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चरम पर है क्रिकेट का बुखार

- अतुल चतुर्वेदी

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अब क्रिकेट का बुखार चरम पर है। कंपनियाँ हर चौके-छक्के पर रुपए लुटा रही हैं। खिलाड़ियों के पौ बारह हैं। उन्हें बस एक ही काम करना है- दे घुमा के। यह महान गीत सिर्फ बल्लेबाजों का उत्साहवर्द्धन करता है, गेंदबाजों का नहीं। गेंदबाज की गति तो इस गीत के अनुसार उस बेबस प्रधानमंत्री सी होनी है जिसका दोष कुछ नहीं है, मात्र इसके कि उसके पास एक कमजोर फिल्डिंग वाली टीम है।
लेकिन विपक्ष है कि लगा हुआ है उसके दे घूमा के देने में।

वैसे घुमा के देने में एक प्रकार का साहस और निर्द्वन्द्वता का भाव ही झलकता है। इसमें आसपास देखने की जरूरत नहीं है, बस घुमा-घुमा के देते जाना है। यह गीत हमारी सरकार की कार्यशैली की तरह है कि अभी तो भइए काफी समय बचा है सरकार जाने में तब तक दिए जाओ जनता के घुमा के। जब एक-दो वर्ष रह जाएगा तब सोचेंगे कि क्या करना है।

कौन सी लोक-लुभावन घोषणाएँ करनी हैं। यह वक्त तो घुमा के देने का है। यह ले महँगाई का कवर ड्राइव, ये ले भ्रष्टाचार का हुक, ये ले सफाई का चीकी सिंगल और ये ले राजा का स्पेक्ट्रम सिक्सर। सब शॉट मौजूद होते हैं एक प्रतिभा संपन्न बल्लेबाज के पास। फिर यह तो लगातार दूसरी इनिंग खेल रहा है। हमारे यहाँ गीत की स्प्रिट का लोग लगातार ध्यान रख रहे हैं। वे सत्ता में आते ही घुमा के देना चालू कर देते हैं। नजदीकी क्षेत्र क्षण में अपने रिश्तेदार लगा देते हैं ताकि वे कैच टपका दें, आँखें मूंद लें खराब शॉट खेलने पर।

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संपूर्ण देश में दे घुमा के का दर्शन चल रहा है। जिसको जहाँ मौका मिल रहा है वह दूसरे के घुमा के देने में लगा है। पुलिस प्रशासन का तो यह शाश्वत अधिकार है कि यदि जनता ज्यादा बहिसयाए तो वह उसके बिना पूछे घुमा के देना चालू कर दे और तब तक दे जब तक कि वह घूम के देखने लायक कंडीशन में न रह जाए। वे इस अभ्यास को लगातार बनाए भी रखते हैं।

आखिर अभ्यास से ही तो प्रतिभा निखरती है। उधर हमारे पड़ोसी सहृदय देश भी हमारे घुमा के देने की मानसिकता में रहते हैं। वो तो हम संयमशील हैं कि उनके घुमा के देने को भी पुचकार के देना ही बताते हैं। यह गीत मुझे काफी प्रेरक और आशावादी लगा। इसमें आज के हिंसक वातावरण का मुकाबला करने की सामर्थ्य है कि तुझे खा के नहीं आना है, हल्के से नहीं देना है, घुमा के देना है। सब युवा लग गए हैं घुमा के देने में। वे माँ-बाप, गुरुजनों, मान्यताओं के घुमा के देने में लग गए हैं। जनता भी आ गई है दे घुमा के देने की शैली में। उसने घुमा के देना चालू किया तो बड़े-बड़े तानाशाह गद्दी छोड़ भाग खड़े हो गए हैं।

जनता के पास कई गोपनीय शॉट हैं। उसके पास हेलिकॉप्टर ही नहीं, धोबीपाट शॉट भी हैं। स्वीप का तो खैर वह महारथी ही है। ऐसा झाडू लगाती है कि पीढ़ियाँ तक नहीं झाँकतीं। यह समय घुमा देने का ही नहीं, घुमा के देने और घुमा के कहने का भी है, जैसा कि मैंने सब कुछ कह दिया है आपसे घुमा के।

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