बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ममता का जन्म 5 जनवरी, 1955 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। निम्न मध्यमवर्गीय दम्पति प्रोमिलेश्वर बैनर्जी और गायत्री देवी उनके पिता-माता थे।
जब वे बहुत छोटी थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया था। अपने स्कूली दिनों से ही राजनीति से जुड़ी ममता कांग्रेस से लम्बे समय तक जुड़ी रहीं। सत्तर के दशक में उन्हें राज्य महिला कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। इस समय में वे कॉलेज में पढ़ ही रही थीं।
राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी का कभी ऐसा समय भी था, जब उन्हें ग़रीबी से संघर्ष करते हुए दूध बेचने का काम भी करना पड़ा। उनके लिए अपने छोटे भाई-बहनों के पालन-पोषण में अपनी विधवा माँ की मदद करने का यही अकेला तरीका था।
ममता के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और जब वे बहुत छोटी थीं, तभी उनकी मृत्यु हो गई थी। बाद में उन्होंने अपने परिवार को चलाने के लिए दूध विक्रेता का कार्य करने का निर्णय लिया। मुसीबत के उन दिनों ने ममता को सख्त बना दिया और उन्होंने पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्टों को सत्ता से बेदख़ल करने के अपने सपने को पूरा करने में दशकों गुजार दिए।
दक्षिण कोलकाता के जोगमाया देवी कॉलेज से उन्होंने इतिहास में ऑनर्स की डिग्री हासिल की थी। बाद में, कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इस्लामिक इतिहास में मास्टर डिग्री हासिल की। श्रीशिक्षायतन कॉलेज से उन्होंने बी.एड. की डिग्री भी ली। उन्होंने जोगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज, कोलकाता से कानून में भी एक डिग्री ली थी।
सुश्री बैनर्जी का राजनीतिक सफर 1970 में शुरू हुआ, जब वे कांग्रेस पार्टी की कार्यकर्ता बनीं। 1976 से 1980 तक वे महिला कांग्रेस की महासचिव रहीं। 1984 में ममता ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के वरिष्ठ नेता सोमनाथ चटर्जी को जादवपुर लोकसभा सीट से हराया।
उन्हें देश की सबसे युवा सांसद बनने का गौरव भी प्राप्त हुआ। उन्हें अखिल भारतीय युवा कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। मगर 1989 में कांग्रेस विरोधी लहर के कारण जादवपुर लोकसभा सीट पर ममता को मालिनी भट्टाचार्य के खिलाफ हार का स्वाद चखना पड़ा।
पश्चात 1991 का चुनाव उन्होंने कलकत्ता दक्षिण संसदीय सीट से लड़ा और जीता भी। उन्होंने दक्षिणी कलकत्ता (कोलकाता) लोकसभा सीट से माकपा के बिप्लव दासगुप्ता को पराजित किया और वर्ष 1996, 1998, 1999, 2004 व 2009 में वह इसी सीट से लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुईं।
1991 में कोलकाता से लोकसभा के लिए चुनी गईं। नरसिम्हा राव सरकार में मानव संसाधन विकास, युवा मामलों और महिला एवं बाल विकास विभाग में राज्यमंत्री बनीं। नरसिम्हां राव सरकार में खेल मंत्री बनाई गईं।
इससे पहले वे केन्द्र में दो बार रेलमंत्री बन चुकी हैं। रेलमंत्री बनने वाली वे पहली महिला थीं। वे केन्द्र में कोयला, मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री, युवा मामलों और खेल तथा महिला व बाल विकास की राज्यमंत्री भी रह चुकी हैं। वर्ष 2012 में टाइम पत्रिका ने उन्हें विश्व के 100 प्रभावी लोगों की सूची में स्थान दिया था।
अपने समूचे राजनीतिक जीवन में ममता ने सादा जीवन शैली अपनाई और वे हमेशा ही परम्परागत बंगाली सूती की साड़ी (जिसे तंत कहा जाता है) पहनती रही हैं। उन्होंने कभी कोई आभूषण या श्रृंगार प्रसाधन की चीज नहीं अपनाई। वे अपने जीवन में अविवाहित रही हैं। उनके कंधे पर आमतौर पर एक सूती थैला लटका नजर आता है जो कि उनकी पहचान बन गया है।
वर्ष 1991 में जब राव की सरकार बनी तो उन्हें मानव संसाधन विकास, युवा मामले और खेल तथा महिला और बाल विकास राज्यमंत्री बनाया गया। खेलमंत्री के तौर पर उन्होंने देश में खेलों की दशा सुधारने को लेकर सरकार से मतभेद होने पर इस्तीफा देने की घोषणा कर दी थी।
1993 में उन्हें इस मंत्रालय से छुट्टी दे दी गई। अप्रैल 1996 में उन्होंने कांग्रेस पर बंगाल में माकपा की कठपुतली होने का आरोप लगाया। और इसके अगले ही वर्ष 1997 में उन्होंने अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस बनाई। वे पार्टी की अध्यक्ष बनीं। आमतौर पर उन्हें 'दीदी' कहकर बुलाया जाता है। 2011 के राज्य विधानसभा चुनावों में उन्होंने माकपा और वामपंथी दलों की सरकार को 34 वर्षों के लगातार शासन के बाद उखाड़ फेंका था।
वर्ष 1999 में उनकी पार्टी भाजपा के नेतृत्व में बनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार का हिस्सा बन गई और उन्हें रेलमंत्री बना दिया गया। वर्ष 2002 में उन्होंने अपना पहला रेल बजट पेश किया और इसमें उन्होंने बंगाल को सबसे ज्यादा सुविधाएं देकर सिद्ध कर दिया कि उनकी दृष्टि बंगाल से आगे का नहीं देख पाती है।
उन्होंने कहा था कि रेल सुविधाओं से बांग्लादेश और नेपाल को भी जोड़ा जाएगा। मगर 2000 में पेट्रोलियम उत्पादों में बढ़ते मूल्य का विरोध करते हुए उन्होंने अपने सहायक अजित कुमार पांजा के साथ मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया, लेकिन बाद में इन्होंने बिना कोई कारण बताए इस्तीफा वापस भी ले लिया।
वर्ष 2001 की शुरुआत में तहलका खुलासों के बाद ममता ने अपनी पार्टी को राजग से अलग कर लिया, लेकिन जनवरी 2004 में वे फिर से सरकार में शामिल हो गईं। 20 मई, 2004 को आम चुनावों के बाद पार्टी की ओर से केवल वे ही चुनाव जीत सकीं।
उन्हें कोयला और खानमंत्री बनाया गया, लेकिन 20 अक्टूबर, 2005 में उन्होंने राज्य की बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार द्वारा औद्योगिक विकास के नाम पर किसानों की उपजाऊ जमीनें हासिल किए जाने का विरोध किया।
ममता को 2005 में राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा। उनकी पार्टी ने कोलकाता नगर निगम पर से नियंत्रण खो दिया और उनकी मेयर ने अपनी पार्टी छोड़ दी। 2006 में विधानसभा चुनावों में भी तृणमूल कांग्रेस के आधे से अधिक विधायक चुनाव हार गए। नवंबर, 2006 में ममता को सिंगूर में टाटा मोटर्स की प्रस्तावित कार परियोजना स्थल पर जाने से जबरन रोका गया। इसके विरोध में उनकी पार्टी ने धरना, प्रदर्शन और हड़ताल रखी थी।
वर्ष 2009 के आम चुनावों से पहले ममता ने फिर एक बार यूपीए से नाता जोड़ लिया। इस गठबंधन को 26 सीटें मिलीं और ममता फिर केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गईं। उन्हें दूसरी बार रेलमंत्री बना दिया गया। 2010 के नगरीय चुनावों में तृणमूल ने फिर एक बार कोलकाता नगर निगम पर कब्जा कर लिया।
2011 में टीएमसी ने भारी बहुमत से विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की और ममता राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। इस बार उन्होंने राज्य से वामपंथी मोर्चे का सफाया कर दिया था और लगातार 34 वर्ष तक सत्ता में रहने के बाद वामपंथी सत्ता से बाहर हो गए।
केन्द्न और राज्य दोनों ही जगहों पर अपनी पैठ जमाने के बाद ममता ने 18 सितंबर, 2012 को यूपीए से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद नंदीग्राम में हिंसा की घटना हुई। सेज़ (स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन) विकसित करने के लिए गांववालों की जमीन ली जानी थी। माओवादियों के समर्थन से गांववालों ने पुलिस कार्रवाई का प्रतिरोध किया, लेकिन गांववालों और पुलिस बलों के हिंसक संघर्ष में 14 लोगों की मौत हुई थी।
ममता ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री शिवराज पाटिल से कहा कि बंगाल में माकपा समर्थकों की हिंसक गतिविधियों पर रोक लगाई जाए। बाद में जब राज्य सरकार ने परियोजना को समाप्त कर दिया तब हिंसक विरोध भी थम गया।
2009 के संसदीय चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने राज्य में 19 सीटें जीत लीं। दूसरी बार रेलमंत्री बनने पर भी ममता का फोकस बंगाल और बंगाल के चुनाव ही रहा। वे रेलमंत्री के तौर पर अपना काम छोड़कर बंगाल में अपनी पार्टी का प्रचार करती रहीं।
रेलमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल लोकलुभावन घोषणाओं और कार्यक्रमों के लिए जाना जाता रहा है और उन्होंने रेलवे की खराब माली हालत को सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
उनके पद छोड़ने के बाद तृणमूल के दिनेश त्रिवेदी को रेलमंत्री बनाया गया, लेकिन उन्हें भी ममता के दबाव के चलते अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। उनका कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने रेल मंत्रालय को बेहतर बनाने की कोशिश की शुरुआत की थी।
इसके अलावा कई ऐसी विवादास्पद घटनाएं हुई हैं जिनके कारण ममता बनर्जी की छवि एक झक्की, सनकी और आत्मप्रशंसा में डूबे रहने वाले एक ऐसे राजनीतिज्ञ की बनीं, जो अपनी गलतियों के बावजूद लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन करना उचित नहीं समझता है। हालांकि यह और बात है कि विपक्ष में होने पर वे इन्हीं बातों के लिए वामपंथी नेताओं को खूब कोसा करती थीं।
बहुत कम लोग जानते हैं कि ममता बैनर्जी एक राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवयित्री भी हैं। उनकी कविता में अपने मूल्य खो चुकी राजनीति के बदलाव (पोरीबर्तन) की पीड़ा साफ झलतकी है। 'राजनीति' शीर्षक से उनकी एक कविता काफी चर्चित रही। कविता की कुछ पंक्तियां-
'राजनीति' एक शब्द, जिससे मन में कभी जागता था श्रद्धाभाव अब हो गये हैं इसके मायने बड़ा कारोबार पार्टी के दफ़्तर बन गये हैं बाज़ार सच, राजनीति बनकर रह गयी है 'गंदा खेल'...