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मोदी लहर का क्या अर्थ है?

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, सोमवार, 21 अप्रैल 2014 (10:55 IST)
अभी तक देश में वर्ष 1977 और 1984 में ही किसी एक पार्टी के पक्ष में लहर देखने को मिली हैं। हालां‍कि इस बार भी दावा किया जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी के पक्ष में लहर है लेकिन वहीं उनके विरोधियों का मानना है कि ऐसी कहीं कोई लहर नहीं है। यदि लहर का अर्थ किसी भी पार्टी के पक्ष में एकतरफा माहौल हो तो इस बार ऐसा दिखाई नहीं पड़ता है।

इसलिए यह सवाल उठना भी स्वाभाविक है कि मोदी के पक्ष में कोई लहर है भी या नहीं? जो जानकार लोग कुछ विशेष स्‍थानों या क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं या कर रहे हैं, उनका मानना है कि भाजपा का प्रचार अभियान नरेन्द्र मोदी के इर्द-गिर्द ही सिमटकर रह गया है लेकिन ऐसा नहीं दिखता कि देश के सभी हिस्सों में लहर जैसा कोई प्रभाव देखा जा रहा हो। लखनऊ और अवध के इलाके में भी किसी तरह की लहर नदारद होने की बात कही जा रही है।

देश के सभी क्षेत्रों में मतदाता पार्टी को ध्यान में रखकर वोट देने का रुझान दर्शा रहे हैं। ज्यादातर सभी राज्यों में ऐसी स्थिति है कि कहीं किसी एक क्षेत्र में एक पार्टी का जोर है तो उसी राज्य के दूसरे हिस्सों में उसी पार्टी को लेकर मतदाता अपना वोट न देने की बात कर रहे हैं।

लेकिन भाजपा समेत अन्य दलों के प्रतिबद्ध मतदाता अपनी ही पार्टी को या फिर मोदी के पक्ष में मतदान करने की बात कर रहे हैं। अमेठी और रायबरेली में विरोधियों के प्रचार के बावजूद ऐसी मतदाताओं की संख्या कम नहीं है, जो कि कांग्रेस को ही वोट देने का इरादा रखते हैं। कहीं यह चुनाव बाहरी उम्मीदवार और स्थानीय प्रत्याशी का मामला बन गया है तो कहीं यह जाति विशेष की निष्ठा का प्रश्न बन गया है।

क्या दक्षिण भारत में है मोदी का असर, अगले पन्ने पर...



इसी तरह सवाल यह है कि पसमांदा या अशरफ मुस्लिम क्या इस बार समाजवादी पार्टी को ही वोट देंगे या कांग्रेस के प्रति उनकी निष्ठा में कोई कमी नहीं आई है। क्या मुस्लिम इस बार 'बहनजी' को अपना वोट नहीं दे सकते हैं?

इसी तरह कहा जा सकता है कि दक्षिण के राज्य जैसे कर्नाटक में भाजपा ने अपने जनाधार का विस्तार किया है ल‍ेकिन फिर भी नहीं कहा जा सकता है कि पार्टी राज्य में सबसे ज्यादा सीटें जीतने में सफल हो सकती है?

कुछ समय पहले तेलंगाना में भाजपा और टीडीपी के बीच समझौता हुआ था लेकिन अब लगता है कि समझौता टूट भी सकता है। जहां तक तेलंगाना में सोनिया की सभाओं का जो हाल रहा है उसे यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि तेलंगाना में कांग्रेस को राज्य के बंटवारे का कोपभाजन बनना पड़ेगा।

इस मामले में सीमांध्र में भी कांग्रेस ने लाभ उठाने की बात सोची है, लेकिन कांग्रेस को कोई लाभ मिलेगा ऐसा नहीं लगता। यहां भाजपा के लिए भी बहुत सीमित सफलता की उम्मीद की जानी चाहिए।

यूपीए से नाराजगी के कारण मोदी लहर या कुछ और? अगले पन्ने पर...



यह कहना गलत न होगा कि राष्ट्रीय स्तर पर और विशेष रूप से उत्तर भारत में मोदी का करिश्मा शायद उतना काम नहीं कर रहा है जितना कि दावा किया जा रहा है। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा रहा है लोगों में यूपीए के 10 वर्ष के शासन और घोटालों को लेकर बहुत नाराजगी है।

समझा जा सकता है कि भाजपा इसी नाराजगी को भुनाने में अन्य दलों की तुलना में अधिक सफल प्रतीत हो रही है और उसे अन्य दलों की तुलना में बढ़त मिलती लग रही है।

ले‍किन एक महत्वपूर्ण बात इन चुनावों में दिखाई दे रही है, वह है मतदान के प्रतिशत में भारी बढ़ोतरी हुई है और ऐसा देखा गया है कि जब-जब लोगों ने भारी मतदान किया है तो उन्होंने अपने फैसले से किसी दल विशेष को अपना अपूर्व समर्थन दिया है तो किसी दल विशेष को दंडित किया है।

सोचा जा सकता है कि क्या इस बात जनता का स्पष्ट समर्थन भाजपा को मिल सकेगा या फिर चुनावों का परिणाम कई कारणों से प्रभावित होगा और विभिन्न दलों को उनकी उम्मीदों के अनुरूप सफलता ना मिले।

लेकिन फिलहाल जो नजर आ रहा है उसके मुताबिक विभिन्न राज्यों में विभिन्न रुझान दिखाई दे रहा है। एक जानकार का कहना है कि नरेन्द्र मोदी की अपील भाजपा को उन प्रांतों में वोट खींचने में अच्छी मदद कर रही है, जहां उसका आधार अपेक्षाकृत छोटा है या उसका स्थानीय पार्टियों से गठजोड़ है। ऐसे राज्यों में बिहार, पंजाब और झारखंड हैं।

पार्टी ने बिहार में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) से गठजोड़ किया तो यह उसके लिए फायदे का सौदा लग रहा है। जिन राज्यों में पार्टी क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन में रही है, वहां मोदी की अपील भाजपा के पक्ष में काम कर रही है।

उत्तरप्रदेश, बिहार, हरियाणा और झारखंड में पार्टी को इसी तरह से लाभ मिल सकता है। महाराष्ट्र, हरियाणा, ओडिशा और दिल्ली में ज्यादातर भाजपा मतदाता मोदी के नाम पर पार्टी को वोट देने की बात करते हैं।

भाजपा मतदाता पार्टी या स्थानीय उम्मीदवारों के पक्ष में भी वोट देने का संकेत दे रहे हैं। बिहार और उत्तरप्रदेश में ऐसे मतदाताओं की संख्या काफी हो सकती है, जो नरेन्द्र मोदी की खातिर भाजपा को वोट करेंगे।

इन लोगों के अलावा भाजपा के परंपरागत मतदाताओं की संख्‍या भी कम नहीं है, जो कि काफी लंबे समय से पार्टी को ही वोट देते रहे हैं, चाहे प्रधानमंत्री की दावेदारी अटलजी, आडवाणीजी या फिर नरेन्द्र मोदी की रही हो।

भाजपा के शासन वाले राज्य में मोदी को कितने प्रतिशत मिलेगा वोट, अगले पन्ने पर..


इसलिए जिन राज्यों में भाजपा सत्ता में है और उसने हाल ही के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की है, उन राज्यों में बड़ी संख्‍या में मतदाता भाजपा को भी वोट देंगे। इतना ही नहीं, फेंस सिटर या अनिर्णय के शिकार मतदाता भी पार्टी के प्रचार से प्रभावित होकर अपनी पुरानी पार्टी से नाता तोड़ सकते हैं।

मध्यप्रदेश, गुजरात, दिल्ली, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा को भारी वोट मिलें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि इन राज्यों में पार्टी का मजबूत जनाधार बना हुआ है।

इन राज्यों में मतदाता पार्टी को वोट देंगे और बाद में मोदी के बारे में सोचेंगे। लेकिन गुजरात में ऐसे मतदाताओं की संख्या अधिक होगी, जो कि मोदी को ही वोट देने के लिए मतदान करेंगे।

राज्यों में जहां मोदी का प्रभाव है तो राज्य के मुख्यमंत्री भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। मध्यप्रदेश में जहां जितने मतदाता मोदी को वोट देंगे, इसकी तुलना में उन मतदाताओं की संख्या ज्यादा होगी, जो कि शिवराज सिंह या पार्टी को वोट देने का निर्णय लेंगे।

इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि मध्यप्रदेश में मोदी की तुलना में भाजपा और शिवराज सिंह का पलड़ा भारी है। राजस्थान में मोदी के पक्ष में वोट देने वाले मतदाताओं की संख्या 29 फीसद है तो राज्य में 41 फीसदी मतदाता भाजपा को वोट देने का इरादा रखते हैं।

लेकिन राजस्थान में ही ऐसे भाजपा समर्थकों की संख्या अपेक्षाकृत कम है, जो मोदी के लिए ही पार्टी को वोट दे सकते हैं। ऐसे लोग सिर्फ 18 प्रतिशत हैं, जबकि पार्टी के नाम पर भाजपा को वोट देने की इच्छा जताने वालों की तादाद 44 प्रतिशत है।

यहां तक कि गुजरात में भी ऐसे भाजपा मतदाताओं की तादाद कम है, जो सिर्फ मोदी के ही नाम पर भाजपा को वोट देने की इच्छा रखते हैं, जबकि नरेन्द्र मोदी एक दशक से भी अधिक समय से गुजरात के मुख्यमंत्री हैं।

जानकार गुजरात के बारे में भी कहते हैं कि 19 प्रतिशत भाजपा मतदाता मोदी के नाम पर मत देंगे लेकिन 41 प्रतिशत भाजपा मतदाताओं ने कहा कि वे पार्टी को पसंद करते हैं, इसलिए उनका वोट भाजपा के पक्ष में होगा।

इस स्थिति का यह निष्कर्ष भी है कि जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है, वहां सरकार की लोकप्रियता पार्टी के लिए मतदाताओं को आकर्षित कर रही है। इन राज्यों के मतदाताओं के बारे में नहीं कहा जा सकता है कि यहां सिर्फ मोदी का करिश्मा ही पार्टी को मत दिलाने में निर्णायक कारक साबित हो रहा है।

जहां भाजपा का शासन नहीं है वहां मोदी की स्थिति...


देश में कई राज्य ऐसे हैं जिनमें भाजपा हाशिए पर है और ऐसे राज्यों में कोई लहर नहीं नजर आ रही है। बंगाल, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में पार्टी के ऐसे मतदाता हैं जिन्होंने मोदी के नाम पर पार्टी को वोट देने की बात कही है। ऐसे राज्य भी हैं जिनमें उनके समर्थक हैं लेकिन उन्होंने भाजपा नहीं वरन नरेन्द्र मोदी को वोट देने का संकेत दिया है।

ऐसे राज्यों में पार्टी के वोटरों की संख्‍या पर्याप्त है। कर्नाटक, केरल, असम और पंजाब में मतदाता भाजपा को वोट देने का संकेत देते हैं इसलिए इन राज्यों में मोदी की लहर का प्रभाव सीमित है, क्योंकि मतदाताओं का कहना है कि इन राज्य में मोदी के व्यक्तित्व की बजाय वे पार्टी को प्रमुख वरीयता देते हैं।

अगर आप देश में इन रुझानों के साथ लोगों से बात करें तो आपको नहीं लगेगा कि देश में मोदी की लहर चल रही है।

लहर की तुलना में भाजपा के मतों के बढ़ने का अंडरकरंट (अंतरप्रवाह) देखा जा सकता है और सभी मतदाता वर्गों के लोग भाजपा के पक्ष में मतदान करने की बात कहते हैं, क्योंकि ये वे लोग हैं, जो कि पिछले 10 वर्षों के दौरान यूपीए के कामकाज और समय-समय पर सामने आने वाले घोटालों से बहुत नाराज हैं।

वे इस दौरान के भ्रष्टाचार से बहुत नाखुश हैं। इन्हें बेतहाशा बढ़ती महंगाई ने बहुत परेशान कर दिया है और युवाओं में बेरोजगारी को लेकर बहुत निराशा है।

ऐसे में भाजपा एक राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर उभरी है और नरेन्द्र मोदी इसका नेतृत्व कर रहे हैं इसलिए पार्टी और उन्हें इसका लाभ मिलना तय है लेकिन किसी एक व्यक्ति की लहर राजनीतिक धरातल पर नजर नहीं आ रही है और ऐसा कहना गलत भी नहीं होगा। बाकी लहर और इसकी मौजूदगी का फैसला 16 मई को हो जाएगा।

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