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चोरी हुए बापू के वस्तु-विचार

बापू का प्राचीन चश्मा गायब

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- शिव शर्मा
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आज बापू की विरासत में चप्पल और चश्मा ही बचे हैं किंतु बाबा रामदेव के पास तो करोड़ों की संपत्ति है। यह बात दीगर है कि किसी बालकृष्ण जी के नाम पर है। सोचिए, चोर यदि बापू का चश्मा चुराने की अपेक्षा पतंजलि आश्रम से माल चुराता तो कितना फायदे में रहता। काश, बापू का भी कोई बालकृष्ण होता तो चोरों को उसे चुराने में कितना आनंद आता।

महात्मा गांधी के वर्धा आश्रम से बापू का अति प्राचीन चश्मा गायब क्या हुआ कि सीआईडी उसकी जांच में जुट गई है। पुराने जमाने का यह चश्मा कोई चोर तो हर्गिज नहीं चुराएगा, क्योंकि यदि वह इसे बेचने जाएगा तो कोई 10-20 रुपए में भी नहीं खरीदेगा।

मैंने गांधी जी के कई चित्र देखे हैं। जिसमें उनके चश्मे में डंडी के स्थान पर खादी की मोटी डोरी बँधी हुई रहती थी। जाहिर है कि गांधीजी फैशन के लिए चश्मा नहीं पहनते थे। इसी कारण गोल-गोल शीशों वाला वह चश्मा कोई व्यक्ति क्यों चुराएगा?

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गांधी जी का चश्मा ही क्यों, उनके कई विचार भी लोगों ने चुरा लिए। बाबा रामदेव हों या अण्णा हजारे, हर शख्स गांधी जी के नाम पर सत्याग्रह किए जा रहा है।

उनका तर्क है कि जब गांधी जी ने इस अस्त्र का इस्तेमाल किया था तो हम क्यों नहीं कर सकते? मेरे ही नगर में भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करने वाले सत्याग्रहियों में कई ऐसे थे जो स्वयं भी रिश्वत देते रहे हैं और लेते भी रहे हैं। अभी मैंने ही अपनी पेंशन की राशि बढ़वाने के लिए रिश्वत दी है।

प्रश्न यह है कि हम रिश्वत लेने वालों को ही भ्रष्टाचारी कहते हैं और देने वालों को नहीं। इसे मजबूरी का नाम महात्मा गांधी कहते हैं। कुछ वर्षों पूर्व बापू की चप्पलें भी चुरा ली गई थीं। उनके लिखे पत्रों को चुराकर लोगों ने झूठी-सच्ची पुस्तकें छपवा कर लाखों कमा लिए। बापू यह बात जानते थे कि उनकी प्रिय वस्तुओं को भी लोग छोड़ने वाले नहीं हैं, इसी कारण वे अपनी विरासत में धन-संपत्ति नहीं छोड़ गए।

8-10 रुपए का चश्मा चुराकर चोर बहुत ही निराश हो रहा होगा। बापू के सिद्धांतों को तो सभी ने मिलकर चुरा लिया है। अब यदि धन-संपत्ति नहीं तो गांधी जी की चप्पलें और चश्मा ही सही, हम लोग बापू की कोई भी निशानी नहीं छोड़ना चाहते।

उनके ही जन्मस्थान गुजरात में सबसे अधिक शराब मिलती और बिकती है। यहां तक कि फिल्म वाले भी पीछे नहीं रहे और उन्होंने मुन्नाभाई फिल्म बना कर उनकी गांधीगीरी को ही बेच खाया। कांग्रेसियों ने तो सत्ता पर बैठते ही गांधीजी के विचारों की चोरी प्रारंभ कर दी थी, सो भाजपाई कैसे पीछे रहते। पिछले दिनों उन्होंने गांधी जी की समाधि पर सत्याग्रह के नाम पर जो ठुमके लगाए, वह भी गांधी जी के सत्याग्रह को चुराना ही तो माना जाएगा।

आज सबने मिलकर गांधीजी की हर वस्तु-विचार चुरा लिए हैं। अतः शायद उनका पुराना चश्मा चुराकर ही चोर प्रसन्न हो रहा होगा।

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