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मुझे पूरे गाँव को खीर खिलानी है

गणेश चतुर्थी पर विशेष

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- ‍अखिलेश्रीराबिल्लौरे

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आज से गणेशोत्सव प्रारंभ हो रहे हैं। गली-गली, गाँव-गाँव, शहर-शहर, मोहल्ले-मोहल्ले अनगिनत गणेशजी की प्रतिमाएँ विराजित होंगी। हर चौराहा 10 दिनों तक गणेशजी के जयकारों से गूँजेगा। जो भजन-गीत पूरे वर्ष सुनने को नहीं मिले, वे जोर-शोर से बजेंगे। युवा, बच्चे उत्साह से सराबोर रहेंगे। तरह-तरह की प्रतियोगिताएँ आयोजित होंगी। कुल मिलाकर चारों ओर वातावरण खुशहाल रहेगा।

देवताओं में प्रथम पूजनीय गणेशजी के बारे में आज दुनिया बहुत कुछ जानती है। फिर भी बचपन में अपनी माँ के मुखारविंद से सुनी एक कहानी प्रस्तुत कर रहा हूँ। एक बार गणेशजी ने सोचा कि मेरे जयकारे घर-घर में गूँज रहे हैं, सभी मुझे पुकार रहे हैं, लेकिन इनमें से सच्चा भक्त कौन है। इसका पता लगाना पड़ेगा। सो वे एक अंजुली दूध और चावल के थोड़े दाने लिए एक गाँव में उतर गए।

सर्वप्रथम उन्होंने गाँव के पूरे चक्कर लगाए। फिर एक घर में गए और वहाँ जाकर कहा कि मैं दूध और चावल लाया हूँ, पूरे गाँव को खीर खिलानी है। कृपया खीर बना दो। उस घर के लोगों ने शायद उन्हें पहचाना नहीं और कह दिया कि आगे जाओ, इतने से दूध-चावल में गाँव तो क्या बच्चा भी पेट नहीं सकता। मुस्कुराकर गणेशजी अगले द्वार पर पहुँच गए। वहाँ बड़े आदर के साथ उनका अतिथि सत्कार हुआ। गणेशजी ने देखा कि बड़े धार्मिक प्रवृत्ति के लोग हैं सो उन्होंने अवसर पाकर अपने मन की बात कह दी लेकिन क्या उन्हें यहाँ से भी निराशा हाथ लगी।

इस प्रकार गणेशजी उस गाँव में घर-घर हो आए लेकिन किसी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया, ऊपर से कहीं-कहीं तो वे हँसी का पात्र भी बन गए। अंत में वे गाँव से बाहर एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए। वहाँ पास ही एक बुढि़या का घर था। वह बुढि़या वहाँ अकेली रहती थी। उसकी कंजूसी के गाँव में बड़े चर्चे थे। वह किसी को फूटी कौड़ी तक नहीं देती थी। गणेशजी ने बैठे-बैठे सोचा चलो अम्मा के पास चलते हैं। वह क्या कहती है।

यह सोचकर वे उठे और बुढि़या के दरवाजे पर जाकर खड़े हो गए। जोर से आवाज लगाई- अम्मा मैं आया हूँ, आपसे कुछ काम है। बुढि़या आदत के अनुसार बड़बड़ाती हुई बाहर आई। वह बड़े ध्यान से गणेशजी को देखने लगी। गणेशजी ने कहा- अम्मा मुझे पूरे गाँव को खीर खिलानी है। ये दूध-चावल लो और खीर बना दो। गाँव में किसी ने मेरी नहीं सुनी। यह सुनकर बुढि़या को भी हँसी छूट गई। उसने कहा- इतने से दूध-चावल में पूरा गाँव कैसे खीर खाएगा।

गणेशजी ने कहा- आप बनाओगी तो सबको मिलेगी। बुढि़या ने सोचा। चलो बना ही लेते हैं खीर। उसने गणेशजी को बिठाया। बड़े प्यार से पानी पिलाया और चूल्हा जलाकर तपेली में दूध-चावल चढ़ा दी। थोड़ी देर बाद वह कहने लगी कि अब क्या करना है। गणेशजी ने कहा- अम्मा, अब पूरे गाँव को निमंत्रण दे दो। जल्दी से जल्दी खीर खाने आ जाए।

  वहाँ न तो उन्हें गणेशजी दिखे और न ही खीर की तपेली। लेकिन वहाँ धन-दौलत का ढेर लगा था। रसोईघर इतना अच्छा सजा था‍ कि बुढि़या ने कभी सपने में भी इतने चाँदी-सोने के बर्तन नहीं देखे ‍थे।      
बुढि़या चली गाँव में निमंत्रण देने। घर-घर जाकर कहने लगी- मेरे घर खीर खाने आना। गाँववाले आश्चर्य में पड़ गए कि बुढि़या कभी किसी को पानी तक नहीं पिलाती, खीर क्या खिलाएगी। फिर भी यह सोचकर सभी आने लगे कि देखें बुढि़या कैसे खीर खिलाती है। बुढि़या के घर सब इकट्ठा होने लगे। खीर की तपेली के पास गणेशजी बैठ गए। बुढि़या अंदर गई तो गणेशजी ने एक अन्य तपेले में खीर डाल दी और कहा- जाओ दे आओ।

बुढि़या समझ गई कि ये तो मेरे गणेश भगवान हैं। सब फिर क्या था चरण नवाकर चली खीर परोसने। वह फटाफट-फटाफट खीर परोसती जाती और गाँववाले आश्चर्य से खीर ग्रहण करते। खीर बड़ी स्वादिष्ट थी। सबने खूब छककर खाई। अंत में गाँववाले बुढि़या से कहने लगे- अम्मा, आपने इतनी खीर बनाई कैसे? जब बुढि़या ने उन्हें पूरी बात बताई तो चले दौड़कर गणेजी के दर्शन करने, लेकिन गाँववाले वे बेचारे क्या जानें कि भगवान की लीला अपरंपार होती है।

वहाँ न तो उन्हें गणेशजी दिखे और न ही खीर की तपेली। लेन वहाँ धन-दौलत का ढेर लगा था। रसोईघर इतना अच्छा सजा था‍ कि बुढि़या ने कभी सपने में भी इतने चाँदी-सोने के बर्तन नहीं देखे ‍थे। गाँववाले यह सब देख स्वयं को कोसने लगे कि हमने गणेशजी को पहचाना नहीं, नहीं तो हमारे भी भाग्य खुल जाते। सभी ने बुढि़या को प्रणाम किया और गणेशजी की जय-जयकार की।

तो ऐसे हैं हमारे गणेशजी। श्रद्धा और भक्तिभाव से बिना शोर-शराबे के हम यदि गणेशजी की पूजा-अर्चना करें तो वे हमारी मनोकामना जरूर पूरी करेंगे। विश्वास रखें और दस दिनों तक सच्चे मन से गणेशजी की आराधना करें।

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