Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

खजराना के गणेश आस्था के केंद्र

Advertiesment
हमें फॉलो करें खजराना के गणेश आस्था के केंद्र
ND
शहर में होने वाले सभी धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजनों का श्रीगणेश खजराना गणेश को न्योता दिए बगैर अधूरा माना जाता है। इस जाग्रत देव स्थान पर सभी धर्मों के लोगों को मन्नत माँगते देखा जा सकता है।

यह इलाका पहले खजराना गाँव था। किसी जमाने में किसी के हाथ बड़ा खजाना लगने से इसे खजराना कहा जाने लगा। खजराना का यह मंदिर कितना प्राचीन है, पता करना मुश्किल है, लेकिन मंदिर परिसर के इर्दगिर्द मिले अवशेष इसे परमारकालीन बताते हैं।

वक्रतुंड श्रीगणेश की 3 फुट प्रतिमा चाँदी का मुकुट धरे रिद्धी-सिद्धी के साथ विराजमान हैं जिनका पूजन पं.भालचंद्र भट्ट एवं अशोक भट्ट द्वारा विधि-विधान से कराया जाता है। गणेशजी की यह मूर्ति भी मंदिर के सामने बावड़ी से निकाली गई थी। इसके बावड़ी में होने का संकेत मंदिर के पुजारी भट्टजी के पूर्वजों को स्वप्न के माध्यम से मिला। जिसे आपने श्रद्धापूर्वक वर्तमान स्थान पर विराजित किया तब मंदिर काफी छोटा था। बाद में 1735 में मंदिर का पहली बार जीर्णोद्धार देवी अहिल्याबाई ने कराया। इसके बाद 1971 से लगातार इसकी सज्जा का कार्य जारी है।

मंदिर में पूजा, वेदपाठ और हवन निरंतर जारी रहता है। बुधवार और चतुर्थी को तो श्रद्धालुओं की लंबी कतार सुबह से देर रात तक देखी जा सकती है जिसमें लगभग 20 से 25 हजार भक्त होते हैं। यहाँ तिल चतुर्थी पर मेला भी लगता है। मंदिर में सिंदूर का तिलक और शगुन का नाड़ा (रक्षा सूत्र) बँधवाना इस देव स्थान की खासियत है, जिसके बिना दर्शन अधूरा है। मंदिर के पीछे मनोकामना पूर्ति के लिए गाय के गोबर से उल्टा स्वस्तिक बनाने की प्रथा है। मनोकामना पूर्ण होने पर उस स्वस्तिक को कुमकुम से सीधा कर पूजा पूर्ण मानी जाती है।

नया वाहन, दुकान या मकान की खरीदी-बिक्री का सौदा हो, घर में विवाह, जन्मदिन कोई भी शुभ कार्य क्यों न हो, भक्त सबसे पहले यहाँ आकर सिंदूर का तिलक करना नहीं भूलते। आने वाले भक्त सभी उम्र के होते हैं। युवा पीढ़ी का प्रतिशत अधिक रहता है। विदेशों में रहने वाले भी अपने रिश्तेदारों के जरिए प्रसाद चढ़वा कर अपनी मन्नते पूरी करते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi