Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

मथुरा में हेमा मालिनी की हवा

-मथुरा से दीपक असीम

हमें फॉलो करें मथुरा में हेमा मालिनी की हवा
भाजपा ने हेमा मालिनी को मथुरा से टिकिट क्यों दिया? पहला कारण तो यह कि वे अपनी जो नृत्य नाटिकाएं करती हैं, उनमें वे कृष्ण और गोपीयों की लीला खेलती हैं। हेमा भाजपा के लिए सांस्कृतिक आइटम हैं। दूसरा कारण यह कि पिछली बार जब जयंत चौधरी यहां से खड़े हुए थे, तब हेमा मालिनी ने उनके लिए यहां से बहुत प्रचार किया था।
WD

पिछले चुनावों में राष्ट्रीय लोकदल एनडीए का हिस्सा था। अब नहीं है। अब हेमा खुद अपने लिए वोट मांगने आई हैं, जयंत के लिए नहीं। उस समय हेमा मालिनी को जो इधर रिस्पांस मिला था, उसी को देखते हुए...और ये निर्णय कोई गलत भी नहीं होने जा रहा। हेमा का ग्लेमर और मोदी की लहर ने मिलकर यहां ऐसा माहौल रचा है कि जयंत चौधरी के लिए सीट फिर से निकाल पाना मुश्किल है। पांच साल वे सांसद रहे और कुछ नहीं किया। मथुरा की जनता उनसे खुश नहीं है।

मथुरा आने के बाद अपनेराम ने एक बार फिर लोगों का मन टटोला। बीसियों लोगों से बात की। सबने कहा कि इस बार तो भाजपा का जोर है। लोगों के पास भाजपा को वोट देने के लिए अनेक कारण है। एक कारण जयंत चौधरी की गुमशुदगी।

लोगों का कहना है कि वे जीत कर गए तो पलट कर आए ही नहीं। कुछ लोग मोदी के लिए हेमा को वोट देंगे और कुछ लोग मोदी के बावजूद हेमा के लिए हेमा को वोट देंगे। कुछ लोग इसलिए देंगे कि इस बार सरकार भाजपा की ही बनती दिख रही है, सो हेमा को वोट देना ही ज्यादा ठीक है।

जातीय समीकरण का कितना फायदा मिलेगा हेमा को... पढ़ें अगले पेज पर...


हालांकि जातीय समीकरण को देखा जाए तो जयंत चौधरी जाट हैं और जाट वोट हैं सवा तीन लाख। ब्राम्हण है पौने तीन लाख। ठाकुर भी इतने ही। बनिये पौने दो लाख और मुस्लिम एक लाख सत्तर हजार। सोलह लाख वोटरों में से मोटे-मोटे फिगर यही हैं। बाकी सब मिले जुले हैं। मगर इस बार जाति का पत्ता भी चलता हुआ नहीं दिख रहा।
webdunia
PR

हेमा मालिनी अपने भाषणों में खास तौर पर यह दोहरा रही हैं कि भाजपा सबकी है। उधर मोदी की लहर भी जात से बढ़कर है, खासकर युवाओं में। तो यही नजर आ रहा है कि इस बार जयंत चौधरी हार सकते हैं और हेमा के जीतने की संभावनाएं प्रबल हैं।

होने को कुछ भी हो सकता है, मगर इस समय तो यही होता हुआ दिख रहा है। प्रचार में भी भाजपा आगे है। जयंत चौधरी के कहीं झंडे बैनर नहीं दिखते। हालांकि वे भी गांवों में धुआंधार प्रचार कर रहे हैं मगर उसका असर होता नहीं दिख रहा। यहां के कुछ लालबुझक्कड़ हेमा मालिनी को पांच लाख से जिता रहे हैं तो कुछ दो लाख से।

चुनाव लड़ रहीं हैं तीन-तीन हेमा... पढ़ें अगले पेज पर....


ये भी चुनावी हथकंडा है। जब यह तय हुआ कि यहां से हेमा मालिनी चुनाव लड़ रही हैं, तो मतदाता सूची देखी गई कि कितनी हेमा हैं। उनमें से दो को पैसा देकर निर्दलीय चुनाव लड़वा दिया गया ताकि जब लोग वोट डालने जाएं तो भ्रमित हो जाएं। इसीलिए सभाओं में हेमा मालिनी को बोलना पड़ता है कि मेरा नाम हेमा मालिनी है, मैं भाजपा से चुनाव लड़ रही हूं। मेरा चुनाव चिन्ह कमल का फूल है। ये तो हुई पहली हेमा जो मालिनी हैं।

अब दूसरी हेमा की बात। ये हैं थाना नौहझील, भूरीगढ़ी में रहने वाली। इनका पूरा नाम है हेमा पति मलखानसिंह। पत्रकार जब इस हेमा को खोजने गए तो मालूम पड़ा कि हेमा तो खेत में है, फसल काट रही है। खेत यमुनापार है। मलखान के खेत पर गए तो मालूम पड़ा कि उनके पास थोड़ी सी जमीन है। पड़ोसियों तक को नहीं मालूम कि उन्होंने कब पर्चा भरा और कब हेमा चुनाव में खड़ी हो गई।

दूसरी हेमा के नाम में तो मालिनी भी जुड़ा हुआ है। ये हैं हेमामालिनी पति रामकिशन। ये यहां के गांव नगला रामरूप में रहती हैं। रामकिशन दिल्ली में टैक्सी चलाते हैं। पत्रकार दूसरी हेमा से भी मिलने गए। उनके जेठ ने बताया कि हेमा तो पर्चा भरने के अगले ही दिन दिल्ली चली गई। अभी भी दिल्ली में ही है। जाहिर है दोनों हेमा को और हेमा के पतियों को यह भी बोला गया है कि किसी से मिलना नहीं, किसी को दिखना नहीं। एक हेमा का पति दिल्ली में रिक्शा चलाता है, सो वो तो दिल्ली चली गई। दूसरी बेचारी खेतों में काम कर रही है। ये दोनों ही हेमाएं इतनी गरीब हैं कि पच्चीस हजार रुपए जमानत की राशि शौक की खातिर नहीं भर सकतीं।

गांजा फ्री, भांग मुफ्त...पढ़ें अगले पेज पर....


webdunia
PR
मथुरा के गांव तरौली से गुज़रते हुए एक बहुत बढ़िया गंध हवा में महसूस की। पूछा कि ये खुशबू किस चीज़ की है, तो दो नौजवान लड़के हंस पड़े। बताने लगे कि ये जो राह किनारे पौधे उगे हैं, ये गांजा और भांग के हैं। इन्हें कोई उगाता नहीं, ये बस इस गांव में हर जगह (अपनी गाजरघास की तरह) खुद ब खुद उग जाते हैं।

गांव के नशेड़ी गांजे और भांग की पत्तियों में फर्क करना जानते हैं। वरना दोनों इतनी एक जैसी होती हैं कि आम आदमी तो पहचान ही नहीं पाए। बहरहाल गांजे के शौकीन इन पत्तियों को तोड़कर सुखा लेते हैं और फिर चिलम में भर कर...। भांग के शौकीन या तो ताजा पत्ती पीस लेते होंगे या फिर इतनी भी जहमत नहीं करना हो तो तोड़कर ऐसे ही कचर-कचर चबा लेते होंगे। खैर उनकी वो जाने...। पूछा कि पुलिस...तो कहने लगे ये किसके खेतों में उग रही हैं? हर जगह तो उग रही है, पुलिस किसे पकड़ेगी?

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi