कैमेलस प्रजाति का प्राणी ऊंट अपनी कूबड़ की वजह से पहचाना जाता है। ऊंट की दो प्रजातियां होती हैं पहली एक कूबड़ वाले ऊंट जो अरब में पाए जाते हैं और दूसरे बैक्ट्रियन जिनके दो कूबड़ होते हैं। एक कूबड़ वाले ऊंट पश्चिम एशिया के रेगिस्तानी इलाकों में पाए जाते हैं, जबकि दो कूबड़ वाले ऊंटों का घर मध्य और पूर्वी एशिया है।
दोनों ही प्रजातियां पालतू हैं, जिनका दूध और मांस मनुष्य के लिए उपयोगी है। यह बोझा ढोने का एक प्रमुख साधन भी है। ऊंटों की औसत आयु 40 से 50 वर्ष तक होती है। एक वयस्क ऊंट की ऊंचाई कूबड़ तक 7 फुट के लगभग होती है। यह 65 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ भी सकता है।
दुनिया में एक कूबड़ वाले सर्वाधिक ऊंट सोमालिया में पाए जाते हैं। यहां के लोगों के लिए यह दूध, भोजन और यातायात का प्रमुख साधन है। बैक्ट्रियन प्रजाति के ऊंट चीन के गोबी रेगिस्तान और मंगोलिया में पाए जाते हैं। भारत में सर्वाधिक ऊंट राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र में होते हैं।
सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि ऊंट अपने कूबड़ में पानी एकत्रित करते रखता है, परंतु यह गलत धारणा है। दरअसल उसकी कूबड़ में पूरे शरीर की चर्बी समाहित होती है। इस चर्बी से उसे गर्मियों में ऊर्जा मिलती रहती है। इसकी मोटी चमड़ी उसकी रेगिस्तानी हवाओं से रक्षा करती है, जिस कारण वह बिना पानी पिए कई दिनों तक रह सकता है।
ऊंट की रक्त कोशिकाएं अंडाकार होती हैं। यह एक बार में 100-150 लीटर पानी पी लेता है। ऊंट को कभी भी पसीना नहीं आता। पेड़ों की हरी पत्तियां इसका मुख्य भोजन है। इसकी मोटी चमड़ी सूरज की रोशनी को रिफ्लेक्ट करती है। ऊंट के लंबे पैर उसे जमीन की गर्मी से दूरी बनाए रखने में मदद करते हैं।
ऊंट का मुंह बहुत मजबूत होता है। यह रेगिस्तान की कंटीले पेड़ों को भी चबा लेता है। ऊंट की आंखों पर तीन परतें होती हैं और उन पर बने बाल इस तरह होते हैं कि जब रेगिस्तान में रेतीली हवाएं चलती हैं तब भी वे आसानी से देख सकते हैं। रेत उनकी आंखों में नहीं जा पाती।
ऊंट के पंजों की बनावट इस तरह होती है कि रेत में चलते वक्त ये अंदर की ओर नहीं धंसते। ऊंटों की किडनी पानी को लंबे समय तक रोके रखने में सक्षम होती है।
ईसा से 1200 वर्ष पूर्व से ऊंटों पर सामान लादकर लाने-ले जाने की प्रथा चल रही है। उसके बाद सैनिकों ने भी ऊंटों का उपयोग अपना सामान लादने के लिए किया। राजस्थान में अजमेर से 14 किमी दूर पुष्कर में प्रतिवर्ष पशु मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में ऊंटों की खरीद-फरोख्त होती है।