भगवान गणेशजी के संबंध में कई तरह की पौराणिक कथाएं मिलती हैं। गणेशजी के 12 प्रमुख नाम हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन। उनके प्रत्येक नाम के पीछे एक कथा है। आओ जानते हैं कि उनका शनिदेव से क्या संबंध था।
जिस तरह गणेशजी की उत्पत्ति के संबंध में हमें दो कथाएं मिलती है। पहली यह कि उनका जन्म माता पार्वती द्वारा पुण्यक व्रत करके के बाद हुआ था और दूसरी यह कि माता पार्वती ने अपनी सखी जया और विजया के कहने पर गणेशजी की उत्पत्ति अपने मैल या उबटन से की थी। इसी तरह उनकी मस्तक के कटने या भस्म होने के संबंध में भी दो कथाएं मिलती है। पहली यह कि जब माता पार्वती ने गणेशजी की उत्पत्ति की ओ एक बार उन्होंने स्नान के दौरान गणेशजी को स्नान स्थल से बाहर तैनात कर दिया था।
इतने में शिवजी आए और पार्वती से मिलने के लिए जाने लगे तो गणेशजी ने जब उन्हें रोका तो क्रुद्ध शिव ने उनका सिर काट दिया। जब पार्वतीजी ने देखा कि उनके बेटे का सिर काट दिया गया तो वे क्रोधित हो उठीं। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर गणेशजी के सिर पर लगा दिया और वह जी उठा।- स्कंद पुराण
दूसरी कथा के अनुसार शनि की दृष्टि पड़ने से शिशु गणेश का सिर जलकर भस्म हो गया था। इस पर दु:खी पार्वती (सती नहीं) से ब्रह्मा ने कहा- 'जिसका सिर सर्वप्रथम मिले उसे गणेश के सिर पर लगा दो।' पहला सिर हाथी के बच्चे का ही मिला। इस प्रकार गणेश 'गजानन' बन गए। एक अन्य कथा के अनुसार उनका सिर विष्णु जी लेकर आते हैं।
संपूर्ण कथा इस प्रकार है : ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए ‘पुण्यक’ नामक व्रत था जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु ने उनके गर्भ से बालक रूप में जन्म लिया। जन्म के पश्चात सभी देवी और देवता शिव-पार्वती को बधाई देने और बालक गणेश को आशीर्वाद देने के लिए बारी-बरी से उपस्थित हुए।
परंतु, शनिदेव ने बालक गणेश को न तो देखा और न ही उनके पास गए। माता पार्वती को यह बात अपने पुत्र का अपमान लगी और वो रुष्ट हो गईं। दरअसल, पार्वतीजी को शनिदेव की पत्नी द्वारा दिए गए श्राप के बारे में पता नहीं था कि उनकी दृष्टी पड़ते ही हानि हो सकती है। उन्हें लगा कि शनि उनके पुत्र का अपमान कर रहे हैं।
उन्होंने कहा- सूर्यपुत्र, अपनी गर्दन क्यों झुका रखी है! मेरी व मेरे पुत्र की ओर देखो, तुम मेरे पुत्र को देख क्यों नहीं रहे हो? इस पर शनिदेव ने कहा कि- "माते! मेरा नहीं देखना ही अच्छा है, क्योंकि सभी प्राणी अपनी करनी का फल भोगते हैं। मैं भी अपनी करनी का फल भोग रहा हूं।" ऐसा कहकर शनिदेव अपने श्राप के बारे में बताते हैं।
तब माता पार्वती ने कहा कि सबकुछ ठीक होगा, उनके देखने पर कुछ अमंगल नहीं होगा क्योंकि यह मेरा पुत्र है और इसे सभी देवताओं ने आशीर्वाद दिया है। शनिवेद ने माता पार्वती का रुष्ट भाव समझकर उनकी आज्ञा मान ली और बालक विनायक को देख लिया। परंतु शनिदेवी की दृष्टि पड़ते ही नवजात बालक का सिर धड़ से अलग होकर भस्म हो गया। कुछ कहते हैं कि ब्रह्मांड में विलिन हो गया। माता पार्वती अपने बालक की यह दशा देख बदहवास होकर बेहोश हो गईं।
तब माता पार्वती को इस आघात से बाहर निकालने और उनके क्रोध से बचने के लिए तत्काल ही भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ पर सवार हो उत्तर दिशा में पुष्पभद्रा नदी के तट पर गए। वहां उन्होंने एक हथनी को देखा जो अपने बालक की पीठ किए बैठी थी। यह भी कहा जाता है कि वहां उन्होंने देखा कि एक हथिनी अपने नवजात शिशु को लेकर उत्तर दिशा में सिर करके सो रही थी, विष्णु भगवान ने शीघ्र ही सुदर्शन चक्र से नवजात गज शिशु का मस्तक काट लिया और वे उसे लेकर शिवलोक पहुंचे तथा माता पार्वती के बालक के धड़ पर लगाकर उसके प्राण वापस किए।
बाद में जब माता पार्वती को होश आया तो उन्होंने शनि देव को शाप दे दिया परंतु सभी देवताओं ने शनि का पक्ष लेकर कहा कि इसमें इनकी गलती नहीं है। आपको तो इन्होंने सारी बात बता ही दी थी कि ये क्यों नहीं आपके बालक को देख रहे हैं। किन्तु आपकी जिद पूरी करने हेतु ही इन्होंने आपके पुत्र को देखा। इसमें इनका कोई कसूर नहीं है। तब माता पार्वती ने शनिदेव को क्षमा कर दिया और शाप को एक पैर की विकलता के रूप में परिवर्तित कर दिया। इस तरह गणेशजी के गजानन होने में भी शनि का विशेष संबंध है।