जठराग्नि पुराण की एक कथा के अनुसार असुरों की आदि माता ने दुख, दारिद्रय, अशांति, अनैतिकता, भ्रष्टाचार, जमाखोरी, घोटालाबाजी आदि जिन नौ संतानों को जन्म दिया था, कालांतर में उनमें से सबसे छोटी पुत्री भूलोक में, महँगाई नाम से कुविख्यात हुई। यह जन्म लेते ही जवान होने लग गई थी। महँगाई विकट चंचला और अति उत्पातकारिणी थी। कुलक्षिणी ऐसी कि जहाँ कहीं भी इसकी छाया पड़ जाती, वह स्थान बंजर हो जाता।
चंद्रमा की चौदह कलाओं को मात देने वाली महँगाई की इस वृद्धि दर को देखकर असुर लोक के निवासी भयाक्रांत हो गए। उन्होंने आदि माता की सामूहिक प्रार्थना की, तदंतर निवेदन किया- 'हे माते, आपकी यह कन्या अतिशय कष्टदायिनी है। यह हमारे घरों में घुस आती है। भोजनागार की प्रत्येक वस्तु का स्पर्श करती है। यह जिस सामग्री को भी हाथ लगाती है, उसकी मात्रा न्यून और भाव उच्च हो लेते हैं।
आपकी उदरात्मजा ने स्थानीय बाजारों में भी अपनी लीला आरंभ कर दी है। यह जिस वस्तु को भी देखती है, लील जाती है। देवी, इसकी भक्षण-शक्ति विकराल है। इसे अपने भाइयों-बहनों का भी पूर्ण सहयोग प्राप्त है। इससे पूर्व कि यह आपकी महँगाई बिटिया सकल असुर लोक को आच्छादित कर ले, आप इससे हमारी रक्षा कीजिए। त्राहि माम माते, त्राहि माम।'
तब असुरों की आदि माता ने अपनी इस लाड़ली कन्या को प्रेम पूर्वक पास बुलाया और उससे कहा- 'बेटी, मैं तुम्हारे स्वभाव, प्रकृति, गुण, गति से भलीभाँति परिचित हूँ, क्योंकि मैं तुम्हारी जन्मदात्री हूँ। यदि तुम चाहती हो कि मैं असुरलोक में अनंतकाल तक राज्य करूँ, तो तुम्हें यह स्थल त्याग कर किसी और लोक में निवास करना होगा।'
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महँगाई नाम की इस पुत्री ने, जो तत्समय पूर्ण यौवनावस्था को प्राप्त कर चुकी थी, अपनी माता से कहा- 'माते, मैं आपके आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकती। मैं अभी और इसी समय किसी और लोक में जाने को तैयार हूँ। आप ही सुझाइए कि मैं किस लोक में जाऊँ, जहाँ पर सुखपूर्वक अनादिकाल तक निवास कर सकूँ।'
तब असुरों की आदि माता ने आँखों में आँसू और अधरों पर मुस्कान लाते हुए कहा- 'बेटी, मेरे विचार से भूलोक ही तुम्हारे लिए सबसे निरापद है। वहाँ पर एक ऐसा स्थान है, जहाँ के राजा तुम्हारे किसी कार्य में कोई भी विध्न नहीं डालेंगे।
अलबत्ता उस देश के कर्णधार स्वयं तुम्हें प्रत्येक घर में ले जाकर तुम्हारी मूर्ति की स्थापना में सहयोग करेंगे और जनता को तुम्हारी पूजा-अर्चना के लिए विवश करेंगे।' तब महँगाई ने संकेतों को समझते हुए भूलोक की भारत भूमि को वरण करने का निश्चय किया। वह भारत में आ बसी। तभी से यहाँ के निवासी दोनों वक्त भूखा रहकर इसकी पूजा करते हैं और धन का चढ़ावा अर्पित करते हैं।