देश में चुनावी शंखनाद के बाद राजनीतिक मौसम में व्यापक गर्माहट है। दीवारों पर नारे पोत दिए गए हैं तो कार्यकर्ताओं के मुंह से नारे गूंज रहे हैं। वहीं सभी राजनीतिक दलों के बीच एक अघोषित जंग सी छिड़ी हुई है। इस जंग में भाजपा की जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए जोर-आजमाइश देखने लायक है तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी उसे रोकने के लिए बाहें चढ़ाए हुए हैं।
खैर! इनके सबके इतर दिल्ली की सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव रोचक हो चुका है। दिल्ली में राहुल गांधी समेत कई नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है तो आम आदमी पार्टी व अरविंद केजरीवाल के सामने अपना वजूद बचाने की चुनौती। वहीं मोदी लहर की असली परीक्षा भी दिल्ली में ही होना है। इन तमाम लहर, असर और भविष्य के बीच दिल्ली का यह चुनाव देश की दलित राजनीति में कुछ नए अध्याय जोड़ने की तैयारी भी करता नजर आ रहा है। फिलवक्त दिल्ली की कुल सात सीटों पर 10 अप्रैल को चुनाव होने जा रहा है, जिसमें सीधी-सीधी जंग भाजपा, कांग्रेस व आप के बीच है।
इन सबके बीच नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र का चुनावी द्वंद्व सबसे रोचक बना हुआ है। क्योंकि इसी सीट पर तीनों के अघोषित-घोषित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों की अस्मिता, प्रतिष्ठा, लहर का असर, भविष्य दांव पर है।
नई दिल्ली सीट पर केजरीवाल की दांव पर लगी अस्मिता, प्रतिष्ठा व भविष्य को समझने से पहले नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र को समझने की जरूरत है। इस सीट में करोलबाग, पटेल नगर, नई दिल्ली, ग्रेटर कैलाश, कस्तूरबा नगर, आरके पुरम, मोती नगर, राजेन्द्र नगर, दिल्ली कैंट व मालवीय नगर विधानसभा क्षेत्र आते हैं। जिसने अन्ना के आंदोलन या कहें लोकपाल आंदोलन को करीब से देखा और समझा।
नतीजतन बीते विधानसभा चुनाव में नवोदित आम आदमी पार्टी ने सबसे अधिक सात सीटों पर जीत दर्ज की तो पार्टी मुखिया केजरीवाल ने इसी सीट की नई दिल्ली विधानसभा पर शीला दीक्षित को 24 हजार से अधिक मतों से हराकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। यानी लोकपाल ने अगर आप को पैदा किया है तो इसी क्षेत्र ने उसे पालने-पोसने में अहम जिम्मेदारी निभाते हुए उसका राजनीतिकरण किया।
तो राजनीति के इस मानक पर नई दिल्ली सीट आम आदमी पार्टी की आधार वाली सबस बड़ी सीट यानी पार्टी समेत केजरीवाल की पारंपरिक सीट मानी जा सकती है जिसमें आप की टोपी की लाज बचाने की जिम्मेदारी खोजी पत्रकार आशीष खेतान निभा रहे हैं। दरअसल, लोकसभा चुनाव में इस सीट पर आप की हार होती है तो विधानसभा में मिली जीत का श्रेय अन्ना हजारे को जाएगा और जो इसका संदेश देशभर में प्रचारित होगा वो पार्टी समेत केजरीवाल के भविष्य के लिए माकूल नहीं होगा।
इसके इतर इस सीट पर मोदी लहर की असली परीक्षा भी है जिसका जिम्मा भाजपा प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी पर है। मोदी लहर की असल परीक्षा इसलिए इस सीट पर है क्योंकि देशभर में चल रही कांग्रेस विरोधी लहर के बीच केजरीवाल मोदी का विकल्प बनकर सामने आए हैं और राजनीतिक पैमानों के तहत यह सीट आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी आधार वाली सीट है तो मोदी लहर को संभवत: देशभर में सबसे ज्यादा चुनौती का सामना यहीं करना पड़ेगा।
हालांकि नई दिल्ली सीट पर राहुल गांधी की इज्जत दांव पर लगी हुई है। नई दिल्ली से राहुल गांधी की युवा ब्रिगेड के खास सिपहसालार अजय माकन सांसद हैं और इस चुनावी समर में कांग्रेस से उम्मीदवार भी। माकन को राहुल गांधी ने चुनावों से पहले जिस तरह कैबिनेट पद से इस्तीफा दिलाकर संगठन की जिम्मेदारी दी थी, उसे उनकी भविष्य की रणनीति माना जा रहा था। वहीं अगर सीट पर माकन शिकस्त पाते हैं तो यह तय है कि यह व्यापक बहस का मुद्दा बनेगा।