जंगल में राहुल, लगाई महिलाओं की चौपाल
मंडला , शनिवार, 22 मार्च 2014 (17:36 IST)
मंडला। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने शनिवार को यहां पहुंचकर तेंदूपत्ता संग्राहक आदिवासी महिला श्रमिकों से घने जंगल में काफी देर तक बातचीत की तथा उनकी समस्याओं और सुझावों को सुना।यहां से लगभग 11 किलोमीटर दूर मंडला-डिंडोरी मार्ग पर राहुल शनिवार को पटपटपरा रैयत गांव पहुंचे और सबसे पहले उन्होंने जंगल में लगभग आधा घंटे तक तेंदू के पेड़ों और तेंदूपत्ता संग्रहण की जानकारी ली। इसके बाद वे तेंदूपत्ता संग्राहक आदिवासी महिला श्रमिकों के बीच गए।इन महिला श्रमिकों की यह चौपाल एक महुए पेड़ के नीचे आयोजित की गई थी, जहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सांसद अरुण यादव एवं राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता सत्यदेव कटारे भी उनके साथ मौजूद थे।उन्होंने महिला श्रमिकों से बेबाक होकर अपनी बात रखने का आग्रह करते हुए कहा कि आजकल होता क्या है कि नेता आते हैं, अपनी बात रखते हैं और घर चले जाते हैं लेकिन वे यहां भाषण देने नहीं बल्कि उनकी बात सुनने आए हैं।अनुसूईया चौधरी नामक एक तेंदूपत्ता संग्राहक ने कहा कि उनका काम बहुत कठिन है, क्योंकि उन्हें अपने काम के लिए सुबह तड़के 2-3 बजे जागकर जंगल में जाना होता है तथा उचित तेंदूपत्ता का चयन कर उनका संग्रहण कर गड्डियां बनाकर फड़ों में देर शाम तक जमा करना पड़ता है। इस सबमें वे अपने बच्चों और परिवार का ध्यान नहीं रख पाती हैं।एक अन्य आदिवासी महिला श्रमिक ने कहा कि उनके गांव में पानी की विकट समस्या है और काफी दूर चलकर नदी से पानी लाना होता है। उसने गांव में सड़क की भी समस्या बताई और कहा कि वाहन कितना भी अच्छा हो, लेकिन उसमें बैठकर ऐसा अहसास होता है, जैसे ट्रैक्टर पर बैठे हों।जब एक महिला श्रमिक ने बड़े आदमी और छोटे आदमी का जिक्र किया, तो राहुल गांधी ने पूछा कि यह बड़ा और छोटा आदमी क्या होता है? उसने जवाब दिया कि गरीबी ही बड़े और छोटे आदमी की पहचान का पैमाना है।राहुल ने इस बात पर प्रसन्नता प्रकट की है कि इस आदिवासी बहुल इलाके की महिलाएं उनसे बिना भय और संकोच के बातचीत कर रही हैं।इस बारे में उन्होंने महाराष्ट्र में आदिवासी छात्रों से हुई चर्चा का हवाला देते हुए कहा कि वे अपनी बात रखने में बेहद संकोच कर रहे थे। उनका कहना था कि उन्हें समाज में दबाया जाता है, लेकिन यहां आदिवासी महिलाओं की बेबाकी से वे प्रभावित हुए हैं।कांग्रेस उपाध्यक्ष ने इन महिलाओं से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) के बारे में भी जानकारी हासिल की, लेकिन उन्हें लमिली बाई ने बताया कि यहां मनरेगा के तहत कोई काम नहीं मिलता है। जो भी मजदूरी मिलती है, उसमें उन्हें प्रतिदिन 100 रुपए से अधिक भुगतान नहीं किया जाता है।एक अन्य तेंदूपत्ता संग्राहक महिला श्रमिक ने वन अधिकार कानून के प्रति भी अनभिज्ञता प्रकट करते हुए कहा कि यदि उन्हें जमीन मिल जाए, तो उनकी गरीबी काफी हद तक दूर हो सकती है। उसने कहा कि जब सीजन नहीं होता, तो उन्हें काम की तलाश में बाहर और कई बार तो नागपुर (महाराष्ट्र) तक जाना पड़ता है।इस चौपाल के बाद राहुल मंडला-डिंडोरी मार्ग पर पहुंचे, तो सड़क के दोनों ओर भारी संख्या में खड़े आदिवासियों में उनकी एक झलक पाने की होड़ मच गई। यहां से वे हैलीपैड गए, जहां से वे जबलपुर जाएंगे और फिर विमान से उत्तरप्रदेश के लिए रवाना होंगे। (भाषा)