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राहुल गांधी की पकड़ पर प्रश्नचिन्ह

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कांग्रेस में ही राहुल गांधी का विरोध तेज हो रहा है और उनकी योजनाओं को क्रियान्वित नहीं किया जा रहा है। हाल ही में जो परिवर्तन सामने आए हैं, उनसे निष्कर्ष निकलता है कि कांग्रेस पर राहुल गांधी का एकछत्र नियंत्रण नहीं है और पार्टी के पुराने नेता उनकी योजनाओं को बदलवाने की सामर्थ्य रखते हैं।

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कहा जा रहा है कि पार्टी के पुराने नेताओं को राहुल गांधी के तौर तरीके पसंद नहीं आ रहे हैं। सभी जानते हैं कि संसद का सत्र समाप्त हो जाने के बाद कहा जा रहा था कि राहुल गांधी अपने बहुप्रचारित भ्रष्टाचार विरोधी विधेयकों को अध्यादेशों के जरिए पास करवा सकते हैं, लेकिन पिछले दिनों कैबिनेट की बैठक के बाद यह तय हो गया कि पार्टी के वरिष्ठ नेता ऐसे अध्यादेश नहीं चाहते थे जिनको लेकर पार्टी की कटु आलोचना हो। साथ ही इस बात का अंदेशा भी था कि राष्ट्रपति इन अध्यादेशों पर हस्ताक्षर करने से भी इनकार कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में इन अध्यादेशों पर कानून मंत्रालय के ब्रेक को ही पर्याप्त मान लिया गया और कोई कदम नहीं बढ़ाया गया।

संभावना तो यह भी है कि राहुल अभी भी इन अध्यादेशों को लाने की इच्छा रखते हैं, लेकिन मंत्रिमंडल की विशेष बैठक में इसके विरोध के बाद राहुल समर्थकों को अपना इरादा छोड़ना पड़ा। मामला यहीं तक सीमित नहीं है। राहुल गांधी ने विभिन्न राज्यों में जिन लोगों को नया पदाधिकारी नियुक्त किया है उनकी पार्टी के वर्तमान और बुजुर्ग नेतृत्व में भी पटरी नहीं बैठ रही है।

पार्टी के नेताओं ने अध्यादेश के सवाल पर ध्यान दिलाया था कि दागी नेताओं को बचाए जाने के लिए लाए गए अध्यादेश पर खुद राहुल बाबा का क्या कहना था? कहीं ऐसा न हो कि राष्ट्रपति महोदय उनके भ्रष्टाचार विरोधी अध्यादेशों का यही हश्र करें। पार्टी के भीतर लोकसभा चुनावों के मद्देनजर अपने भावी सहयोगियों को लेकर इतनी अनिश्चियता है कि कांग्रेस तय नहीं कर पा रही है कि वह बिहार में राजद से गठबंधन करे या लठबंधन?

बिहार में रामबिलास पासवान अगर भाजपा के साथ हो गए तो इसके पीछे भी कांग्रेस का 'पॉलिसी पैरालिसिस' है और पार्टी नेताओं की दो ध्रुवीय रस्साकशी एक बड़ा बोझ साबित हो रही है। इस स्थिति के लिए भी राहुल गांधी और उनके सहयोगियों को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

राहुल गांधी के संगठन में बदलाव भी पार्टी के बड़े और पुराने नेताओं के गले नहीं उतर रहे हैं। दोनों पक्षों की इस रस्साकशी में ऐसी स्थिति पैदा हो रही है कि पार्टी में एक स्तर पर असंतोष है तो दूसरा पक्ष निर्णायक फैसले ले रहा है।

बिहार में लालू प्रसाद यादव की राजद को लेकर भी कांग्रेस के पास कोई निर्णायक स्टेंड नजर नहीं आ रहा है, लेकिन स्थिति यह है कि अगर दोनों के बीच किसी गठबंधन की बजाय लठबंधन हो जाता है तो राजद के साथ-साथ कांग्रेस की भी लुटिया डूबना तय है और अगर कांग्रेस कमजोर होती है तो निश्चित तौर पर राहुल गांधी का पार्टी पर होल्ड भी कमजोर होगा और सोनिया गांधी ने उनके लेकर जो उम्मीदें बांध रखी होंगी उनके क्षीण होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।

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