Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

चुनाव जीतने में पसीने आ जाएंगे जेटली को

-अमृतसर से दीपक असीम

हमें फॉलो करें चुनाव जीतने में पसीने आ जाएंगे जेटली को
PR
हालांकि अमृतसर में मौसम ठंडा है। सुबह शाम-सर्दी लगती है। तीन बजे से तेज़ ठंडी हवाएं चलने लगती हैं। 30 अप्रैल को यहां मतदान है और मौसम में कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा मगर इसके बावजूद अमृतसर का चुनाव अरुण जेटली को पसीने ला देगा।

पहला इम्तिहान और वो भी इतना कड़ा! अगर पार्टी वाकई जेटली की हमदर्द थी, तो उन्हें कोई आसान सीट देनी थी। यहां तो माहौल एकदम ही भाजपा और शिरोमणी अकाली दल गठबंधन के खिलाफ है। कोई बीस लोगों से चर्चा की और पूछा चुनाव कौन जीतेगा। सभी शुरुआती टाल-मटोल के बाद कहते हैं कि कांग्रेस के चांस हैं। बीस में से केवल दो लोगों ने भाजपा का नाम लिया।

यहां से सिद्धू सांसद हैं, मगर अमृतसर में कोई काम पिछले पांच बरसों में नहीं हुआ। शहर की हालत बदतर है। सड़कें खुदी पड़ी हैं और गंदगी भरपूर है। सत्ता में जो लोग हैं उनकी दादागिरी से लोग त्रस्त हैं। पूरे पंजाब में शराब के सारे ठेके विक्रमसिंह मजीठिया के पास हैं। मजीठिया मुख्यमंत्री के बेटे सुखबीरसिंह बादल का दूर के रिश्ते में साला होता है। ये तो हुई बात शराब की। बाकी सारे वैध-अवैध, कानूनी-गैरकानूनी नशे खुले आम बिक रहे हैं।

यही अकाली दल पिछले चुनाव में नशाबंदी की बात कर रहा था। अब इसके ही कार्यकर्ता नशे के कारोबार में लिप्त हैं और पंजाब की जनता को सब पता है। टैंपों की सहयात्री एक महिला ने बताया कि जेल में कोई सामान बाहर से नहीं ले जाने देते और जेल में हर चीज महंगी मिलती है (जाहिर है इनका कोई सगेवाला जेल में है)। जेल में सारे नशे भी मिलते हैं। हर वो चीज जेलों में बिक रही है, जो कायदे से बाहर भी नहीं बिकना चाहिए और बाहर खरीदने-बेचने पर जिससे जेल हो जाती है। और ये सारे काम कर रहे हैं (बकौल जनता) भाजपा और अकाली दल के लोग।

गांवों में अकालियों को बिजली मुफ्त दी हुई है, जिससे शहरी उपभोक्ताओं पर भार बढ़ रहा है। एक तो करेला ऊपर से नीमचढ़ा। कांग्रेस उम्मीदवार कैप्टन अमरिदरसिंह ने ऐसे में दांव खेला है सिख-नॉनसिख का। अमृतसर में साढ़े चौदह लाख वोटर हैं। इनमें से चौसठ फीसदी सिख हैं। बीस परसेंट दलित सिख हैं, जिन्हें यहां 'मज़हबी सिख' कहा जाता है। जाट सिख और दूसरे सिख भी बहुत हैं। कुल मिलाकर चारों तरफ सिख ही सिख हैं। फिर इधर मोदी का जोर भी उतना नहीं है।

पहला कारण शायद यह है कि यहां के लोग पंजाबी बोलते हैं, पंजाबी सुनते हैं, पंजाबी चैनल देखते हैं। हिंदी न्यूज़ चैनलों ने मोदी का जो ढिंढोरा पीटा है, उसकी आवाज कुछ शहरी गैर सिखों के कानों में ही गई है। बैनर पोस्टर वाले प्रचार में शिरोमणी अकाली दल का हठ चल रहा है। मोदी ने अभी जो मांस-मटन के खिलाफ चर्चा छेड़ी है, पंजाब में इसका नुकसान हो सकता है। भाजपा के लिए यह अच्छा है कि अखबारों ने भी इसे ज्यादा तूल नहीं दिया। हालांकि चुनाव सामग्री के इस्तेमाल में भाजपा आगे है। गलियों और दुकानों में झंडे उसी के ज्यादा हैं। मगर चुनाव अभी दूर हैं।

कैप्टन अमरिंदर सिंह भी जोर लगाने में पीछे नहीं रहने वाले। वे भी पैसे-कौड़ी के लिहाज से कमजोर पार्टी नहीं हैं। कुल मिलाकर अरुण जेटली के लिए सीट निकालना कठिन है। ऐसा नहीं कि वे श्योरशाट हार रहे हैं। मगर इतना तय है कि श्योरशाट जीत नहीं रहे।

सिद्धू के बारे में क्या बोले जेटली... पढ़ें अगले पेज पर....


webdunia
PR
जहां-जहां से भी भाजपा स्थानीय उम्मीदवार का टिकिट काट कर किसी नए बंदे या सेलिब्रेटी को चुनाव लड़ा रही है, वहां-वहां पर भीतरघात और नाराज़गी से बचने के लिए नाराज नेता से सौदा भी करती जा रही है। सौदा यह है कि आपको कोई बड़ा पद दिया जाएगा या फिर राज्यसभा भेजा जाएगा। चंडीगढ़ में भी ऐसा ही हुआ है, मगर चंडीगढ़ में इसका खुलासा नहीं हुआ था, अन्य जगहों पर भी बात गोपनीय रखी गई है, मगर अमृतसर में जेटली ने जाने-अनजाने यह राज़ खोल दिया कि नवजोतसिंह सिद्धू से 'समझौता' हो गया है।

पत्रकारों ने जब जेटली से सिद्घू की नाराज़गी के बारे में पूछा तो उन्होंने साफ कहा कि सिद्धू से पार्टी अध्यक्ष राजनाथसिंह जी ने बात कर ली है। चुनाव बाद उन्हें बड़ा पद दिया जाएगा और वे नाराज नहीं हैं। फिलहाल क्रिकेट में बिजी हैं और क्रिकेट कमेंट्री के उनके अनुबंध पूरे होते ही वे मेरे लिए चुनाव प्रचार करने आएंगे। जब यह पूछा गया कि उन्हें कौनसा पद दिया जाएगा तो जेटली ने कहा कि इसके बारे में अभी बताना ठीक नहीं होगा।

इस बार भाजपा 272 के आंकड़े के लिए कमर कसे हुए है और उसने चर्चित चेहरे उतारे हैं ताकि जीत कहीं से बच कर न निकल सके। चर्चित चेहरों को टिकिट दिए जाने के कारण जो स्थानीय नेता नाराज हुए हैं, उनके आगे पद की गाजर लटका दी गई है और यह शर्त रखी गई है कि अगर आप चुनाव जितवाते हैं, तो आपको पद जरूर मिलेगा। इस रणनीति के कारण भाजपा में खुला विद्रोह और भीतरघात देखने को नहीं मिल रहा। नाराज नेता मरे और बुझे मन से ही सही, पार्टी के साथ खड़े हैं और उनके समर्थक भी बिखर नहीं रहे।
- फोटो : दीपक असी

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi