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बसंती बयार खिलाना चाहता हूं

- शरद उपाध्याय

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एक दिन सुबह-सुबह उठा तो दरवाजे पर दस्तक हुई। मैं समझ गया। दरवाजा खोला, देखा बसंत ही था। 'तुम फिर आ गए,' मैंने गुस्से में पूछा।
'क्या करूं, समय ही नहीं मिलता। साल भर से तैयारी करता हूं। तब जाकर आ पाता हूं,' वह हांफते हुए बोला।
'क्या हो गया तुम्हें, सब ठीक तो है न।'
'हां, मैं ठीक हूं। शीत ऋतु अलविदा हो रही है तो मैं सब जगह बसंती बयार खिलाना चाहता हूं।'
'विदा हो रही है, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है। यहां तो ठंड के मारे जान निकल रही है। बेकार की बातें कर रहे हो,' मैं चिढ़ गया।
'मैं बस तुमसे कुछ उधार...' मेरे तनबदन में आग लग गई, 'देखो, इस समय तुम उधार की बात बिलकुल मत किया करो। तुम्हें पता है पूरी तनख्वाह इनकम टैक्स में जा रही है। मैं तो खुद किसी से उधार लेने के जुगाड़ में हूं और तुम हो कि मुझे ही चूना लगाने आ गए।

'नहीं-नहीं, मैं पैसे नहीं मांग रहा हूं,' वह घबरा गया। 'मैं तो थोड़ा बासंती रंग मांग रहा हूं। मैं चाहता हूं कि सब जगह खुशियां बिखर जाएं, फूल खिलें और बसंत की बयार गोरी के मन को भिगो दे।'

मैं शर्मिंदा हो गया। 'माफ करना पर क्या करूं, आजकल चिड़चिड़ा हो गया हूं। ब्लडप्रेशर ज्यादा रहने लगा है। ऑफिस में काम अधिक हो गया है। सुबह से शाम तक करता हूं। फिर भी पूरा नहीं हो पाता है।'

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कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा।' 'और मैं कहां से दे दूं बासंती रंग। मन पर तो इतनी कालिमा छाई है कि लाख ढूंढ़ता हूं कहीं कोई रंग ही नहीं मिलता। मेरे जीवन में बसंत आए ही वर्षों हो गए।'
'वाकई परेशानी है, ऐसा करो, अपने घर में से किसी से दिलवा दो।'
'घर में सभी का यही हाल है। पत्नी को गठिया व शुगर दोनों ने ही जकड़ रखा है।'
'तो ऐसा करो, बेटी से दिलवा दो।'
'तुम भी अजीब आदमी हो। बच्ची का हाल बुरा है। पैसा नहीं है, इसलिए पढ़ाई छोड़ घर बैठी है। कोई शादी के लिए आता है तो इतना दहेज मांगता है कि पूछो मत। अब जब शादी की उम्र में शादी न हो तो कहां से बासंती रंग लाएगी।'
'पर तुम्हारे बेटा भी तो है। उसी से कह दो न।'
'जरा धीरे बोलो, सुन लेगा तो भड़क जाएगा। इतनी सारी डिग्रियां लेकर बैठा है। अगर उसे नौकरी मिल जाए तो तुम्हें बांसती रंग से रंग दे। तुम्हारी जान-पहचान है क्या... तुम तो बहुत बड़े आदमी हो।'
'अब कोई मेरी सुनता ही नहीं,' वह उदास स्वर में बोला।
मैं चौंका,'तुम बासंती रंग दूसरों से क्यों मांग रहे हो, तुम्हारे चेहरे पर तो पीला रंग दिखाई दे रहा है।'
'अरे, ये रंग नहीं है।'
'तुम झूठ बोलते हो।' वह रोने लगा,'अब तुम से क्या छिपाना। मुझे तो स्वयं ही पीलिया हो गया है। बासंती बयार कहां से पैदा करूं? 'मैं क्या कहता। चुप हो गया। कहने को मेरे पास था ही क्या?

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