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राज बब्बर की मुरादों का सफर

- गाजियाबाद, मुरादपुर से दीपक असीम

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सुबह 11 बजे। अंबेडकर रोड पर राज बब्बर का चुनाव कार्यालय। बहुत से लोग अखबार पढ़ रहे हैं, मानो कार्यकर्ताओं का यही मुख्य काम हो। किसी को नहीं पता कि राज बब्बर इस समय कहां हैं, उनकी चुनाव रैली कहां से शुरू होगी। मीडिया प्रभारी को फोन लगाया तो उसने कहा कि वहीं पूछिए। मगर सभी एक दूसरे से पूछ रहे हों तो आप किससे पूछेंगे।

तय तो यह था कि 11 बजे उनका रोड शो रमतेराम रोड पर होगा। रमतेराम रोड सामने की ही पट्‌टी में है। मगर रमतेराम रोड पर केवल एक अधपगला सा कार्यकर्ता झंडा इधर से उधर लहराने में रमा है और लोग उससे बचते हुए अपने वाहन ले जा रहे हैं। अपनेराम फिर कार्यालय पर हैं।

कुछ व्यस्त दिखने वाले लोग फोन पर लगे हैं। उनमें से एक ऐलान करता है, मुरादपुर में रोड शो होगा। चलो। बीसियों लोग एकसाथ कार्यालय से बाहर निकल पड़ते हैं। जो लोग अखबार में डूबे थे, उनके कान पर जूं भी नहीं रेंगती। वे अखबार में गर्क थे और रहेंगे। ऐसा लगता है कि खुद राज बब्बर इनके सामने आ जाए तब भी ये अखबार से मुंह बाहर निकालने वाले नहीं हैं। बहरहाल एक नेतानुमा नौजवान से मैं कहता हूं, मैं भी आपके साथ चलूं, मुझे पता नहीं कि मुरादपुर किधर है। नेता अपनी स्कार्पियो में मुझे भी बैठा लेता है। इस गाड़ी में और भी कई जिलों से आए हुए (मुझ जैसे) जाने-अनजाने लोग हैं। एक कार्यकर्ता राज बब्बर का पुराना मुंह लगा है।

गाड़ी चलती है और बातें भी। मुरादपुर दूर है। रास्ते में कई जगह स्वागत होना है, लोग मालाएं लिए खड़े हैं। रास्ते में ही राजबब्बर की गाड़ी भी काफिले में आ मिलती है। मुंहलगा कार्यकर्ता बताता है कि राज बब्बर दिल्ली में ही रहते हैं। एक घंटे का रास्ता है, वहीं से यहां आ जाते हैं। वही बताता है कि प्रचार के लिए दामाद आ गया पर बेटे अभी तक नहीं आए। दामाद यानी अनूप सोनी (टीवी एंकर)। बेटों से मुराद है प्रतीक बब्बर और आर्य बब्बर। बेटी जूही लगी हुई है पत्नी नादिरा भी। वो राज बब्बर की तारीफों के पुल बांध रहा है ''छात्र जीवन से राज बब्बर जी राजनीति कर रहे हैं। पिछला चुनाव जब जीते तो महीने भर मेरा फोन नहीं उठाया। मैंने एसएमस किया कि अब आप मुझे क्यों पहचानेंगे। फौरन उधर से फोन आया कि तू ऐसे मैसेज क्यों भेजता है, कोई काम हो तो बता...।''

तारीफ का पुल अधबीच में है कि गाड़ियों का काफिला रुक गया है। आगे विवाद हो रहा है। नेताओं के दो गुट हैं। एक चाहता है कि राज बब्बर उनकी ही गाड़ी में बैठे रहें। दूसरा गुट विधायक सुरेंद्र कुमार मुन्नी का है। मुन्नी चाहते हैं कि राज बब्बर उनके साथ खुली जीम में सवार हों। आखिरकार मुन्नी की जीत होती है। राज बब्बर अपनी एसी गाड़ी से उतरकर अब खुली जीप में है। मगर मुन्नी की जीत आधी है। मुन्नी चाहते हैं कि रास्ते में जो लोग माला लेकर खड़े थे, उनके पास वापस जाया जाए और मालाएं पहनी जाएं। बब्बर कहते हैं कि उनसे आते समय मिल लेंगे।

फिर गाड़ी चलती है। अब जगह-जगह स्वागत हो रहा है और गाड़ी रुक-रुक कर चल रही है। बार-बार जाम लग रहा है। एक जगह कुछ नाराज लड़के राज बब्बर के खिलाफ नारे लगाते हैं। तनाव सा फैल जाता है। ''कौन हैं ये लोग...!! मोदी के लोग हैं...!!!'' - मालूम पड़ता है कि ये एक तीसरे ही गुट के लोग हैं। ये गुट वो है, जो विधायक मुन्नी से भी नाराज है और उस दूसरे गुट से भी जिसकी गाड़ी में राज बब्बर बैठे थे।

गाड़ी मुरादपुर पहुंचती है। ये मुस्लिम इलाका है। राज बब्बर सबसे मिल रहे हैं। सबसे दुआ-सलाम। जगह-जगह स्वागत हो रहा है। मगर गलियों में बसपा के झंडे कुछ ज्यादा हैं। राज बब्बर नोटिस करते हैं, मगर कुछ कहते नहीं। अब मुंहलगे कार्यकर्ता ने मुझे उनसे मिलाया है, परिचय दिया है और बताया है कि मैं बात करना चाहता हूं। मैं किस्तों में सवाल पूछ पा रहा हूं। मगर बब्बर की याददाश्त तेज है। भले ही किसी सवाल का उत्तर वे बीस मिनिट बाद दें, पर उन्हें सवाल याद रहता है। आखिरकार ढाई घंटे में बातचीत पूरी होती है और उन्हें वहीं छोड़ कर मैं वापस गाजियाबाद के लिए चल पड़ता हूं।
-फोटदीपअसी

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