क्या ऐसा मुमकिन है कि जनरल वीके सिंह, राज बब्बर और शाजिया इल्मी जैसे ग्लेमर वाले नाम धरे के धरे रह जाएं और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार मुकुल उपाध्याय गाजियाबाद से जीत जाएं? अगर ऐसा होगा तो दुनिया को अचरज होगा, मगर गाजियाबाद के लोगों को नहीं। क्या भाजपा, क्या कांग्रेस और क्या आम आदमी पार्टी, तीनों के ही कार्यकर्ता पहले नंबर पर खुद को और दूसरे नंबर पर मुकुल उपाध्याय को बता रहे हैं।
आम आदमी पार्टी का एक बंदा कल टोपी लगाए दिखा। उससे पूछा कि शाजिया की जीत की संभावनाएं कितनी हैं, तो कहने लगा पूरी। खतरा बस मुकुल उपाध्याय से है, क्योंकि मुसलमान अब उनके साथ हैं। साथ ही पिछड़ी जातियां भी। यही सवाल कांग्रेस कार्यकर्ता से पूछा तो कहने लगा जीतेंगे तो राज बब्बर ही मगर दूसरे नंबर पर मुकुल उपाध्याय रहेंगे। भाजपा कार्यकर्ता ने जनरल वीके सिंह को जीता बताते हुए सबसे बड़ा खतरा मुकुल को बताया।
अब सवाल यह है कि ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है कि उत्तरप्रदेश की जिन दस संसदीय सीटों के लिए 10 अप्रेल को मतदान होना है, उनमें से पांच बसपा के पास हैं। गाजियाबाद जरूर भाजपा का रहा। मगर इस बार मायावती ने तगड़ी सोशल इंजीनियरिंग की है। बसपा का ठप्पा होने से दलित वोट तो मुकुल को मिल ही सकते हैं, मगर बामन होने के कारण बामन और ऊंची जातियों के वोट भी मुकुल ले जा सकते हैं।
गांवों में और गंदी बस्तियों में, जहां खूब आबादी रहती है और जमकर वोटिंग होती है, जोर बसपा का ही है। ऐसे में यह हो सकता है कि पूरे देश को चौंकाते हुए बसपा सीट निकाल ले। इससे पहले भी जब यूपी की जनता सत्ता वाली पार्टी से नाराज थी, सबसे ज्यादा फायदा मायावती ने ही उठाया था। मायावती की शैली अलग है। वे शहरों पर कम ध्यान देती हैं और गांवों में जमकर काम करती हैं। कई बार तो मीडिया तक को भनक नहीं लगती कि मायावती क्या पका रही हैं। मोदी फैक्टर के चलते जनरल साहब की जीत की संभावनाएं सबसे ज्यादा हैं, मगर बसपा को कम आंकना भूल होगी।