Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

गणगौर माता कौन थीं?

हमें फॉलो करें गणगौर माता कौन थीं?

अनिरुद्ध जोशी

, शुक्रवार, 27 मार्च 2020 (13:59 IST)
पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज मनाई जाती है। ये तिथि चैत्र मास की नवरात्र में आती है। इसे गौरी तृतीया भी कहते हैं। यह पर्व राजस्थान और मध्यप्रदेश में ही ज्यादा प्रचलित है। इस बार गणगौर तीज 27 मार्च शुक्रवार को मनाई जाएगी।
 
 
क्या है गणगौर : गणगौर माता पार्वती का गौर अर्थात श्वेत रूप है। उन्हें गौरी और महागौरी भी कहते हैं। अष्टमी के दिन इनकी पूजा होता है, लेकिन चैत्र नवरात्रि की तृतीया को उन्हें इसलिए पूजा जाता है क्योंकि राजस्थान की लोक परंपरा के अनुसार इस दिन माता की अपने मायके के यहां से विदाई हुई थी।
 
गण का अर्थ शिव और गौर का अर्थ गौरी। राजस्थान के कई प्रदेशों में गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रस्म है। मान्यता अनुसार माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा आठ दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं। विदाई के दिन को ही गणगौर कहा जाता है। गणगौर की पूजा में गाए जाने वाले लोकगीत में इसी घटना का वर्णन होता है।
 
 
सुहागिनें व्रत धारण करने से पहले मिट्टी की गौरी जिसे रेणुका कहते हैं, की स्थापना करती है एवं उनका पूजन करती हैं। होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से जो कुमारी और विवाहित बालिकाएं, नवविवाहिताएं प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं, वे चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं।
 
 
इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्रियों को सौभाग्य का वरदान दिया था। इसीलिए पौराणिक काल से ही इस व्रत पूजा का प्रचललन रहा है। इस दिन सुहागिनें देवी पार्वती और शिवजी की विशेष पूजा अर्चना करके पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की कामना के साथ ही घर-परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मां दुर्गा के 10 चमत्कारिक सिद्ध मंदिर, यहां से कोई भक्त खाली हाथ नहीं जाता