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संभावित हार से घबराए राहुल गांधी

हमें फॉलो करें संभावित हार से घबराए राहुल गांधी
नई दिल्ली , मंगलवार, 15 अप्रैल 2014 (15:09 IST)
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नई दिल्ली। इन चुनावों में कांग्रेस को अपनी हार बिल्कुल साफ दिख रही है और ऐसी स्थिति से पार्टी में घबराहट फैलना स्वाभाविक है। जानकार सूत्रों का कहना है कि पहले तीन चरणों के चुनावों के बाद कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भी लगने लगा है कि हार से ‍बचने का जितना ज्यादा से ज्यादा उपाय कर लिया जाए, उतना ही अच्छा। इसलिए राहुल गांधी ने तुरंत ही पार्टी नेताओं की बैठक बुलाई है। इस बैठक में आगे के चरणों के लिए नई चुनावी रणनीति पर विचार किया जाना है।

डेलीमेल ऑन लाइन में छपी अमित अग्निहोत्री की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह बैठक पार्टी के अंदरूनी आकलन के बाद बुलाई गई है। इस आकलन से माना जा रहा है कि पहले पार्टी का प्रदर्शन जितना खराब रहने की संभावना जाहिर की जा रही थी, असल में यह और भी अधिक खराब रहने वाला है। कांग्रेस के ही नेताओं का मानना है कि अगर समय रहते कोई कदम नहीं उठाया गया तो भारतीय जनता पार्टी की तुलना में पार्टी चुनावी रेस में पूरी तरह से बाहर हो जाएगी। जिन 350 सीटों के लिए चुनाव होने हैं, उनमें पार्टी की स्थिति को सुधारने के लिए विशेष उपाय करने वाले हैं।

पार्टी के शीर्ष सूत्रों का कहना है कि राहुल ने पार्टी के मैनेजरों से कहा है कि वे 350 से ज्यादा बची सीटों में से प्रत्‍येक पर केन्द्रीय प्रेक्षकों की नियुक्ति करें। चुनाव में बाकी छह चरणों में पार्टी के कार्यकर्ताओं को और सक्रिय करने तथा प्रचार के लिए अंतिम जोर लगाने का प्रयास किया जाए। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पर्यवेक्षकों की तैनाती का विचार गुरुवार को रणनीति तय करने के एक सत्र में रखा गया था। इससे पहले 91 लोकसभा चुनाव क्षेत्रों और दिल्ली की सातों सीटों पर हुए मतदान संबंधी जानकारी बैठक में साझा की गई। कांग्रेस को जो जानकारी मिली उसमें कहा गया कि मुकाबला भाजपा और अन्य दलों जैसे आम आदमी पार्टी (आप) और क्षेत्रीय दलों के बीच में है और कांग्रेस तीसरे स्थान पर चली गई है।

दिल्ली को लेकर पार्टी को मानना है कि सात में छह सीटों पर कांग्रेस की हार तय है और मात्र नई दिल्ली की एक सीट पर अजय माकन चुनाव जीत सकते हैं। सू‍त्रों का कहना हैकि गुरुवार को हुए 91 सीटों के लिए मुकाबले में ज्यादातर कांग्रेस प्रत्याशी भाजपा के प्रत्याशियों से हारते नजर आ रहे हैं। पार्टी को मोदी के नाम पर अधिक वोट मिल रहे हैं, खड़े गए प्रत्याशियों के नाम पर नहीं। कांग्रेस की इस बैठक में भाग लेने वाले पार्टी के एक रणनीतिकार का कहना है कि कांग्रेस मानती है कि अब उसे पर्यवेक्षकों को प्रत्येक चुनाव क्षेत्र यह सोचकर जाना पड़ेगा कि किसी भी तरह से स्थिति को अपने पक्ष में करना है भले ही स्थितियां कांग्रेस के खिलाफ कितनी ही अधिक क्यों ना हों?

क्या होगी राहुल की रणनीति...


राहुल की इस बैठक से जुड़ी जानकारी को रखने वाले एक सूत्र का कहना है कि पर्यवेक्षक प्रत्येक चुनाव क्षेत्र में जाएंगे और वहां चुनावी हवा के रुख पर नजर रखने के साथ ही वे ऐसी रणनीति बनाएंगे ताकि ऐसी स्थिति में कांग्रेस को लाभ हो सके। वे उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार में सहायता करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि पार्टी के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच किसी प्रकार का मतभेद न हो जिससे कि पार्टी को किसी तरह का नुकसान हो सके। कांग्रेस सूत्रों ने इस बात को स्वीकार किया है कि कई राज्यों में अंदरूनी लड़ाई के कारण कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकती है।

कांग्रेस के रणनीतिकार का कहना है कि पर्यवेक्षक यह सुनिश्चित करेंगे कि सारे मतभेदों को दूर कर दिया जाए। सूत्रों के मुताबिक कड़े मुकाबले में जहां एक एक सीट का महत्व है, ऐसी ‍‍स्थ‍िति में राहुल के करीबी सहायक इन पर्यवेक्षकों के फीडबैक पर नजर रखेंगे और इस तरह आगामी दिनों में और अधिक आक्रामक चुनाव प्रचार करने में सहायता मिले।

कांग्रेस हाल के उन जनमत सर्वेक्षणों से खुश है जिनमें कहा गया है क‍ि पार्टी और इसके सहयोगी दलों को 120 सीटें मिल सकती हैं। कांग्रेस के लिए सबसे निराशा की बात राष्ट्रीय राजधानी में है जहां कांग्रेस मैनेजरों का कहना है कि राजधानी में लोगों के गुस्से को दूर करने में पार्टी सफल नहीं हुई है जबकि इससे पहले के विधानसभा चुनावों में भी पार्टी का सफाया हो गया है।

पार्टी सूत्रों की आशंका है कि पार्टी राजधानी में शायद अपना खाता भी नहीं खोल सके जबकि 2009 के चुनावों में पार्टी ने दिल्ली की सातों सीटें जीती थीं। दिल्ली में दो सफल रैलियों के बाद कांग्रेस में यह थोड़ा सा आत्मविश्वास जगा है कि अल्पसंख्यक और कमजोर वर्गों के बोट फिर से पार्टी की ओर वापस आ रहे हैं। हरियाणा में पार्टी की स्थिति निराशाजनक है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनावों में पार्टी ने राज्य की 10 में से 9 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार पार्टी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं तो बहुत अधिक खराब भी नहीं है।

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