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छिड़ गई आजादी की द्वितीय लड़ाई

चौसठ साल चले, अढ़ाई कोस!

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- राजेंद्र शर्मा
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लीजिए, आजादी की एक और लड़ाई छिड़ गई। तिथि- 5 अप्रैल 2011, स्थान- पहले राजघाट, फिर जंतर-मंतर, दिल्ली। बेशक, यह आजादी की ठीक-ठीक कितने नंबर की लड़ाई है, इसमें कुछ कंफ्यूजन है। आजादी की ताजा लड़ाई के प्रवक्ताओं का कहना है कि यह आजादी की दूसरी लड़ाई है लेकिन कुछ दूसरे लोगों का कहना है कि आजादी की दूसरी लड़ाई तो 1975 की 26 जून से शुरू होकर 1977 के मार्च के महीने तक चल भी चुकी थी, इमर्जेंसी के खिलाफ।

उसके बाद छिड़ी आजादी की कुछ और छुटपुट लड़ाइयों को अगर छोड़ भी दिया जाए, तब भी मौजूदा लड़ाई का नंबर तीसरे से पहले हर्गिज नहीं आ सकता है। हाँ! एक तरीका और हो सकता है कि आजादी की दूसरी लड़ाई के खाने में ही कई-कई लड़ाइयों की जगह बना दी जाए। इमर्जेंसी के खिलाफ वाली को आजादी की दूसरी लड़ाई-प्रथम घोषित कर दिया जाए, उसके बाद आजादी की दूसरी लड़ाई-द्वितीय, तृतीय आदि का सिलसिला चलता रहे।

वैसे एक तीसरा तरीका भी है पर वह जरा झगड़े-झंझट वाला है। आजादी की दूसरी लड़ाई का आसन खाली डिक्लेयर कर दिया जाए और दूसरी लड़ाई होने के दूसरे तमाम दावेदारों के दावे खारिज कर दिए जाएँ- इमर्जेंसी के खिलाफ लड़ाई भी कोई आजादी की लड़ाई थी लल्लू!

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असल में तो आजादी के बाद आजादी की असली लड़ाई एक यही है। तभी तो आजादी की पहली लड़ाई की तरह आजादी की यह लड़ाई भी एक बुजुर्ग के उपवास के जरिए लड़ी जा रही है। पहली लड़ाई की तरह इस लड़ाई का भी मुद्दा एक ही है और वह भी नैतिकता की ही भाषा में पेश किया जा रहा है- लड़ाई किसी व्यक्ति, संस्था, संगठन के खिलाफ नहीं, भ्रष्टाचार के खिलाफ है!

चौसठ साल चले, अढ़ाई कोस! आजादी की उसी लड़ाई की तरह बुजुर्ग हजारे को आगे रखकर भाँति-भाँति के लोग, इकट्ठे हो रहे हैं, जो आगे चलकर इस अराजनीतिक लड़ाई को राजनीतिक रूप से भुनाएँगे!

मामला चूँकि आजादी की लड़ाई का है, हजार नायक एक खलनायक वाली सिचुएशन है। जैसा कि होना ही था। खलनायक के रोल में सरकार है और नायकों की फौज में खुद सरकार की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद तक शामिल होने के लिए अकुला रही है। चूँकि आजादी की लड़ाई का मामला है, खाकी वाले उसमें कूद पड़ने के लिए उतावले हो रहे हैं।

बेचारों की आजादी की पहली लड़ाई मिस जो हो गई थी। पहली में न सही, दूसरी में ही सही, मुराद तो आजादी की लडाई में हिस्सा लेने से है। बस एक छोटी सी प्राब्लम है। बेचारों के गले में येदियुरप्पा का खटखटा लटक रहा है। जहाँ भी जाते हैं, भ्रष्ट-भ्रष्ट कहकर दुरदुराए जाते हैं। खैर! आजादी की एक और लड़ाई जारी है। किधर जा रही है, यह तो आगे-आगे पता चलेगा पर फिलहाल लड़ाई जारी है।

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