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सर्वगुण संपन्न कैमरे - भाग 4

फोटोकीना मेले में छाए बिना मिरर वाले कैमरे

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राम यादव

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जर्मनी के कोलोन शहर में हर दो साल पर लगने वाले फोटोकीना मेले में दो साल पहले पहली बार कैमरों की एक ऐसी प्रजाति देखने में ई, जो अब तेजी से अपना रास्ता बना रही है।

जापान की पैनेसॉनिक कंपनी ने Lumix G नाम से एक ऐसा मॉडल पेश किया था, जो सिद्धांतत: मिरर रिफ्लेक्स SLR कैमरा था, पर जिस में ऊपर से कैमरे के भीतर झाँक कर देखने का न तो ऑप्टिकल व्यूफाइंडर था और जो, न ही, तथाकथित सिस्टम कैमरों जैसा भारी-भरकम था,तब भी उनकी सारी खूबियों से लैस था।

अपने नपे-तुले आकार के कारण वह कॉम्पैक्ट कैमरा भी था और SLR कैमरों-जैसे बड़े फोटो-सेंसर तथा साथ ही उन्हीं की तरह परिवर्तनीय (इंटरचेंजेबल) लेंस चढ़ाने की सुविधा देने वाले बायोनेट से लैस होने के कारण सिस्टम कैमरा भी था। इस बीच ओलिंपस, रीको, सोनी और सैमसंग जैसी दूसरी नामी कंपनियों ने भी ऐसे कैमरे बाजार में उतार दिए हैं।

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कैमरों की यह नई किस्म एक ऐसा वर्णसंकर है कि उसके लिए अभी तक कोई एक ही सर्वमान्य नाम तक नहीं प्रचलित हो पाया है। कोई उसे एविल (EVIL--Electronic Viewfinder Interchangeable Lens) कैमरा कहता है, तो कोई सिल्क (SILC-- Small Interchangeable Lens Camera) कहना पसंद करता है। लेकिन, इस बीच एक तीसरे नाम CSC (Compact System Camera) का पलड़ा भारी हो गया लगता है।

कैमरों का यह वर्ग सिस्टम कैमरों के फ़ीचर वाला कॉम्पैक्ट कैमरा ही कहा जाएगा। फोटो खींचते समय या तो कैमरे की पिछली दीवार पर बने मॉनिटर पर या फिर मिनी टीवी जैसे एक ऐसे इलेक्ट्रॉनिक व्यूफाइंडर (EVF) पर देखना होता है, जो आईपीस के समान है।

मिरर रिफ्लैक्स कैमरों के अभ्यस्त लोगों को शुरू में इससे थोड़ी परेशानी हो सकती है। उन्हें अपनी आदत बदलनी पड़ेगी। वे पाएँगे कि इलेक्ट्रॉनिक व्यूफाइंडर में अभी वे बारिकियाँ नहीं आ पाई हैं, जो पारंपरिक व्यूफाइंडर में हुआ करती थीं।

पर, दूसरी ओर मिरर रिफ्लेक्स कैमरों के भीतर झाँकने के लिए कैमरे में पहले जिस जगह की जरूरत पड़ती थी, उसके न रह जाने के दो बड़े लाभ भी हैं। कैमरे का आकार छोटा और हल्का हो गया है। लेंस और फोटो-सेंसर के बीच की दूरी कम हो गई है। इससे इस प्रकार के और भी कॉम्पैक्ट ऑब्जेक्टिव बनाना और लगाना आसान हो गया है, जो उच्चकोटि के वाइड-ऐंगल और जूम-ऑब्जेक्टिव कहलाते हैं। साथ ही हर फोटो को तुरंत देख कर जाँच-परख हो सकती है कि वह कैसा बन पड़ा है।

मिरर रिफ्लैक्स कैमरों की तरह के बिना मिरर वाले इन कॉम्पैक्ट कैमरों की एक सबसे बड़ी कमी यह है कि उनके फोटो-सेंसर को एक साथ इतने सारे काम करने पड़ते हैं कि वह लेंस को लक्ष्य पर उस तेजी से फोकस नहीं कर पाता, जिस तेजी से पारंपरिक ऑटोफोकस कैमरे करते हैं। निर्माताओं का कहना है कि यह कमी भी समय के साथ दूर हो जाएगी।

मुख्य रूप से इसी कमी को दूर करने के लिए सोनी ने अपने Alpha 55V और Alpha 33 में एक अनोखा रास्ता निकाला है। कोलोन के फोटोकीना मेले में प्रदर्शित इन दोनों कैमरों में सोनी ने मिरर रिफ्लेक्स SLR कैमरों जैसा एक मिरर (दर्पण) तो लगाया है, लेकिन उसे अंशत: पारदर्शी और स्थिर रखा है।

सोनी का कहना है कि इस मिरर पर पड़ने पाला 70 प्रतिशत प्रकाश सीधे फोटो-सेंसर के पास पहुँचता है और 30 प्रतिशत ऊपर ऑटोफोकस मॉड्यूल की तरफ़ चला जाता है। इस प्रकाश के बल पर ऑटोफोकस बेहद तेजी से काम करता है, इस तेजी से कि Alpha 55V प्रतिसेकंड 10 तस्वीरें खींच सकता है।

इस दौरान ऑटोफोकस मॉड्यूल 15 अलग-अलग बिंदुओं को अपना लक्ष्य बना कर कैमरे को लगातार उन पर साधे रखता है। पुराने SLR कैमरों और नए कॉम्पैक्ट कैमरों की खूबियों को मिलाने वाली अपनी इस अर्धपारदर्शी मिरर रिफ्लैक्स तकनीक को सोनी ने 'सिंगल लेंस ट्रांसल्यूसेंट मिरर' (Single Lens Translucent Mirror--SLT) नाम दिया है।

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