। ठग विद्या की विश्वस्तरीय पत्रिका 'फ्रॉड' मुखपृष्ठ पर मेरा चित्र और अंदर इन्टरव्यू भी छाप चुकी है। संपादकीय में लिखा भी गया था कि धोखाधड़ी की कला मेरे योगदान से निहाल हो गई है।
आदरणीयों, मैं भी अमर होना चाहता हूँ। नटवर फाउंडेशन की स्थापना मैंने इसी उद्देश्य से की है। फाउंडेशन नोबेल की तर्ज पर नटवर पुरस्कार प्रदान करेगा। पचास सालों से ज्यादा मैंने ठगी की कला की सेवा की है। इसलिए इस कला में चार चाँद लगाने वाली प्रतिभाओं को ही नटवर पुरस्कार देना चाहता हूँ। मेरी इच्छा है यह कला इतनी ऊँचाईयों तक पहुँचे कि अन्य कलाएँ उसके दरवाजे झाडू लगाती नजर आएँ।
बंधुओं, शुरुआत मैं राजनीति, व्यापार, धर्म और खेल से कर रहा हूँ। इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में धोखाधड़ी करने वाली प्रतिभाएँ मौजूद हैं। पुरस्कार में प्रत्येक को एक करोड़ की राशि, प्रशस्ति पत्र और मेरी तस्वीर से सुसज्जित गोल्ड मेडल मिलेगा। पुरस्कार घोटालों के नटवर पुरस्कारों के नाम से जाने जाएँगे। चोर-चोर मौसेरे भाई होते होंगे पर ठग और घोटालेबाज तो सगे भाई होते हैं।
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आजादी के छठे दशक के बाद से यह देश भारत वर्ष कहलाने का अधिकारी नहीं रहा। इसका सही नाम भ्रष्टाचार वर्ष ही हो सकता है। पहले बुद्ध और गाँधी इसकी पहचान थे। अब बेईमानी और घोटालागीरी ने बुद्ध और गाँधी का स्थान ले लिया है।
मित्रों, पुरस्कृत प्रतिभाओं के नाम जानने की उत्कंठा होगी आपको तो जिगर थाम के बैठिए,नाम घोषणा की बारी आ गई है। राजनीति के क्षेत्र में घोटाले का पहला नटवर पुरस्कार दिया जा रहा है, सांसद माननीय भरोसेलाल अखंड को।
दिन के तीन बजे हैं और इस वक्त अखंड जी किस दल में हैं, कहना मुश्किल है। सुबह आठ बजे से दोपहर एक बजे तक भारतीय जनजागरण पार्टी में थे, इसकी पक्की सूचना हमारे पास है। अखंड जी चार-चार, आठ-आठ घंटे में दल बदलते रहते हैं। सुबह एक पार्टी में होते हैं, दोपहर दूसरी में और शाम तीसरी में। ईमान और निष्ठा वे यों बेचते हैं, जैसे मूँगफली बेची जाती है।
अविश्वास प्रस्तावों के समय उनकी लीला का वर्णन न अंग्रेजी के महाकवि शेक्सपीयर कर सकते हैं और न हिंदी के तुलसीदास। संकटग्रस्त सरकारें अपना खजाना लेकर उनके संकटहरण शरण में पहुँच जाती हैं। अखंड जी अपनी निष्ठा तो बेचते ही हैं, अपने जैसी आठ-दस अन्य निष्ठाओं का जुगाड़ भी जमा लेते हैं। सरकार की खाली झोली भरने में उनका जवाब नहीं है। यह पुरस्कार उनकी गतिशीलता को समर्पित है। सज्जनों, दूसरा नटवर पुरस्कार व्यापार की दुनिया की घोटालागिरी के लिए है।
यह आर्थिक घोटालों के शहंशाह नेकनियत नारायण जी को दिया जा रहा है, नेकनियत जी सरकार की आँखों में धूल झोंकते हुए तीस से ज्यादा वैध और अवैध उद्योगों का संचालन कर रहे हैं। हवाला-उद्योग की अंतरराष्ट्रीय हस्ती हैं। कबूतरबाजी-उद्योग के किंग माने जाते हैं। मानव तस्करी उद्योग इंटरनेशनल के अध्यक्ष हैं। वैध रूप से संचालित उद्योगों का बीस हजार करोड़ का टैक्स उन पर बकाया है वे स्वयं को टैक्स-वैक्स से ऊपर मानते हैं। बैंकों का अरबों का कर्ज उनके सिर पर है परंतु अदायगी जैसी किसी शर्त से वे बंधे नहीं हैं। स्विस बैंक में जमा पचास हजार करोड़ रुपयों के कारण उन्हें काले धन का हिंद महासागर कहा जाता है। नटवर पुरस्कार उन्हें पुरस्कृत कर खुद धन्य हो रहा है।
मित्रों, परम आदरणीय स्वामी जगत प्रकाशानंद सरस्वती को हम धार्मिक क्षेत्र की घोटालाबाजी के लिए पुरस्कृत कर रहे हैं। स्वामी जी ने धर्म में व्यवसाय का ऐसी होशियारी से मिश्रण किया है कि बड़े-बड़े मिलावट-माफिया उनके शिष्य बन गए हैं। स्वामी जी का आध्यात्मिक साम्राज्य विदेशों तक फैला है। वे थोक में भारतीय ध्यान का विदेशों में निर्यात करते हैं। उनके ब्रांड की अनेक चीजें भक्तों के बीच हाथोंहाथ बिकती हैं। चित्र, कंठीमाला, बिल्ले, स्वामी जी के नाम की चादरें, दुप्पट्टे लुँगी और चरण पादुकाएँ तक।
वे दूध से नहाते हैं। घी से कुल्ला करते हैं और मालिश शहद से करवाते हैं। हाईटेक हैं, निजी वेबसाइट और चैनल रखते हैं। उन्हें बजरंग बली का अवतार माना जाता है, क्योंकि छाती पर उन्होंने राम जानकी का गोदना गुदवा रखा है और जिसे वे हमेशा खुला रखते हैं। सज्जनों, घोटालों के लिए इन दिनों खेल-उद्योग जितना मशहूर है, उतना आतंकवाद का उद्योग भी नहीं।
मित्रों, नोबेल पुरस्कार कहने को अंतरराष्ट्रीय हैं पर घुम फिरकर वे यूरोप में ही लौट आते हैं। स्वीडिश-अकादमी कभी-कभार एशिया को पुरस्कृत कर देती है। मैं ऐसी कोई धूर्तता नहीं करना चाहता।