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चतुर्थी पर ऐसे स्वागत करें श्री गणेश का अपने आंगन में....

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स्मृति आदित्य

श्री गणेश, गजानन, विनायक, लंबोदर, वक्रतुंड और एकदंत के नाम से पुकारे जाने वाले भगवान श्री गणेश का 10 दिन के लिए पृथ्वी पर शुभागमन हो रहा है। प्रथम पूज्य श्री गणेश हमारे अति विशिष्ट, सौम्य और आकर्षक देवता हैं। उनके आगमन के साथ ही पृथ्वी पर चारों तरफ रौनक, रोमांच और रोशनी बिखर जाती है। 
इस सुंदर देवता से हर वर्ग, हर उम्र के व्यक्ति का लगाव है। ऐसे मेहमान जो मोहित करते हैं, मुग्ध करते हैं, मन को भाते हैं, क्योंकि वे आते हैं बिना किसी अपेक्षा के और देकर जाते हैं हमारी अपेक्षा से कई-कई गुना ज्यादा....असंख्य आशीर्वाद, अनगिनत शुभता और मांगल्य। स्वागत, वंदन, अभिनंदन की इस बेला में हर दिल से यही निकलता है- 
 
स्वागतम्, सुस्वागतम्, हे अतिथि सु-स्वागतम... 
स्पर्श पाकर तव चरण का 
धन्य यह आंगन हुआ... 
सूर्य-तारे-चंद्रमा, 
आलोक कण-कण में हुआ... 
स्वागतम्, सुस्वागतम् .. . 
हे अतिथि सुस्वागतम्....    
दीजिए आशीष हमको, 
पूर्ण हो मनोकामना, 
स्नेह सिंचित मार्गदर्शन, 
दीजिए शुभकामना... 
स्वागतम्, सुस्वागतम् .. . हे अतिथि सुस्वागतम्....    
 
क्या करें श्री गणेश जी के आगमन से पहले 

क्या करें श्री गणेश जी के आगमन से पहले 
 
घर को सजाएं। संवारें। निखारें। इतना खूबसूरत हो उनके आने से पहले आपका घर कि देखते ही वे प्रसन्न हो जाए। मुस्कुरा उठें और कहें कि बस अब कहीं नहीं जाना.. यहीं रहना है। सुख, सुविधा, आराम, खुशियां जितनी आप गणपति के समक्ष रखेंगे उतनी ही और उससे कहीं ज्यादा आपको प्रतिसाद में मिलेगी। उनके स्थापना का स्थान स्वच्छ करें। सबसे पहले स्थान को पानी से धोएं। 
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कुमकुम से एकदम सही व्यवस्थित स्वास्तिक बनाएं। चार हल्दी की बिंदी लगाएं। एक मुट्ठी अक्षत रखें। इस पर छोटा बाजोट, चौकी या पटा रखें। लाल, केसरिया या पीले वस्त्र को उस पर बिछाएं। स्थान को रोशनी से सुसज्जित करें। चारों तरफ रंगोली, फूल, आम के पत्ते और अन्य सजावटी सामग्री से स्थान को सुंदर और आकर्षक बनाएं।

आसपास इतना स्थान अवश्य रखें कि आरती की पुस्तक, दीप, धूप, अगरबत्ती, प्रसाद रख सकें। सपरिवार आरती में शामिल होना जरूरी है अत: किसी ऐसे कमरे में गणेश स्थापना करें जहां सब पर्याप्त दूरी के साथ खड़े हो सके। एक तांबे का सुस्वच्छ कलश शुद्ध पानी भर कर, आम के पत्ते और नारियल के साथ सजाएं। यह समस्त तैयारी गणेश उत्सव के आरंभ होने के पहले कर लें। 

जब गजानन को लेने जाएं तो स्वयं नवीन वस्त्र धारण करें। पुरुष सिर पर टोपी, साफा या रूमाल रखें। स्त्रियां सुंदर रंगबिरंगे वस्त्र के साथ समस्त आभूषण पहनें। सुगंधित गजरा लगाएं। अगर उपलब्ध हो तो चांदी की थाली साथ में लेकर जाएं ना हो तो पीतल या तांबे की भी चलेगी। सबसे आसान है लकड़ी का वस्त्र से सुसज्जित पाटा। साथ में सुमधुर स्वर की घंटी, खड़ताल, झांझ-मंजीरे लेकर जा सके तो अति उत्तम।   

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मंगल प्रवेश 
 
घर की मालकिन गणेश को लाकर द्वार पर रोकें। स्वयं अंदर आकर पूजा की थाली से उनकी आरती उतारें। उनके लिए सुंदर और शुभ मंत्र बोलें। आदर सहित् गजानन को घर के भीतर उनके लिए तैयार स्थान पर जय-जयकार के साथ शुभ मुहूर्त में स्थापित करें। सभी परिजन मिलकर कर्पूर आरती करें। पूरी थाली का भोजन परोस कर भोग लगाएं। लड्डू यो मोदक अवश्य बनाएं। पंच मेवा भी रखें। प्रतिदिन प्रसाद के साथ पंच मेवा जरूर रखें।    
 
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 पूजन विधि : 
 
आचमन- ॐ केशवाय नम:। ॐ नारायणाय नम:। ॐ माधवाय नम:। 
 
कहकर हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें एवं ॐ ऋषिकेशाय नम: कहकर हाथ धो लें।
 
इसके बाद प्राणायाम करें एवं शरीर शुद्धि निम्न मंत्र से करें। (मंत्र बोलते हुए सभी ओर जल छिड़कें)...।
 
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।
 
सावधानियां
 
गणेश जी के स्थान के उलटे हाथ की तरफ जल से भरा हुआ कलश चावल या गेहूं के ऊपर स्थापित करें। धूप व अगरबत्ती लगाएं। कलश के मुख पर मौली बांधें एवं आमपत्र के साथ एक नारियल उसके मुख पर रखें।

नारियल की जटाएं सदैव ऊपर रहनी चाहिए। घी एवं चंदन को ताम्बे के कलश में नहीं रखना चाहिए। गणेश जी के स्थान के सीधे हाथ की तरफ घी का दीपक एवं दक्षिणावर्ती शंख रखना चाहिए।  सुपारी गणेश भी रखें।  
 
पूजन के प्रारंभ में हाथ में अक्षत, जल एवं पुष्प लेकर स्वस्तिवाचन, गणेश ध्यान एवं समस्त देवताओं का स्मरण करें। अब अक्षत एवं पुष्प चौकी पर समर्पित करें। इसके पश्चात एक सुपारी में मौली लपेटकर चौकी पर थोड़े-से अक्षत रख उस पर वह सुपारी स्थापित करें। भगवान गणेश का आह्वान करें। गणेश आह्वान के बाद कलश पूजन करें। कलश उत्तर-पूर्व दिशा या चौकी की बाईं ओर स्थापित करें। कलश पूजन के बाद दीप पूजन करें। इसके बाद पंचोपचार या षोडषोपचार के द्वारा गणेश पूजन करें। परंपरानुसार पूजन करें। आरती करें। 

विशेष : 10 दिन तक नियमित समय पर आरती करें। अपनी सुविधानुसार समय को घटाएं या बढ़ाएं नहीं। गणेश जी प्रतीक्षा करना कतई पसंद नहीं करते हैं। उन्हें समय पर प्रसाद और आरती से प्रसन्न करें।  
पूजन : 
 
पंचोपचार पूजन- 1. गंध, 2. पुष्प, 3. धूप, 4. दीप, 5 नैवेद्य।
 
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षोडषोपचार पूजन-
 
1. आह्वान,
2 आसन (स्थान ग्रहण कराएं),
3 पाद्य (हाथ में जल लेकर मंत्र पढ़ते हुए प्रभु के चरणों में अर्पित करें),
4. अर्घ्य (चंद्रमा को अर्घ्य देने की तरह पानी छोड़ें),
5 आचमनीय (मंत्र पढ़ते हुए 3 बार जल छोड़ें),
6. स्नान (पान के पत्ते या दूर्वा से पानी लेकर छींटें मारें),
7. वस्त्र (सिलेसिलाए वस्त्र, पीताम्बरी कपड़ा या कलावा),
8. यज्ञोपवीत (जनेऊ),
9. आभूषण (हार, मालाएं, पगड़ी आदि),
10. गंध (इत्र छिड़कें या चंदन अर्पित करें),
11. पुष्प,
12.  धूप,
13. दीप,
14. नैवेद्य (पान के पत्ते पर फल, मिठाई, मेवे आदि रखें।),
15. ताम्बूल (पान चढ़ाएं),
16. प्रदक्षिणा व पुष्पांजलि।

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