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राहुल गांधी को कांग्रेस ने क्यों नहीं बनाया प्रधानमंत्री उम्मीदवार

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नई दिल्‍ली। सोनिया गांधी ने भले ही परंपरा का हवाला देकर राहुल गांधी को पीएम उम्‍मीदवार घोषित नहीं किया हो, लेकिन जानकार लोग इसके पीछे अलग ही वजह देखते हैं। राजनीतिक पंडितों और ब्रांड एक्‍सपर्ट्स भी कांग्रेस अध्‍यक्ष के फैसले को राहुल की छवि से जोड़कर देखते हैं। उनका मानना है कि यह फैसला राहुल की छवि को नुकसान पहुंचने की आशंका खत्‍म किए जाने के चलते लिया गया लगता है।

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संतोष देसाई (फ्यूचरब्रांड्स) कहते हैं, 'यह फैसला (राहुल को पीएम उम्‍मीदवार घोषित नहीं करने का) हार की स्थिति में राहुल की छवि को स्‍थायी तौर पर पहुंचने वाले नुकसान से बचाएगा। खास कर तब जब उनके मुकाबले जो खड़ा है (नरेंद्र मोदी) वह कई मायनों में उन पर भारी है।'

अगले पन्ने पर, कांग्रेस का ट्रंप कार्ड....


हरीश बिजूर (ब्रांड स्‍पेशलिस्‍ट) कहते हैं, 'यह एक स्‍ट्रैटजी के तहत लिया गया फैसला है। जीत की स्थिति में उन्‍हें वैसे भी पीएम बना दिया जाएगा, लेकिन हारे तो उनकी भारी बेइज्‍जती होगी।' राजनीतिक तौर पर देखें तो कांग्रेस अध्‍यक्ष का फैसला परंपरा के चलते लिया गया नहीं लगता है।

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असल में यह मजबूरी और सोची-समझी रणनीति का नतीजा है। अगर उन्हें प्रत्याशी बना दिया जाता और वे चुनावों में पार्टी की हार को न बचा पाते तो दल को अपने आखिरी ट्रम्प कार्ड-प्रियंका गांधी वाड्रा-को भी इस्तेमाल करने के लिए बाध्य होना पड़ता।

अगले पन्ने पर, वंशवाद का दंश...


भाजपा और 'आप', दोनों ही कांग्रेस पर वंशवादी राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप लगा रही हैं। कांग्रेस अभी यह भी तय नहीं कर पाई है कि असल में चुनाव किस मुद्दे पर लड़ा जाए। भ्रष्‍टाचार और विकास को उसके विरोधी मुद्दा बना चुके हैं।

इन मुद्दों की मजबूत काट भी अभी कांग्रेस को तलाशनी है। ऐसे में राहुल को पीएम उम्‍मीदवार बनाने से उनकी चुनौती बढ़ ही जाती। राहुल के पास सरकार चलाने का अनुभव भी नहीं है। उल्‍टे वह कई बार अपनी सरकार की बेइज्‍जती करा चुके हैं।

पार्टी के भीतर जहां कुछ नेता राहुल की कार्यशैली को पसंद नहीं करते, वहीं राहुल भी कई दिग्‍गज नेताओं की कार्यशैली से नाखुश बताए जाते हैं। ऐसे में राहुल को पीएम उम्‍मीदवार बनाने से पार्टी अंदरूनी मुश्किल में फंस सकती थी। इन सब कारणों के अलावा एक मजबूत वजह यह तो है ही कि अब तक राहुल को जो जिम्‍मेदारी दी गई है, उन पर वह पूरी तरह खरी नहीं उतर सके हैं।

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राहुल गांधी भले ही कांग्रेस के पीएम उम्‍मीदवार घोषित नहीं किए गए हों, लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का नेतृत्‍व करेंगे, यह तय हो गया है। गुरुवार को हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में नेताओं की सहमति के बावजूद पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्‍याशी घोषित नहीं किया गया।

अगले पन्ने पर, राहुल गांधी का असफलता का इतिहास...


असफलता का इतिहास : राहुल गांधी ने 2004 में पहला लोकसभा चुनाव अमेठी से लड़ा। 2007 में पार्टी ने उन्‍हें महासचिव बनाया। 2009 में लोकसभा चुनाव में उन्‍होंने उत्‍तर प्रदेश में 100 रैलियां कीं और कांग्रेस पार्टी ने वहां 21 सीटें जीतीं। 2004 की तुलना में कांग्रेस को 12 अधिक सीटें मिलीं।

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15वीं लोकसभा में कांग्रेस महासचिव राहुल की हाजिरी महज 43 प्रतिशत रही और उन्‍होंने एक भी सवाल नहीं पूछा। राहुल गांधी ने 15वीं लोकसभा में सिर्फ एक बार हिस्‍सा लिया और वह भी जन लोकपाल पर। इतना ही नहीं, राहुल गांधी ने कोई प्रश्‍न भी नहीं पूछा। 14वीं लोकसभा की बात करें तो उनकी हाजिरी 63 प्रतिशत रही थी। उन्‍होंने पांच बार बहस में हिस्‍सा लिया था और तीन बार सवाल पूछे थे।

राहुल गांधी ने 2012 में उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान पूरी ताकत झोंक दी थी। उन्‍होंने 200 रैलियां कीं, लेकिन खुद उनके लोकसभा क्षेत्र की 15 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस सिर्फ 2 पर जीत दर्ज कर पायी। यूपी की कुल 400 सीटों में से कांग्रेस सिर्फ 28 पर ही जीत दर्ज कर पायी।

2007 विधानसभा चुनाव की तुलना में राहुल गांधी को सिर्फ 6 सीटें ज्‍यादा पाईं थी। दूसरी ओर नरेंद्र मोदी ने 4 राज्यों में 15 दिन गुजारे। 50 रैलियां की। 300 सीटों तक पहुंचे। सबसे ज्यादा 5-5 दिन मप्र व राजस्थान को दिए। जिन 300 सीटों तक मोदी पहुंचे, उनमें से पिछले चुनाव में भाजपा के पास 142 सीटें थी। ये इस बार 212 हो गईं। इस तरह मोदी ने चारों राज्यों में भाजपा की न केवल 142 सीटें बचाईं, बल्कि 70 सीटें बढ़ाई भी।

अगले पन्ने पर, 2013 के चुनावों में नहीं चला राहुल का जादू...


2013 में मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान, छत्‍तीसगढ़ और दिल्‍ली में हुए विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी का सक्सेस रेट 25 प्रतिशत रहा। राहुल गांधी ने 4 राज्यों में 11 दिन में 17 रैलियां की। 110 सीटों तक पहुंचे। सबसे ज्यादा 4 दिन मध्य प्रदेश में रहे।

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जिन 110 सीटों तक मोदी पहुंचे, उनमें से पिछले चुनाव में कांग्रेस के पास 50 सीटें थीं। ये इस बार 24 रह गईं। इस तरह जहां राहुल पहुंचे, वहां कांग्रेस ने 26 सीटें गंवा दी। वहीं, भाजपा ने इन 110 सीटों में से 21 सीटें जीत ली।
गोवा में 2012 में चुनाव हुए, जिसमें भाजपा को 21 और कांग्रेस को सिर्फ 9 सीटें ही मिल सकीं।

इसके अलावा 2012 में कांग्रेस लगातार दूसरी बार हार गई। 2007 में कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं थीं और 2012 में भी वह 46 सीटों तक ही रही। 2007 में कांग्रेस उत्‍तराखंड हारी, लेकिन 2012 में कांग्रेस को 32 सीटें मिलीं, लेकिन भाजपा ने कड़ी टक्‍कर दी थी, उसे 31 सीटें मिल सकी थीं।

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