देशव्यापी रामभक्तों के आगे गली-मोहल्ले के चंद गणेशभक्त लाचार हो गए। वे सभी अपनी बुक की गई गणेश प्रतिमा को लाने का साहस भी नहीं जुटा पाए। मुर्तिकारों को भी ये डर था कि कहीं उनके हाथों गणेश प्रतिमा में राम का रूप
|
|
मूषक महाराज को जस-तस शांत कर गणपति जी अपने पाण्डाल की ओर चल पड़े। पाण्डाल में बैठे कार्यकर्ता वहीं लगी चिलम से ''हमू काका बाबा ना पोरया, आशिक बनायाऽऽऽऽऽ, तन्हाइयाँ-तन्हाइयाँऽऽ'' सुन कर टाइमपास कर रहे थे। गणेश जी की मूर्ति को आता देखते ही मोहल्ले के चिंटु-मिंटू ढोल ले आए और दनादन कूटने लगे। मूर्ति श्रृंगार की सारी सामग्री एक साथ प्रतिमा पर लाद दी गई। पण्डित जी ने भी अपना मोबाइल और जींस-टीशर्ट एक तरफ सरका कर धोती धारण कर ली, और गणेश आरती की सीडी बजवा दी। प्रसाद बँट गया। गणेश जी विराज कर चिंता करने लगे कि आगे के दस दिन और क्या-क्या देखना पड़ेगा। उन्हें अन्य देवों से ईर्ष्या होने लगी ये सोचकर कि वे सभी तो पृथ्वी भ्रमण हेतु रामनवमी, जन्माष्टमी, आदि पर एक दिन आते हैं और चले जाते हैं। अब मुझे दस दिन अपने भजन सुनना है और ये सब देखना है। एकाएक लाउडस्पीकर से हुई घोषणा से उनका ध्यान टूट गया। संचालक महोदय ने गणशोत्सव के उपलक्ष्य में 'डांस कॉम्पिटिशन' का शंख फूँक दिया था।
हम इस कल्पना तो किसी आधुनिक हास्य फ़िल्म के क्लाइमैक्स के समान यहीं समाप्त कर सकते हैं। किंतु इससे उपजे सवालों का जवाब न मिलने पर इसे नज़रअंदाज़ कर देना ठीक नहीं होगा। हमारे देश में आए दिन होने वाले ऐसे हंगामे आम नागरिक को तो हलकान कर देते हैं। इनका दृढ़संकल्प भी ऐसा कि देवता स्वयं भी इन भक्तों के आगे बेबस हो सकते हैं। अपने भगवान, अल्लाह, ईश्वर, जीसस, वाहेगुरु के साथ ऐसा अपमान फिर न हो इसके लिए हम ही कुछ कर सकते हैं। भले ही हमें दंगों, बंद और चक्काजाम के विरोध में स्वयं और भगवान पर भरोसा कर रास्तों पर निकलना पड़े।