फिल्म : डुप्लीकेट गीतकार : जावेद संगीत : अनु मलिक बोल : कब मैंने ये सोचा था
कब मैंने ये सोचा था कब मैंने ये जाना था तुम मेरे निकट आओगे बाहों में लिपटाओगे हाथों में रंग भरोगे मेरे चेहरे पे मलोगे मेरे मेहबूब मेरे सनम मुबारक होली के ये रंग।
आँखों में शरारत ये जो पहले तो नहीं थी चेहरे की मुस्कराहट पहले तो नहीं थी पहले तो ना यूँ छाई थी रंगों की ये छटाएँ पहले तो ना यूँ महकी थी फागुन की ये हवाएँ पहले तो नहीं आती थी लड़कपन की ये अदाएँ आज कितने हँसी ये सितम मुबारक होली के ये रंग।
तुम पर होली का जादू पहले तो नहीं था दिल जैसा है बेकाबू पहले तो नहीं था पहले तो नहीं होती थी रंगों की ये बरसातें हैरान हूँ मैं, भीगा तन रंगों को लिपटा के इंकार करना था लेकिन तेरे रंगों में समा के मैं तो हो गई तुझसे इक रंग मुबारक होली के ये रंग।